शनिवार, 15 मई 2010

एक गहरी श्‍वांस लेकर

इस सप्ताह माहौल नाटकीयता की हद को पार कर गया। मेरा मन छुब्ध हो गया। बस इसी मनसिकता में दो पोस्ट लिख डाली। एक थी  आज़ादी अभिव्यक्ति की और दूसरी तिमिर घना है। इसमें बहुत नकारात्मक ऊर्जा से भरे शब्द थे। मेरे इस पोस्ट को पढकर आदरणीय डा. डंडा लखनवी जी ने निम्न लिखित उद्गार प्रकट किए

डॉ० डंडा लखनवी said...

मनोज जी!
आपकी रचना को पढ़ मुझे लगा कि
आप का मनोबल और धैर्य विचलित
हो रहा है-उसे संभालिए। जीवन का दूसरा
नाम संघर्ष है। मैं आप जैसी मन:स्थिति से
गुजर चुका हूँ। सन् 1990 में मेरा ‘अपने
को ही दीप बनओ’ नामक गीत-संकलन
प्रकाशित हुआ था। अब वह आउट
आफ प्रिंट है। पुस्तक की प्रति अगर सुलभ
हो गई तो आप को मेल कर दूँगा। फिलहाल
उसके "टाइटिल सांग" की निम्न पंक्तियाँ प्रस्तुत
है। शायद आपके काम आ जाएं .........
/////////////////////////////
यह माना गहन अंधेरा है,
आँखों से दूर सबेरा है,
तुम ! अपने दीपक आप बनो़।
तुम ! अपने दीपक आप बनो़।।
///////////////////////////////////

इन शब्दों के प्रति मैं उन्हें जितना भी आभार प्रकट करूँ कम ही होंगे। मैंने देखा कि इस अंधकार से निकलने का रास्ता खुद ही ढ़ूंढना होगा। फिर चिंतन किया --- एक गहरी सांस लेकर!  और उसी चिंतन की काव्यात्मक अभिव्यक्ति प्रस्तुत है।

 

J0386270 एक गहरी श्‍वांस लेकर

                             08102009154 --- --- मनोज कुमार

एक गहरी श्‍वांस लेकर !

मैं अंधेरे में खड़ा था, रोशनी की आस लेकर।

मिट गया सब तिमिर गहरा

जल गया जब दीप कोई।

दे गया था धवल मोती

पड़ा तट पर सीप कोई।

उतर आए लो! सितारे झील में आकाश लेकर।

ब्रह्मांड मन कहीं उलझा हुआ था,

मकड़ियों सा जाल बुनकर।

झँझड़ियों की राह आती

स्वर्ण किरण एकाध चुनकर।

उठा गहरी नींद से मैं, इक नया विश्‍वास लेकर।

आफ़त-1 छोड़ दी बैसाखियाँ जब

चरण ख़ुद चलने लगे।

हृदय में नव सृजन के

भाव फिर पलने लगे।

भावनाओं का उमड़ता, वेगमय उल्लास लेकर।

समय देहरी पर खड़ा है हाथ में मधुमास लेकर।

sunrise *** ***

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही अच्छी और प्रेरणादायक कविता.

    जवाब देंहटाएं
  2. भावनाओं का उमड़ता, वेगमय उल्लास लेकर।

    समय देहरी पर खड़ा है हाथ में मधुमास लेकर उम्दा भावाभिव्यक्ति! नाईस!

    जवाब देंहटाएं
  3. छोड़ दी बैसाखियाँ जब चरण ख़ुद चलने लगे।
    हृदय में नव सृजन के भाव फिर पलने लगे।
    आशा और विस्वास से भरे शब्द। बहुत ही अच्छी और प्रेरणादायक कविता!

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सार्थक सोच के साथ लिखी गई रचना
    मैं हमेशा उस काम को करने की कोशिश करती हूँ जिसे मैं नहीं कर सकती, फिर यह सीखती हूँ कि उसे कैसे किया जाए ।

    जवाब देंहटाएं
  5. छोड़ दी बैसाखियाँ जब चरण ख़ुद चलने लगे।
    हृदय में नव सृजन के भाव फिर पलने लगे।
    भावनाओं का उमड़ता, वेगमय उल्लास लेकर।
    समय देहरी पर खड़ा है हाथ में मधुमास लेकर।
    बहुत ही अच्छी और प्रेरणादायक कविता!

    जवाब देंहटाएं
  6. मन कहीं उलझा हुआ था, मकड़ियों सा जाल बुनकर। झँझड़ियों की राह आती स्वर्ण किरण एकाध चुनकर।
    उठा गहरी नींद से मैं, इक नया विश्‍वास लेकर।
    मैं अंधेरे में खड़ा था, रोशनी की आस लेकर।
    अति सुंदर भाव लिए उत्तम रचना।

    जवाब देंहटाएं
  7. छोड़ दी बैसाखियाँ जब

    चरण ख़ुद चलने लगे।

    हृदय में नव सृजन के

    भाव फिर पलने लगे

    बहुत खूबसूरत भावों से सजी है ये रचना....प्रेरणादायक...

    जवाब देंहटाएं

आप अपने सुझाव और मूल्यांकन से हमारा मार्गदर्शन करें