बुधवार, 11 अगस्त 2010

हिंदी की चिंतन परंपरा में काव्‍य-लक्षण :: भाग- 2 आधुनिक युग, नवजागरण काल

हिंदी की चिंतन परंपरा में काव्‍य-लक्षण

 

भाग- 2 :: आधुनिक युग, नवजागरण काल

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने रीतिवाद का विरोध किया। उन्‍होंने शब्‍द और अर्थ का संदर्भ सामाजिकता से जोड़ा। उनका मत था कि कविता में बोलचाल की भाषा का प्रतिमान अपनाया जाए। काव्‍य में  वर्डसवर्थ ने भी इसी तरह की वकालत की थी।

शायद आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी पश्चिमी काव्‍य-चेतना से काफी प्रभावित थे। मिल्‍टन की सोच से काफी मिलते जुलते विचार देते हुए उन्‍होंने कहा था–

“कविता को सादा, प्रत्‍यक्षमूलक और रागयुक्‍त होना चाहिए।”

ऐसा प्रतीत होता है कि “सादा” से उनका तात्‍पर्य “झूठे चमत्‍कारवाद से मुक्ति” रहा होगा। “रसज्ञ-रंजन” पुस्‍तक में एक आलेख है “कवि और कविताएं” इसमें द्विवेदी जी ने लिखा है, “सादगी असलियत और जोश यदि ये तीनों गुण, कविता में हो तो कहना ही क्‍या है............” अतएव कवि को असलियत का सबसे अधिक ध्‍यान रखना चाहिए। मिल्टन ने भी इन तीनों गुणों की चर्चा की है।

इसके साथ ही आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी असलियत के साथ साथ कल्‍पना से नई-नई बातों को भी अपनाने का आग्रह करते हैं।

6 टिप्‍पणियां:

  1. उपयोगी जानकारी पढ़ने को मिली!

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  2. “सादगी असलियत और जोश यदि ये तीनों गुण, कविता में हो तो कहना ही क्‍या है.......”
    आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी


    विशेष जानकारी - आभार

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  3. बहुत अच्छी जानकारी मिल रही है आपसे |बधाई
    आशा

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  4. काव्य की बारीकियों को उजागर करता आलेख.

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