शनिवार, 28 अगस्त 2010

विश्वास का उजास


रात कुछ गहरा सी गई है
शहर भी सारा सो सा रहा है
अचानक आता है -
कोई मंजर आंखों के सामने
ऐसा लगता है कि -
कहीं कुछ हो तो रहा है।

सडकों के सन्नाटे में ये
हादसे क्यूँ कर हो रहे हैं ?
प्रगति के साथ - साथ ये
इंसानियत के जनाजे
क्यूँ निकल रहे हैं ?

मनुजता को ही त्याग कर तुम
क्या कभी मनुज भी रह पाओगे?
जाना है कौन सी राह पर ?
क्या मंजिल को भी ढूंढ पाओगे?

भटक गए हैं जो कदम हर राह पर
उन्हें तो तुमको ही ख़ुद रोकना पड़ेगा
रूको और सोचो ज़रा देर -
सही मार्ग तुमको ही चुनना पड़ेगा।

कोई नही है यहाँ उंगली थामने वाला
क्यों कि हाथ तो तुम ख़ुद के काट चुके हो
ठहरो ! और देखो इस चौराहे से
सही राह क्या तुम पहचान चुके हो ?

गर राह सही होगी तो सच में
सोया शहर भी एक दिन जाग जायेगा
गहरी हो रात चाहे जितनी भी
मन में विश्वास का उजास फ़ैल पायेगा.

( संगीता  स्वरुप )

11 टिप्‍पणियां:

  1. wowwwwwww..Mumma....pehli baar aapke blog per mera pehla comment hoga..:D :D

    ..ye poem shayad pehle padhi hui hai kya mumma..:(..???

    khair..padhi bhi hui hgi..to bhi bahut fresh lagi.....insaniyaat door door tak dil mein mehaq uthi....BAHUT BAHUT KHOOBSOORAT KAVITA HUI MUMMA..:):)

    जवाब देंहटाएं
  2. सडकों के सन्नाटे में ये
    हादसे क्यूँ कर हो रहे हैं ?
    प्रगति के साथ - साथ ये
    इंसानियत के जनाजे
    क्यूँ निकल रहे हैं ?

    yahi hai pragati

    जवाब देंहटाएं
  3. भटक गए हैं जो कदम हर राह पर
    उन्हें तो तुमको ही ख़ुद रोकना पड़ेगा
    रूको और सोचो ज़रा देर -
    सही मार्ग तुमको ही चुनना पड़ेगा।

    soch samaz kar kadam uthhane mein hi apni aur doosaron ki bhaai hai!...bahut umda vichaar, badhaai!

    जवाब देंहटाएं
  4. सार्थक पोस्ट
    इंसानियत का जनाजा तो हर रोज निकल ही रहा है।
    एक रचनाकार सही जगह सही हस्तक्षेप करता है वही आप कर रही है.
    आपको बधाई

    जवाब देंहटाएं
  5. सोचने को मजबूर करती खूबसूरत रचना।

    जवाब देंहटाएं
  6. आज हम खेलों की आढ में ही कितने भ्रष्टाचारो की बातें सुन रहे हैं और ऐसे वक़्त पर ही जरुरत है रचनाकारों द्वारा ऐसे लेखन की .उत्कृष्ट रचना.
    आभार.

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सच्ची एवं अच्छी बात कही है आपने ! आज वास्तव में आत्म चिंतन, आत्म मंथन एवं आत्म परीक्षण की बहुत आवश्यकता है ! जब सभी इस दिशा में सोचेंगे और आत्म परिष्कार के लिये स्वयम् को तैयार करेंगे तभी सही अर्थों में विश्वास का उजास फैलेगा ! बहुत ही सुन्दर रचना ! बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  8. विचारोत्तेजक!
    प्रस्तुत विचार अनुकरणीय है

    जवाब देंहटाएं
  9. आपकी पोस्ट रविवार २९ -०८ -२०१० को चर्चा मंच पर है ....वहाँ आपका स्वागत है ..

    http://charchamanch.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  10. गर राह सही होगी तो सच में
    सोया शहर भी एक दिन जाग जायेगा
    गहरी हो रात चाहे जितनी भी
    मन में विश्वास का उजास फ़ैल पायेगा.

    यही हौसला बना रहना चाहिए ...
    अच्छी कविता !

    जवाब देंहटाएं
  11. एक सार्थक कविता...बेहतरीन अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं

आप अपने सुझाव और मूल्यांकन से हमारा मार्गदर्शन करें