शनिवार, 14 अगस्त 2010

आज़ादी के इतने सालों में , क्या खोया क्या पाया हमने


आज़ादी के इतने सालों में
क्या खोया क्या पाया हमने
करें ज़रा हम लेखा जोखा
देश संभाला क्या सच हमने ?
आज़ादी के दीवाने तो
देश की कश्ती थमा गए
अपने स्वर में वो हमको
यह गाना भी सिखा गए थे .
हम लाये हैं तूफान से कश्ती निकाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के  |
आज़ादी के इन सालों में
बीच भंवर में फंसी हुई
इस कश्ती से हम ये सोचें
तट को क्या पाया हमने
आज़ादी के इतने सालों में
क्या खोया क्या पाया हमने

खोने का हो गया शुरू था
सिलसिला साथ आज़ादी के
बंटवारे की फसल थी बोई
काट रहे फल बरबादी के
दुश्मन भाई का बना भाई
आज़ादी का  बिगुल बजाया हमने।
आज़ादी के इतने सालों में
क्या खोया क्या पाया हमने

बढ चला देश पथ पर आगे
राह नयी अपनाने को
प्रयत्न किया सुविधा, संपन्न ,
सर्वशक्तिमान  बनाने को
उन्नति के इस जंगल में
भौतिक साधन खूब जुटाया हमने
आज़ादी के इतने सालों में
क्या खोया क्या पाया हमने

यंत्र -यान वैभव महान
शक्ति धन -बल  नितांत
फिर क्यों है मन उत्पीड़ित
और  क्यों जीवन अशांत ?
सेवक है विद्युत उर्जा
उससे क्या लाभ उठाया हमने
आज़ादी के इतने सालों में
क्या खोया क्या पाया हमने

मुँह बाए और बाहें पसारे
खड़ी हैं ज्वलंत समस्याएं
अमरबेल की भांति बढ़ रही
भूख  गरीबी क्रूर घटनाएँ
बढ़ रहा है देश मगर
हाय कितनी लाचारी है
बढ़ते दीखते साधन पर
बढ़ रही बेरोज़गारी है ...
सुरसा मुंह सी मंहगाई है
खुला बाज़ार अपनाया हमने
आज़ादी के इतने सालों में
क्या खोया क्या पाया हमने

छुप गया कहां गया लौ दीपक का
जो मार्ग देश का प्रशस्त कर सके
है कहीं लोगों में  स्वार्थ से परे एकता
जो आतंकवाद को ध्वस्त  कर सके ?
मूल्यविहीन हो गया नेतृत्व
बागडोर जिन्हें थमाया हमने
आज़ादी के इतने सालों में
क्या खोया क्या पाया हमने

भ्रष्टाचार ने
आम आदमी की
तोड़ दी है कमर
इन सबके विरुद्ध
अब तो करना होगा
एक जुट हो विशाल समर .
स्वतंत्रता के इस
चौंसठवें दिवस पर
हम यह करे प्रण
एकता अखंडता से
देश को सँवारे हम
नयी निर्माण  दिशा में
मिल कर बढ़ाएं कदम ||

जय हिंद!

 
संगीता  स्वरुप

19 टिप्‍पणियां:

  1. सच कहा तब और अब के भारत मे कितना फ़र्क आ गया मगर आज़ादी का महत्त्व आज शायद किसी को समझ नही आता तभी तो देश का ये हाल हुआ जा रहा है…………………एक प्रश्न उठाती बहुत ही सुन्दर रचना।

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  2. छुप गया कहां गया लौ दीपक का
    जो मार्ग देश का प्रशस्त कर सके
    है कहीं लोगों में स्वार्थ से परे एकता
    जो आतंकवाद को ध्वस्त कर सके ?

    --

    देश के वर्तमान स्वरूप का सटीक चित्रण किया है आपने अपनी रचना में!

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  3. स्वतंत्रता उपरान्त देश का पूरा लेखा झोखा प्रस्तुत कर दिया.. सुदर रचना .. समसामयिक रचना

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  4. B sundar! Khone pane ka silsila har mulk,har jeevan me jaaree rahega! Hamari koshish ho ki,ham aanewalee peedheeke liye kuchh behtar halat chhoden/banayen! Hame kya mila iski parwah nahi,hamne kya diya,bas yahee sochen!

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  5. इससे ज्यादा सही विश्लेषण करती हुई कविता मैंने नहीं पढ़ी पहले कभी ....
    बहुत बहुत अच्छी प्रस्तुति ...

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  6. देश की मौजूदा परिस्थितियों पर आपने तीखा व्यंग्य लिखा है
    भ्रष्टाचार ने इस देश का बेड़ा गर्क कर रखा है

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  7. मुँह बाए और बाहें पसारे
    खड़ी हैं ज्वलंत समस्याएं
    अमरबेल की भांति बढ़ रही
    भूख गरीबी क्रूर घटनाएँ
    बढ़ रहा है देश मगर
    हाय कितनी लाचारी है
    बढ़ते दीखते साधन पर
    बढ़ रही बेरोज़गारी है ...
    सुरसा मुंह सी मंहगाई है
    खुला बाज़ार अपनाया हमने
    Sacchai ka darpan dikhalati har aam hindustani ke dil se nikali hui tis hai is rachana men vastuha satya yahi hai ki jashna manane ke pahale aankalan to karana hi hoga kya khoya kya paya.....taki ham sabhi mil kar wo sab paa sake jo gavaya hai !!
    Rashtrabhakti se bhari sundar rachana ke liye Dhanyawaad.
    Vande Mataram

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  8. आज़ाद भारत पर सटीक व्यंग्यात्मक विश्लेषण!!

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  9. छुप गया कहां गया लौ दीपक का
    जो मार्ग देश का प्रशस्त कर सके
    है कहीं लोगों में स्वार्थ से परे एकता
    जो आतंकवाद को ध्वस्त कर सके ?

    एक लाजवाब प्रस्तुति देश की दशा दुर्दशा का अच्छा विश्लेषण करती सम सामयिक प्रस्तुति

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  10. बहुत ही अच्छी प्रस्तुती ,हम आजाद है भूखे मरने के लिए

    हम आजाद हैं एक निकम्मे प्रधानमंत्री के निकम्मेपन को सहने के लिए तथा उसे मोती तनख्वाह देने के लिए ...

    हम आजाद हैं शरद पवार जैसे लोगों को पूरे देश के गरीबों की रोटी को लूटने देने के लिए और ऐसे लूटेरों को मंत्री पद पर बैठकर मोटी तनख्वाह देने के लिए ..

    इतने बेशर्म तो अंग्रेज भी नहीं थे ...? हमें अब सत्य बोलना होगा नहीं तो ये झूठी आजादी हमें कहीं का नहीं छोड़ेगी ...

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  11. आजादी के इतने लम्बे सफर का लेख जोखा बड़ी बेबाकी से प्रस्तुत किया है, सब कुछ कह डाला और ये कविता हमें तस्वीर दिखा रही है हमारे आजादी के दीवानों से लेकर आज तक के भारत की. सब इसी के लिए रो रहे हैं की हम इस आजादी को उस रूप में क्यों नहीं जी पाए जिस रूप में शहीदों ने सोच कर अपनी जान निछावर की थी. इसको सुधारने की दिशा में बस एक कदम चलने की हर भारतीय कसम खाए तो हम फिर उसके अर्थों को खोजने और पाने में सफल हो सकते हैं.
    स्वतंत्रता दिवस पर बहुत बहुत बधाई.

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  12. आजादी के ६४ साल तक की देश की जिंदगी ...क्या इस आज़ादी की जिंदगी ने खोया पाया...अच्छा वर्णन है...सुंदर सशक्त शब्दों में बाँधा है हर परिवर्तन को. बेहतरीन प्रस्तुति.

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  13. समय के संदर्भ में, और देश की मौज़ादा हलात पर कफ़ी गहरा व्यंग्य है।
    जय हिन्द!

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  14. चरित्र निर्माण और
    व्यक्तित्व निखार हेतु
    आपके द्वारा किए जा रहा प्रयास सराहनीय है।
    स्वतंत्रता दिवस की
    हार्दिक बधाई ......
    सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

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  15. स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.

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  16. हालत तो कुछ ऐसी ही है....स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई

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