शनिवार, 27 अगस्त 2011

नीड़ का निर्माण फिर-फिर,… हरिवंश राय बच्चन

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नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्णान फिर-फिर!

वह उठी आँधी कि नभ में
छा गया सहसा अँधेरा,
धूलि धूसर बादलों ने
भूमि को इस भाँति घेरा,

रात-सा दिन हो गया, फिर
रात आ‌ई और काली,
लग रहा था अब न होगा
इस निशा का फिर सवेरा,

रात के उत्पात-भय से
भीत जन-जन, भीत कण-कण
किंतु प्राची से उषा की
मोहिनी मुस्कान फिर-फिर!

नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्णान फिर-फिर!

वह चले झोंके कि काँपे
भीम कायावान भूधर,
जड़ समेत उखड़-पुखड़कर
गिर पड़े, टूटे विटप वर,

हाय, तिनकों से विनिर्मित
घोंसलो पर क्या न बीती,
डगमगा‌ए जबकि कंकड़,
ईंट, पत्थर के महल-घर;

बोल आशा के विहंगम,
किस जगह पर तू छिपा था,
जो गगन पर चढ़ उठाता
गर्व से निज तान फिर-फिर!

नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्णान फिर-फिर!

क्रुद्ध नभ के वज्र दंतों
में उषा है मुसकराती,
घोर गर्जनमय गगन के
कंठ में खग पंक्ति गाती;

एक चिड़िया चोंच में तिनका
लि‌ए जो जा रही है,
वह सहज में ही पवन
उंचास को नीचा दिखाती!

नाश के दुख से कभी
दबता नहीं निर्माण का सुख
प्रलय की निस्तब्धता से
सृष्टि का नव गान फिर-फिर!

नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्णान फिर-फिर!

11 टिप्‍पणियां:

  1. बच्चन की कविता काश उनके पुत्र के दिमाग में आती तो।

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    1. अमिताभ अकेले भारतीय है जिन्होंने 90 करोड का कर्ज उतरा है , कई लोगों के सुझाव के बाद भी खुद को दिवालिया घोषित कर कर्ज से भागे नहीं . 70 साल की उम्र में युवाओ से ज्यादा उत्साह से कम करते है. कई बार बर्बादी से वापस आये हैं . बोफोर्स का केस england और भारत दोनों की अदालतों में जीता है . हमसे और आपसे सफल हैं.

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  2. जीवन की हर विषम परिस्थितियों में अपने अस्तित्व को सुरक्षित ऱखने के लिए दार्शनिक सत्यों से साक्षात्कार कराती बच्चन जी की यह कविता एक संदेश के ऱूप में सामने आई है । यह संदेश खासकर उन नवयुवकों के लिए है जो जीवन से हताश एवं निराश होकर एक ऐसे चौराहे पर खड़े हैं जहाँ से उन्हे कोई मंजिल नजर नही आती है।
    उन्होंने इन युवकों को संबोधित करते एक कविता लहरों में निमंत्रण में लिखा है-

    पोत अगणित इन तरंगों ने डुबाए मानता मैं,
    किंतु ,क्या सभी जलयान डूबे !
    हो युवक डूबे भले ही,
    है कभी डूबा न यौवन,
    तीर पर कैसै रूकूं मैं आज लहरों में निमंत्रण ।
    बच्चन जी की कविता पोस्ट करने के लिए
    धन्यवाद ।

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  3. जीवन्तता से ओत-प्रोत सुन्दर कविता।

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  4. दबता नहीं निर्माण का सुख
    प्रलय की निस्तब्धता से
    सृष्टि का नव गान फिर-फिर!
    बहुत ही प्रेरक पंक्तियां हैं ये। हमारे तो रोल मॉडल हैं बच्चन जी।

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  6. तेरी लेखनी भी एक बार जीवित हुई होगी, तेरा स्पर्श पाकर उसमें भी एक बार हलचल हुई होगी।

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  7. 'क्रुद्ध नभ के वज्र दंतों पंक्ति में नम का स्वरूप कैसा बताया गया है

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    1. इसमें नव का स्वरुप क्रोध से भरा हुआ बताया गया है। अर्थार्थ बताया गया है कि,नव गर्जनमय आवाज निकलते हुए जोरो से चमक रहा है।

      धन्यवाद्।

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