जन्म --- 1398
निधन --- 1518
कबीरा संगति साधु की, जौ की भूसी खाय ।
खीर खाँड़ भोजन मिले, ताकर संग न जाय ॥ 151 ॥
खीर खाँड़ भोजन मिले, ताकर संग न जाय ॥ 151 ॥
एक ते जान अनन्त, अन्य एक हो आय ।
एक से परचे भया, एक बाहे समाय ॥ 152 ॥
एक से परचे भया, एक बाहे समाय ॥ 152 ॥
कबीरा गरब न कीजिए, कबहूँ न हँसिये कोय ।
अजहूँ नाव समुद्र में, ना जाने का होय ॥ 153 ॥
अजहूँ नाव समुद्र में, ना जाने का होय ॥ 153 ॥
कबीरा कलह अरु कल्पना, सतसंगति से जाय ।
दुख बासे भागा फिरै, सुख में रहै समाय ॥ 154 ॥
दुख बासे भागा फिरै, सुख में रहै समाय ॥ 154 ॥
कबीरा संगति साधु की, जित प्रीत कीजै जाय ।
दुर्गति दूर वहावति, देवी सुमति बनाय ॥ 155 ॥
दुर्गति दूर वहावति, देवी सुमति बनाय ॥ 155 ॥
कबीरा संगत साधु की, निष्फल कभी न होय ।
होमी चन्दन बासना, नीम न कहसी कोय ॥ 156 ॥
होमी चन्दन बासना, नीम न कहसी कोय ॥ 156 ॥
को छूटौ इहिं जाल परि, कत फुरंग अकुलाय ।
ज्यों-ज्यों सुरझि भजौ चहै, त्यों-त्यों उरझत जाय ॥ 157 ॥
ज्यों-ज्यों सुरझि भजौ चहै, त्यों-त्यों उरझत जाय ॥ 157 ॥
कबीरा सोया क्या करे, उठि न भजे भगवान ।
जम जब घर ले जाएँगे, पड़ा रहेगा म्यान ॥ 158 ॥
जम जब घर ले जाएँगे, पड़ा रहेगा म्यान ॥ 158 ॥
काह भरोसा देह का, बिनस जात छिन मारहिं ।
साँस-साँस सुमिरन करो, और यतन कछु नाहिं ॥ 159 ॥
साँस-साँस सुमिरन करो, और यतन कछु नाहिं ॥ 159 ॥
काल करे से आज कर, सबहि सात तुव साथ ।
काल काल तू क्या करे काल काल के हाथ ॥ 160 ॥
काल काल तू क्या करे काल काल के हाथ ॥ 160 ॥
काल काल तू क्या करे काल काल के हाथ... अद्भुत.....
जवाब देंहटाएंसंत कबीर को नमन
सादर आभार।
कबीर कह रहे हैं कि सद्संगति से कलह ही नहीं,कल्पना भी दूर होती है। यह एक महत्वपूर्ण निष्कर्ष है क्योंकि इसमें कलह भूत का और कल्पना भविष्य का प्रतिनिधित्व कर रही है।।
जवाब देंहटाएंbahut badhia ...
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंआभार ||
काल करे से आज कर, सबहि सात तुव साथ ।
जवाब देंहटाएंकाल काल तू क्या करे काल काल के हाथ ……………बहुत सुन्दर दोहावलि चल रही है।
संगत पर आधारित दोहे ..अच्छी रही पोस्ट.
जवाब देंहटाएंकाह भरोसा देह का, बिनस जात छिन मारहिं ।
जवाब देंहटाएंसाँस-साँस सुमिरन करो, और यतन कछु नाहिं ॥ 159 ॥
कबीर की वाणी चेताती है, आभार !
भाई साहब ज़िन्दगी के दोराहे पर टिपण्णी खुली नहीं .एक ऐसी आप बीती सत्य कथा आपने पढवा दी जो अन्दर के द्वंद्व को रूपायित करती है .कर्तव्य बोध को मुखर करती है और ज़मीर को नै दिशा .आदमी सदैव ही अपनी गलतियां सुधार सकता है ,अपना कल भी .बढ़िया कसावदार कथा के लिए बधाई .
जवाब देंहटाएंदर्शन रिश्ता है कबीर ग्रंथावली से बस कोई समोने वाला होय .
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन रचना....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
अच्छी प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंकबीर के दोहों की सुंदर प्रस्तुति हेतु आभार .....
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