जन्म --- 1398
निधन --- 1518
कागा काको धन हरे, कोयल काको देय ।
मीठे शब्द सुनाय के, जग अपनो कर लेय ॥ 171 ॥
कबिरा सोई पीर है, जो जा नैं पर पीर ।
जो पर पीर न जानइ, सो काफिर के पीर ॥ 172 ॥
कबिरा मनहि गयन्द है, आकुंश दै-दै राखि ।
विष की बेली परि रहै, अम्रत को फल चाखि ॥ 173 ॥
कबीर यह जग कुछ नहीं, खिन खिन खारा मीठ ।
काल्ह जो बैठा भण्डपै, आज भसाने दीठ ॥ 174 ॥
कबिरा आप ठगाइए, और न ठगिए कोय ।
आप ठगे सुख होत है, और ठगे दुख होय ॥ 175 ॥
कथा कीर्तन कुल विशे, भव सागर की नाव ।
कहत कबीरा या जगत, नाहीं और उपाय ॥ 176 ॥
कबिरा यह तन जात है, सके तो ठौर लगा ।
कै सेवा कर साधु की, कै गोविंद गुनगा ॥ 177 ॥
कलि खोटा सजग आंधरा, शब्द न माने कोय ।
चाहे कहूँ सत आइना, सो जग बैरी होय ॥ 178 ॥
केतन दिन ऐसे गए, अन रुचे का नेह ।
अवसर बोवे उपजे नहीं, जो नहिं बरसे मेह ॥ 179 ॥
कबीर जात पुकारया, चढ़ चन्दन की डार ।
वाट लगाए ना लगे फिर क्या लेत हमार ॥ 180 ॥
क्रमश:
subah subah jaise prabhu prarthanaa kar lii aapkii post padh kar ....
जवाब देंहटाएंsarthak post dii....
aabhaar .
आभार आपका ।
जवाब देंहटाएंसादर नमन ।।
सच्ची पूजा, कर्म है, क्या गृहस्थ, सन्यास।
जवाब देंहटाएंजगमग कथ्य कबीर के, चन्दा धवल प्रकास॥
सादर आभार।
कागा काको घन हरे, कोयल काको देय ।
जवाब देंहटाएंमीठे शब्द सुनाय के, जग अपनो कर लेय
waah waah pahle hi dohe ne man har lia.
कबिरा सोई पीर है, जो जा नैं पर पीर ।
जवाब देंहटाएंजो पर पीर न जानइ, सो काफिर के पीर
कलि खोटा सजग आंधरा, शब्द न माने कोय ।
चाहे कहूँ सत आइना, सो जग बैरी होय
हर काल मे सटीक दोहे।
कबीर यह जग कुछ नहीं, खिन खारा मीठ ।
जवाब देंहटाएंकाल्ह जो बैठा भण्डपै, आज भसाने दीठ ॥ 174 ॥
यहाँ पहली पंक्ति में खिन शब्द एक बार फिर से आयेगा....ऐसा लगता है. आभार इस ज्ञानवर्धक पोस्ट के लिये...
अनीता जी ,
हटाएंशुक्रिया , मैंने संशोधन कर दिया है ...
कागा काको घन हरे, कोयल काको देय ।
जवाब देंहटाएंमीठे शब्द सुनाय के, जग अपनो कर लेय ॥ 171 ॥
कागा काको घन हरे, कोयल काको देय ।
मीठे शब्द सुनाय के, जग अपनो कर लेय ॥ 171 ॥
धन हरे कर लें ...बढ़िया प्रस्तुति कबीर दोहावली सर्व कालिक है .
शुक्रिया विरुभाई ... सुधार कर दिया है ...
जवाब देंहटाएंकबीर दास को पढ़कर आत्मा को शांति मिलती है।
जवाब देंहटाएंhamesha sahi rah dikhatey hai kabirdas ji key dohey
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