बादल को घिरते देखा है
नागार्जुन
अमल धवल गिरि के शिखरों पर,
बादल को घिरते देखा है।
छोटे-छोटे मोती जैसे
उसके शीतल तुहिन कणों को,
मानसरोवर के उन स्वर्णिम
कमलों पर गिरते देखा है,
बादलों को घिरते देखा है
तुंग हिमालय के कंधों पर
छोटी बड़ी कई झीलें हैं,
उनके श्यामल नील सलिल में
समतल देशों से आ-आकर
पावस की ऊमस से आकुल
तिक्त-मधुर बिसतंतु खोजते
हंसों को तिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।
सुंदर जीवन चक्र बादलों का ...वाह कहाँ से कहाँ घिर घिर कर पहुंच जाते हैं बादल ....!!
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता ...
आभार .
नागार्जुन जी की बेहतरीन रचना पढवाने के लिये,,,,मनोज जी आभार,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST ,,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,,
वाह!
जवाब देंहटाएंआभार!
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति हेतु आभार .....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना ....आभार
जवाब देंहटाएंbahut hi barik varnan prakriti ka yahi to kavi ki kalpna hai ...jivant kalpna thanks manoj jee....
जवाब देंहटाएंमानव मन की अपनी ही एक व्यथा-कथा है । उसका मन जिससे जुड़ जाता है,वहीं पर वह भी स्थिर हो जाता है।
जवाब देंहटाएंइसी संबंध में बाबा नागार्जुन से मेरा साहित्यिक जुड़ाव वंचित नही रहा। आज बहुत दिनों बाद उनकी एक अच्छी कविता पढ़ने को मिली । बहुत ही अच्छा लगा । धन्यवाद ।
यादें ताजा हो गयी पुनः, आभार।
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं |
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति ||
नागार्जुन जी की सुन्दर रचना पढवाने के लिए आभार....
जवाब देंहटाएंयह रचना तो हमने बाबा के मुख से उनकी टिप्पणी के साथ सुनी है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना!
इसको साझा करने के लिए आभार!
bahut sundar varnan hai baadalon ke jivan ka ....
जवाब देंहटाएं.पावस की ऊमस से आकुल
जवाब देंहटाएंतिक्त-मधुर बिसतंतु खोजते
हंसों को तिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।
शुक्रिया इस बाबा नागार्जुन की रचना के लिए कृपया उमस कर लें 'ऊमस'. .कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
बुधवार, 20 जून 2012
ये है मेरा इंडिया
ये है मेरा इंडिया
http://veerubhai1947.blogspot.in/
नागार्जुन की प्रसिद्ध रचना कई बार पढ़ी है पर हर बार पढ़ने पर बांध लेती है..
जवाब देंहटाएंमुझे कविता का भावाथ् बता दिजीए
हटाएं