भीष्म युद्धोपरांत धर्मराज युधिष्ठिर को संबोधित करते हुए कह रहे हैं ---
धर्मराज , यह भूमि किसी की
नहीं क्रीत है दासी
हैं जन्मना समान परस्पर
इसके सभी निवासी ।
है सबको अधिकार मृत्ति का
पोषक - रस पीने का
विविध अभावों से अशंक हो -
कर जग में जीने का ।
सबको मुक्त प्रकाश चाहिए ,
सबको मुक्त समीरण,
बाधा - रहित विकास , मुक्त
आशंकाओं से जीवन ।
उद्भिज - निभ चाहते सभी नर
बढ्न मुक्त गगन में
अपना चरम विकास खोजना
किसी प्रकार भुवन में ।
लेकिन , विघ्न अनेक अभी
इस पाठ में पड़े हुये हैं
मानवता की राह रोक कर
पर्वत अड़े हुये हैं ।
न्यायोचित सुख सुलभ नहीं
जब तक मानव - मानव को
चैन कहाँ धरती पर , तब तक
शांति कहाँ इस भाव को ?
जब तक मनुज - मनुज का यह
सुख भाग नहीं सम होगा
शमित न होगा कोलाहल
संघर्ष नहीं कम होगा ।
था पाठ सहज अतीव , सम्मिलित
हो समग्र सुख पाना
केवल अपने लिए नहीं
कोई सुख - भाग चुराना ।
उसे भूल नर फंसा परस्पर
की शंका में , भय में ,
निरत हुआ केवल अपने ही
हेतु भोग संचय में ।
इस वैयक्तिक भोगवाद से
फूटी विष की धारा ,
तड़प रहा जिसमें पड़ कर
मानव - समाज यह सारा ।
प्रभु के दिये हुये सुख इतने
हैं विकीर्ण धरणी पर
भोग सकें जो ,जगत में ,
कहाँ अभी इतने नर ?
भू से ले अंबर तक यह जल
कभी न घटने वाला ,
यह प्रकाश , यह पवन कभी भी
नहीं सिमटने वाला ।
यह धरती फल , फूल , अन्न , धन -
रत्न उगलने वाली
यह पालिका मृगव्य जीव की
अटवी सघन निराली ।
तुंग शृंग ये शैल कि जिनमें
हीरक - रत्न भरे हैं ,
ये समुद्र जिनमें मुक्ता
विद्रुम , प्रवाल बिखरे हैं ।
और मनुज की नयी नयी
प्रेरक वे जिज्ञासाएँ !
उसकी वे सुबलिष्ठ , सिंधु मंथन
में दक्ष भुजाएँ ।
अन्वेषणी बुद्धि वह
तम में भी टटोलने वाली ,
नव रहस्य , नव रूप प्रकृति का
नित्य खोलने वाली ।
इस भुज , इस प्रज्ञा के सम्मुख
कौन ठहर सकता है ?
कौन विभव वह , जो कि पुरुष को
दुर्लभ रह सकता है ?
इतना कुछ है भरा विभव का
कोष प्रकृति के भीतर
निज इच्छित सुख - भोग सहज
ही पा सकते नारी - नर ।
क्रमश:
धर्मराज , यह भूमि किसी की
जवाब देंहटाएंनहीं क्रीत है दासी
हैं जन्मना समान परस्पर
इसके सभी निवासी ।
आज भी भीष्म पितामह की यह बात लागू होती है। आपका यह पोस्ट हमें बहुत कुछ सीख प्रदान करता है । धन्यवाद ।
padhane ke liye shukriya
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ठ प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार 29/5/12 को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी |
जवाब देंहटाएंसब को मुक्त हवा और प्रकाश चाहिए - इसी उद्देश्य से महाभारत हुआ।
जवाब देंहटाएंकुरुक्षेत्र के धारावाहिक प्रसंग के साथ मनोज पर ९५० वीं पोस्ट की भी बधाई .आप बढ़िया काम यूं ही करते रहेंगे तो हम क्यों नहीं आयेंगे दौड़ दौड़ के ?
जवाब देंहटाएंaaj bhi insaan isi sangharsh se joojh raha hai.
जवाब देंहटाएंAaj ke paripeksh may purntah prasangik
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