पुस्तक परिचय-31 : सुहाग के नूपुर
मनोज कुमार
प्रेमचन्दोतर
उपन्यासकारों में अमृतलाल नागर का विशिष्ट स्थान हैं। उन्होने ऐतिहासिक और सामाजिक
दोनो प्रकार के उपन्यास लिखे हैं। जहां एक ओर वे "शतरंज के मोहरे" में अवध प्रदेश के
नवाबों का पतनोन्मुख जीवन अंकित करते हैं वहीं दूसरी ओर "सुहाग के नुपूर"
के द्वारा तमिल के प्राचीन काव्य "शिलप्पदिकारम" की कथावस्तु पर दक्षिण भारत
के ऐतिहासिक जीवन का विस्तृत और विश्वसनीय चित्रण प्रस्तुत करते हैं। आज हम आपका परिचय इसी उपन्यास से कराने जा रहे हैं जिसके कथानक और पात्रों के चरित्र द्वारा नागर जी ने विवाह और प्रेम की समस्या का चित्रण बहुत ही प्रामाणिकता के साथ किया है।
अमृतलाल नागर ने कई महत्वपूर्ण उपन्यास स्वतंत्रता के बाद
वाले दौर में लिखे। उन्होंने अपने उपन्यासों में व्यक्ति और समाज के सापेक्षिक संबंध
को चित्रित किया है। ‘नवाबी मसनद’, ‘सेठ बांके मल’, ‘महाकाल’, ‘बूंद और समुद्र’, ‘सुहाग
के नूपुर’, ‘शंतरंज के मोहरे’, अमृत और विष’, ‘एकदा नैमिषारण्ये’, ‘बिखरे तिनके’,
‘नाच्यौ बहुत गोपाल’, ‘मानस के हंस’, ‘खंजन नयन’, और ‘करवट’ जैसे उनके प्रसिद्ध उपन्यास
इसी काल में प्रकाशित हुए। नागर जी
के उपन्यास जैसे "बूँद और समुद्र", "अमृत और विष", "नाच्यौ
बहुत गोपाल", आदि में सामाजिक जीवन का चित्रण हैं। "बूँद और समुद्र" में
व्यक्ति और समाज के सामंजस्य पर बल दिया गया है। बूँद के रूप में व्यक्ति और
समुद्र के रूप में समष्टि का प्रतीकात्मक संकेत है। "मानस के हंस" और
"खंजन नयन" में तुलसी और सुर के जीवन का मार्मिक और मौलिक कल्पनात्मक रोचक
चित्रण है।
नागर जी
की ख्याति उपन्यासों के कारण अधिक हुई हैं, किंतु इनकी कई कहानियाँ भी लोकप्रिय
हुई हैं। आज के जीवन के आर्थिक सकट, विपन्नता, परिवारिक संबधों का तनाव आदि इनकी कहानियों का मुख्य विषय हैं।
"दो आस्थाएँ", "ग़रीब की हाय",
"निर्धन" , "कयामत का
दिन", "गोरखधंधा" आदि उल्लेखनीय हैं।
इस तरह
प्रख्यात कथा-शिल्पी अमृतलाल नागर जी ने हिन्दी साहित्य के प्रत्येक क्षेत्र में
अपनी लेखनी चलाई है। व्यंग्य और संस्मरण साहित्य में भी उनका विशिष्ट योगदान है।
“सुहाग के नूपुर” उनका विशिष्ट उपन्यास है। यह कथ्य और कला दोनों की दृष्टि से
बेहतरीन रचना है। इसके कथानक की प्रेरणा नागर जी को पहली शताब्दी के तमिल कवि
इलंगो के अमर काव्य-कृति "शिलप्पदिकारम" से मिली है। लेकिन इस उपन्यास
को नागर जी की सृजन-प्रतिभा ने अद्भुत मौलिकता प्रदान की है।
उस समय
के समाज और राज्य-व्यवस्था के परिवेश में वेश्या समस्या को आधार बना कर नागर जी ने
इसमें मनुष्य-समाज के व्यथित अर्धांग नारी
के अनंत शोषण और पुरुष-प्रकृति की उच्छृंखलता की लोमहर्षक कहानी कही है। कथानक
हालाकि प्राचीन काल की आधारभूमि पर रची और बुनी गई है, और अगर हम साहित्य के विपुल
भंडार पर दृष्टिपात करें तो कह सकते हैं कि ऐसी कहानी हाज़ारों बार कही गई है, जिसमें
प्रेम-त्रिकोण भी है, फिर भी उस कथानक के सहारे विवाह बनाम प्रेम की पुरानी समस्या
को नए रूप में प्रस्तुत करना नागर जी की लेखनी का बेमिसाल उदाहरण है।
प्रकाशन
के बाद इस उपन्यास की खूब प्रशंसा हुई, लेकिन नागर जी इसे अपनी कोई विशेष उपलब्धि
नहीं मानते। उनका कहना था, “सच तो यह है कि यह उपन्यास मैंने साहित्यिक कृति की
तरह नहीं उठाया था।” उनके ऐसा विचार व्यक्त करने के पीछे की घटना कुछ इस प्रकार
है। “धर्मयुग” साप्ताहिक पत्रिका नागर जी का एक धारावाहिक उपन्यास छपना चाहता था।
उस समय उसके संपादक सत्यकाम विद्यालंकार थे। जब उन्होंने इस आशय का आग्रह नागर जी
से किया तो वे इंकार न कर पाए। नागर जी के मन में आया कि “धर्मयुग” मध्यमवर्गीय
घरों का पत्र है, इसलिए इन्हें गहरे चिंतन की चीज़ मत दो। उन्होंने सोचा कि इनके
लिए कोई लोकरंजन कथा लिख देता हूं।
इस तरह
लोकरंजन की दृष्टि से ही “सुहाग के नूपुर” के कथानक पर नागर जी का ध्यान गया। इसकी
कथा वे तमिल में पढ़ चुके थे। इसका अंग्रेज़ी अनुवाद भी सुन चुके थे। लखनऊ में उनसे
भारत भूषण अग्रवाल ने रेडियो नाटक लिखने को कहा था। जब यह कथानक 1952 में सवा
घंटे के रेडियो नाटक के रूप में प्रसारित हुआ तो उसे काफ़ी लोकप्रियता मिली। इस तरह
“सुहाग के नुपूर” उपन्यास के रूप में छपने के पहले रेडियो नाटक के रूप में लिखा
गया था। इस उपन्यास की साहित्यिक क्षमता के बारे में इसी बात से अंदाज़ लगाया जा
सकता है कि इसे पढ़ने के बाद राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने “सुहाग के नूपुर” की
प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित साहित्य अकादेमी पुरस्कार के लिए सिफ़ारिश की थी।
लेखक के
शब्दों में ही कहें तो “घिसी-पिटी थीम” होने के बावज़ूद भी मिली-जुली सरल भाषा में
लिखा गया यह उपन्यास, जिसे साधारण हिंदी जाननेवाले पाठक पढ़ सकें, अपनी
प्रामाणिकता, और मौलिकता के कारण एक अद्वितीय कृति है, जिसके अब तक बारह आवृत्ति
और छह संस्करण निकल चुके हैं, और यह इसकी लोकप्रियता का अकाट्य प्रमाण है।
पुस्तक का नाम
|
सुहाग के नूपुर
|
रचनाकार
|
अमृतलाल
नागर
|
प्रकाशक
|
राजकमल
प्रकाशन, नई दिल्ली
|
संस्करण
|
प्रथम संस्करण : 1960
बारहवीं आवृत्ति : 2001
छठा संस्करण : 2011
|
मूल्य
|
250
|
पेज
|
192
|
पुराने पोस्ट के लिंक
1. व्योमकेश दरवेश, 2. मित्रो मरजानी, 3. धरती धन न अपना, 4. सोने का पिंजर अमेरिका और मैं, 5. अकथ कहानी प्रेम की, 6. संसद से सड़क तक, 7.मुक्तिबोध की कविताएं, 8. जूठन, 9. सूफ़ीमत और सूफ़ी-काव्य, 10. एक कहानी यह भी, 11. आधुनिक भारतीय नाट्य विमर्श, 12. स्मृतियों में रूस13. अन्या से अनन्या 14. सोनामाटी 15. मैला आंचल 16. मछली मरी हुई 17. परीक्षा-गुरू 18.गुडिया भीतर गुड़िया 19.स्मृतियों में रूस 20. अक्षरों के साये 21. कलामे रूमीपुस्तक परिचय-22 : हिन्द स्वराज : नव सभ्यता-विमर्श पुस्तक परिचय-23 : बच्चन के लोकप्रिय गीत पुस्तक परिचय-24 : विवेकानन्द 25. वह जो शेष है 26. ज़िन्दगीनामा 27. मेरे बाद 28. कब पानी में डूबा
सूरज 29. मुस्लिम मन का आईना 30. आधे अधूरे
Nice post.
जवाब देंहटाएंरोटियों को बीनने को, आ गये फकीर हैं।
अमन-चैन छीनने को, आ गये हकीर हैं।।
तिजारतों के वास्ते, बना रहे हैं रास्ते,
हरी घास छीलने को, आ गये अमीर हैं।
http://mushayera.blogspot.in/2012/06/blog-post.html
बहुत बढ़िया पोस्ट.........
जवाब देंहटाएंएक अच्छी पुस्तक से परिचय करवाने का शुक्रिया....
हम जैसे लोगों(जिन्होंने हिंदी साहित्य कुछ खास नहीं पढ़ा ) के लिए तो बहुत बड़ा इनाम है.
सादर
बढ़िया पुस्तक परिचय .... मैंने अमृत लाल जी की नाच्यो बहुत गोपाल पढ़ी हुयी है ... यह पुस्तक नहीं पढ़ी ...
जवाब देंहटाएंअच्छा समीक्षात्मक परिचय सर... आज ही लाइब्रेरी से यह किताब लाता हूँ... (सूची में संभवतः इस किताब का नाम देखा था)
जवाब देंहटाएंसादर।
"सुहाग के नुपूर" एक श्रेष्ठ कृति है और ये मेरे पसन्दीदा उपन्यासों में से एक है
जवाब देंहटाएंअमृतलाल नागर की इस सुन्दर कृति कि सुन्दर समीक्षा
आभार
ise pustak parichay ki bajay lekhak parichay kaha jaye to jyada behetar rahega.
जवाब देंहटाएंतुलसी और सुर के जीवन का मार्मिक और मौलिक कल्पनात्मक रोचक चित्रण है।सूर कर लें ,धर्म युग में छपना चाहता को छापना कर लें .
जवाब देंहटाएंबढ़िया और संक्षिप्त परिचयात्मक समीक्षा नागर जी की और उनके समूचे कृतित्व की इतने छोटे से ताने बाने में फिर भी कोई बिखराव नहीं . ... .कृपया यहाँ भी पधारें -
वैकल्पिक रोगोपचार का ज़रिया बनेगी डार्क चोकलेट
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/06/blog-post_03.html और यहाँ भी -
साधन भी प्रस्तुत कर रहा है बाज़ार जीरो साइज़ हो जाने के .
गत साठ सालों में छ: इंच बढ़ गया है महिलाओं का कटि प्रदेश (waistline),कमर का घेरा
http://veerubhai1947.blogspot.in/
लीवर डेमेज की वजह बन रही है पैरासीटामोल (acetaminophen)की ओवर डोज़
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
इस साधारण से उपाय को अपनाइए मोटापा घटाइए ram ram bhai
रविवार, 3 जून 2012
http://veerubhai1947.blogspot.in/
’सुहाग के नुपु’ कथाकार,अमृत लाल नागर द्वारा रचित उपन्यास के विषय में दी गई
हटाएंविस्तृत जानकारी के लिये,सादर धन्यवाद.
जानकारी के लिए आभार ,ज्ञानवर्धक आलेख
जवाब देंहटाएंअमृतलाल नागर जी के विभिन्न उपन्यासों का बिवरण बहुत अच्छा है। उनके बारे मे रोचक जानकारी अच्छी लगी....बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंअमृतलाल नागर जी के विभिन्न उपन्यासों का बिवरण बहुत अच्छा है। उनके बारे मे रोचक जानकारी अच्छी लगी....बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएं