अनुभूति / अनुपमा त्रिपाठी
कुछ समय पूर्व मुंबई प्रवास के दौरान अनुपमा त्रिपाठी जी से
मिलने का अवसर मिला ।उन्होने मुझे अपनी दो पुस्तकें प्रेम सहित भेंट कीं ।
जिसमें से एक तो साझा काव्य संग्रह है –“ एक सांस मेरी “ जिसका
सम्पादन सुश्री रश्मि प्रभा और श्री यशवंत माथुर ने किया
है ...इस पुस्तक के बारे में फिर कभी .....
आज मैं आपके समक्ष लायी हूँ अनुपमा जी की पुस्तक “ अनुभूति
” का परिचय । अनुभूति से पहले थोड़ा सा परिचय अनुपमा जी का
... उनके ही शब्दों में --- ‘ज़िंदगी में समय से वो सब मिला जिसकी हर
स्त्री को तमन्ना रहती है.... माता- पिता की दी हुयी शिक्षा , संस्कार
और अब मेरे पति द्वारा दिया जा रहा वो सुंदर , संरक्षित
जीवन जिसमें वो एक स्तम्भ की तरह हमेशा साथ रहते हैं .... दो बेटों की माँ
हूँ और अपनी घर गृहस्थी में लीन .... माँ संस्कृत की ज्ञाता थीं उन्हीं की
हिन्दी साहित्य की पुस्तकें पढ़ते पढ़ते हिन्दी साहित्य का बीज हृदय में रोपित हुआ
और प्रस्फुटित हो पल्लवित हो रहा है ... “
साहित्य के अतिरिक्त इनकी रुचि गीत –संगीत और नृत्य में
भी है । इन्होने शास्त्रीय संगीत और सितार की शिक्षा ली है । श्रीमती सुंदरी
शेषाद्रि से भारतनाट्यम सीखा । युव वाणी : आल इंडिया रेडियो और जबलपुर आकाशवाणी से
भी जुड़ी । 2010 में मलेशिया के टेम्पल ऑफ
फाइन आर्ट्स में हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा भी दी .... आज भी
नियमित शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम देती रहती हैं .....
इनकी रचनाएँ पत्रिकाओं में भी स्थान पा चुकी हैं ....
अनुभूति
पढ़ते हुये अनुभव हुआ कि अनुपमा जी जीवन के प्रति बहुत सकारात्मक दृष्टिकोण
रखती हैं ..... अपनी बात में वो लिखती हैं ---
जाग गयी चेतना
अब मैं देख रही प्रभु लीला
प्रभु लीला क्या , जीवन लीला
जीवन है संघर्ष तभी तो
जीवन का ये महाभारत
युद्ध के रथ पर
मैं अर्जुन तुम सारथी मेरे
मार्ग दिखाना
मृगमरीचिका नहीं
मुझे है जल तक जाना ।
इस पुस्तक में उनकी कुल 38 कवितायें प्रकाशित हैं .... सभी कवितायें पढ़ कर
एक सुखद एहसास हुआ कि कहीं भी कवयित्रि के मन में नैराश्य का भाव
नहीं है .... हर रचना में जीवन
में आगे बढ़ने की ललक और
परिस्थितियों से संघर्ष करने का उत्साह दिखाई देता है –
मंद मंद था हवा का झोंका
हल्की सी थी तपिश रवि की
वही दिया था मन का मेरा
जलता जाता
जीवन ज्योति जलाती जाती
चलती जाती धुन में अपनी
गाती जाती बढ़ती जाती ।
कवयित्री क्यों कि संगीत से बेहद जुड़ी हुई हैं तो
बहुत सी कविताओं में विभिन्न रागों का ज़िक्र भी आया है ... राग के नाम के साथ जिस
समय के राग हैं उसी समय को भी परिलक्षित किया है ..... कहीं कहीं रचना में शब्द ही
संगीत की झंकार सुनाते प्रतीत होते हैं ---
जंगल में मंगल हो कैसे
गीत सुरीला संग हो जैसे
धुन अपनी ही राग जो गाये
संग झाँझर झंकार सुनाये
सुन – सुन विहग भी बीन बजाए
घिर – घिर बादल रस बरसाए
टिपिर – टिपिर सुर ताल मिलाये ।
ईश्वर के प्रति गहन आस्था इनकी रचनाओं में देखने को मिलती है ---
प्रभु मूरत बिन /चैन न आवत /सोवत खोवत / रैन गंवावत /
या ---
बंसी धुन मन मोह लयी /सुध – बुध मोरी बिसर गयी /
या –
प्रभु प्रदत्त / लालित्य से भरा ये रूप / बंद कली में मन ईश स्वरूप ।
कहीं कहीं कवयित्रि आत्ममंथन करती हुई दर्शनिकता का बोध भी कराती है –
जीवन है तो चलना है / जग चार दिनों का मेला है / इक रोज़ यहाँ ,इक रोज़ वहाँ / हाँ ये
ही रैन बसेरा है ।
सामाजिक
सरोकारों को भी नहीं भूली हैं । प्रकृति प्रदत्त रचनाओं का भी समावेश है ---- आओ
धरा को स्वर्ग बनाएँ
कविताओं की विशेषता है कि पढ़ते पढ़ते जैसे मन खो जाता है
और रचनाएँ आत्मसात सी होती जाती हैं .... कोई कोई रचनाएँ संगीत की सी तान छेड़ देती
हैं लेकिन कुछ रचनाएँ ऐसी भी हैं जिनमे गेयता का अभाव है ... लेकिन मन के भावों को
समक्ष रखने में पूर्णरूप से सक्षम है । पुस्तक का आवरण पृष्ठ सुंदर है ....
छपाई स्पष्ट है .... वर्तनी अशुद्धि भी कहीं कहीं दिखाई दी .... ब्लॉग पर लिखते
हुये ऐसी अशुद्धियाँ नज़रअंदाज़ कर दी जाती हैं लेकिन पुस्तक में यह
खटकती हैं .... प्रकाशक क्यों कि हमारे ब्लॉगर साथी ही
हैं इस लिए उनसे विनम्र अनुरोध है इस ओर थोड़ी सतर्कता बरतें ।
कुल मिला कर यह पुस्तक पठनीय और सुखद अनुभूति देने वाली है .... कवयित्री
को मेरी हार्दिक बधाई और शुभकामनायें ।
पुस्तक का नाम – अनुभूति
रचना कार -- अनुपमा त्रिपाठी
पुस्तक का मूल्य – 99 / मात्र
आई एस बी एन – 978-81-923276-4-8
प्रकाशक - ज्योतिपर्व प्रकाशन / 99, ज्ञान
खंड -3 इंदिरापुरम / गाजियाबाद – 201012 ।
पुराने पोस्ट के लिंक
1. व्योमकेश दरवेश, 2. मित्रो मरजानी, 3. धरती धन न अपना, 4. सोने का पिंजर अमेरिका और मैं, 5. अकथ कहानी प्रेम की, 6. संसद से सड़क तक, 7.मुक्तिबोध की कविताएं, 8. जूठन, 9. सूफ़ीमत और सूफ़ी-काव्य, 10. एक कहानी यह भी, 11. आधुनिक भारतीय नाट्य विमर्श, 12. स्मृतियों में रूस13. अन्या से अनन्या 14. सोनामाटी 15. मैला आंचल 16. मछली मरी हुई 17. परीक्षा-गुरू 18.गुडिया भीतर गुड़िया 19.स्मृतियों में रूस 20. अक्षरों के साये 21. कलामे रूमीपुस्तक परिचय-22 : हिन्द स्वराज : नव सभ्यता-विमर्श पुस्तक परिचय-23 : बच्चन के लोकप्रिय गीत पुस्तक परिचय-24 : विवेकानन्द 25. वह जो शेष है 26. ज़िन्दगीनामा 27. मेरे बाद 28. कब पानी में डूबा सूरज 29.मुस्लिम मन का आईना 30. आधे अधूरे , 31 - सुहाग के नूपुर
अुनपमा त्रिपाठी जी की 'अनुभूति' का परिचय, संगीता जी ,आपने पूरे परिप्रेक्ष्य पूरी पृष्ठभूमि स्पष्ट करते हुये साथ प्रस्तुत किया - साहित्य का संगीत के साथ बड़ा गहरा नाता रहा है जीवन के आनन्द और सकारात्मक पक्ष के साथ वह शिवं से आपूर्ण हो जाता है .
जवाब देंहटाएंमन प्रसन्न हो उठा जान कर .
संगीता जी को बधाई और ऐसा परिचय देने के लिये आपको भी !
आपके आशिर्वचनों के लिये बहुत आभार प्रतिभाजी ..!!
हटाएंअनुपमा जी का लेखन सदैव प्रभावित करता है ! आस्था एवं प्रभु प्रेम में पगी उनकी रचनाएं मन को आल्हादित कर देती हैं ! आपने उनकी पुस्तक की बहुत सुन्दर समीक्षा प्रस्तुत की है ! अनुपमा जी को 'अनुभूति' के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ! इतनी सुन्दर एवं पठनीय पुस्तक से परिचित कराने के लिए संगीता जी आपका बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंशुभ वचनों के लिये बहुत बहुत आभार ...साधना जी ...!!
हटाएंbahut accha laga pustak samiksha ...badhai....aapko...nd anupma jee ko bhi ...
जवाब देंहटाएंआभार निशा जी ...
हटाएंबहुत सुंदर ढंग से परिचय करवाया आपने .... अनुपमाजी के ब्लॉग पर उन्हें पढ़ा है.... उनकी रचनाएँ प्रभावित करती हैं....
जवाब देंहटाएंबहुत आभार मोनिका जी ..!
हटाएंसुन्दर अनुभूति
जवाब देंहटाएंआभार अरविंद जी .
हटाएंनृत्य और संगीत से जुड़े होने का प्रभाव उनकी रचनाओं की कलात्मकता में स्पष्ट नजर आता है !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
अनुपमा की अनुभूतियों को संगीता जी ने पूरी तरह अनुभूत किया है और अनुभवों के हर रंग इस समीक्षा में हैं ...
जवाब देंहटाएंआभार वाणी जी ...!
हटाएंरश्मि दी ...सच कहा आपने ....सभी अनुभवों को रंग दिये हैं संगीता दी ने अपनी समीक्षा में| ...मैं अपने आप को सौभग्यशाली मानती हूँ कि आप जैसे गुणी ज्ञानी बडों का वृहद हस्त है मेरे ऊपर ...बहुत आभार रश्मि दी ...अनुभुति के लिये ....!!!!
हटाएंएक कवि हृदय अगर अन्य शास्त्रीय विधाओं में पारंगत हो तो उसकी रचनाओं से गुज़रना एक सुखद अनुभूति होती है। अनुपमा जी के साथ तो शास्त्रीय संगीत का विशाल अनुभव भी जुड़ा है, और आज आपके इस पुस्तक परिचय से यह भी मलूम हुआ कि उन्होंने प्रसिद्ध तारिका मीनाक्षी शेषाद्रि की मां से नृत्य की शिक्षा भी ली है, सो अब जब उनके काव्य पर फिर से नज़र डालता हूं तो पाता हूं कि उनमें नृत्य संगीत के विभिन्न आया क्यों रचे-बसे होते हैं।
जवाब देंहटाएंउनकी रनाओं का नियमित पाठक हूं, अब इस काव्य संग्रह को पढ़ता हूं।
बहुत आभार मनोज जी ...आपने भी समय समय पर बहुत प्रोत्साहित किया है ..!हृदय से आभार .
हटाएंसंगीता जी आपने एक बेहतरीन समीक्षा लिखी है।
जवाब देंहटाएंअनुपमा जी को पढ़ते हुए एक दिव्य अनुभूति होती है . संगीत की आराधना, इश्वर की आराधना , मन को तृप्त करती है और सुसुप्त अंतरात्मा को झकझोरती है . अनुभूति पढ़ तो नहीं पाया हूँ . लेकिन इच्छा प्रबल हो रही है,आपने इस बेहतरीन पुस्तक की सुँदर समीक्षा लिखी है / लेखिका और समीक्षक को हार्दिक बधाई . .
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आशीष जी |कोशिश करती हूँ अनुभुति आप तक पहुंचाने की |
हटाएं"मंद मंद था हवा का झोंका
जवाब देंहटाएंहल्की सी थी तपिश रवि की
वही दिया था मन का मेरा
जलता जाता......"
अनुपमा जी की इस सुन्दर कृति की सुन्दर समीक्षा
आभार
बहुत आभार अंजनि जी
हटाएंअनुपमा जी की पुस्तक विमोचन पर मिलना हुआ था और आज इतनी सुन्दर और सटीक समीक्षा पढकर और भी अच्छा लगा ।उनकी रचनायें तो ब्लोग पर पढते ही रहते थे उस दिन उनका गायन भी सुना।
जवाब देंहटाएंशुभ वचनों के लिये बहुत आभार वंदना जी .
हटाएंअनुपमा जी को प्रकाशित काव्य संग्रह के लिये बधाई. जबलपुर आकाशवाणी का संदर्भ सुन आत्मीयता जागना सहज है क्योंकि इन दिनों लगभग ढ़ाई वर्षों से जबलपुर में ही हूँ और परम पावनी नर्मदा जी जे जल से अपनी जीवन की नैया खे रहा हूँ. अनुपमा जी से अनुरोध है कि जबलपुर के विषय में कुछ और जानकारी दें. ब्लॉग जगत की विदुषी संगीता स्वरूप जी ने समीक्षा की है तो वह कलाकार निश्चय ही वंदनीय होगा.अनुपमा जी को सुना भी है और नियमित तौर पर पढ़ा भी है.
जवाब देंहटाएंजंगल में मंगल हो कैसे
गीत सुरीला संग हो जैसे
धुन अपनी ही राग जो गाये
संग झाँझर झंकार सुनाये
सुन – सुन विहग भी बीन बजाए
घिर – घिर बादल रस बरसाए
टिपिर – टिपिर सुर ताल मिलाये ।
शब्द चयन और धव्न्यात्मकता देखते ही बनती है, मेरी हार्दिक शुभकामनायें.
स्नेही वचनों के लिये बहुत आभार अरुण जी |मेरा जन्म स्थान जबलपुर ही है |जबलपुर का नाम सुन कर बहुत खुशी होती है | अब जबलपुर छोड़े हुए काफी समय हो गया |आजकल मुम्बई निवास स्थान है |आपसे निवेदन है ...ब्लोग पर आते रहें और कवितायें पढ़ते रहें|
हटाएंअच्छी पुस्तक समीक्षा.
जवाब देंहटाएंaabhaar ..
हटाएंआपके इस खूबसूरत पोस्ट का एक कतरा हमने सहेज लिया है साप्ताहिक महाबुलेटिन ,101 लिंक एक्सप्रेस के लिए , पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक , यही उद्देश्य है हमारा , उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी , टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें
जवाब देंहटाएंक्या बात है!!
जवाब देंहटाएंआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 25-06-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-921 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
बहुत आभार ग़ाफिल जी ...
हटाएंक्या बात है!!
जवाब देंहटाएंआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 25-06-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-921 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
बेहद खूबसूरत समीक्षा की है आपने. इस विधा में एकदम पारंगत हो गई हैं अब. अनुपमा जी की रचनाओं में मुझे संगीत सुनाई पड़ता है.
जवाब देंहटाएंसंगीता दी "अनुभुति" की समीक्षा के लिये हृदय से आभार ..!आज आपकी समीक्षा पढ़ कर एक नया आत्मविश्वास मिला है |कवि जैसा भी लिखे ...समीक्षक उसे एक सुरक्षित मंच देता है |आज इतनी खुशी है मुझे कि अपने हृदय के उद्गार मैं ठीक से व्यक्त भी नहीं कर पाउंगी |जब से ब्लोग बनाया था तभी से ही आपका सतत प्रोत्साहन मिलता रहा है |आपकी प्रतिक्रिया की मैं हमेशा राह देखा करती थी |आज ये समीक्षा पढ़ कर लग रहा है जैसे सपना सा सच हो गया है ...!!सच मे ये समीक्षा बहुत मूल्यवान है मेरे लिये ...!पुन: आभार आपका ...अपना स्नेह व आशिर्वाद बनाये रहियेगा ...!!
जवाब देंहटाएंबहुत आभार अजय जी ..
जवाब देंहटाएंविलम्ब के लिए क्षमा...संगीता दी और अनुपमा जी.
जवाब देंहटाएंसंगीता दी, आपसे पहले ही सुन चुकी हूँ अनुपमा जी की तारीफ़...मगर ये समीक्षा पढ़ कर और जान गयी उन्हें.
मैं खुद उनकी,उनकी रचनाओं की,उनके संगीत की "हार्ड कोर फेन " हूँ.......................
अनुभूति जुटाती हूँ कहीं से.....और पढ़ कर सीखती हूँ....मीठा मधुर लिखना.....
ढेर सारी बधाई और शुभकामनाये...
शुक्रिया संगीता दी.
सादर
अनु
सुन्दर पुस्तक परिचय ...
जवाब देंहटाएंजीवन है तो चलना है / जग चार दिनों का मेला है / इक रोज़ यहाँ ,इक रोज़ वहाँ / हाँ ये ही रैन बसेरा है ।
जवाब देंहटाएंकृति और कृति कारा का सुन्दर परिचय दिया है आपने इनकी सांगीतिक सरस रचनाए हमने कई मर्तबा सुनी हैं .वर्तनी की अशुद्धियाँ बहुत सारे ब्लोगी नजर अंदाज़ किए हैं .शुक्रिया आपका इस और तवज्जो देने का ... .. .कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
सोमवार, 25 जून 2012
नींद से महरूम रह जाना उकसाता है जंक फ़ूड खाने को
http://veerubhai1947.blogspot.com/
वीरुभाई ,४३,३०९ ,सिल्वर वुड ड्राइव ,कैंटन ,मिशिगन ,४८ ,१८८ ,यू एस ए .