शनिवार, 18 अगस्त 2012

प्रेरक प्रसंग-39 : संयम का पाठ


प्रेरक प्रसंग-39
संयम का पाठ

बात 1926 की है। गांधी जी दक्षिण भारत की यात्रा पर थे। उनके साथ अन्य सहयोगियों के अलावा काकासाहेब कालेलकर भी थे। वे सुदूर दक्षिण में नागर-कोइल पहुंचे। वहां से कन्याकुमारी काफ़ी पास है। इस दौरे के पहले के किसी दौरे में गांधी जी कन्याकुमारी हो आए थे। वहां के मनोरम दृष्य ने उन्हें काफ़ी प्रभावित किया था। गांधी जहां ठहरे थे, उस घर के गृह-स्वामी को बुलाकर उन्होंने कहा, “काका को मैं कन्याकुमारी भेजना चाहता हूं। उनके लिए मोटर का प्रबंध कर दीजिए।”

कुछ देर के बाद उन्होंने देखा कि काकासाहेब अभी तक घर में ही बैठे हैं, तो उन्होंने गृहस्वामी को बुलाया और पूछा, “काका के जाने का प्रबंध हुआ या नहीं?”

किसी को काम सौंपने के बाद उसके बारे में दर्याफ़्त करते रहना बापू की आदत में शुमार नहीं था। फिर भी उन्होंने ऐसा किया। यह स्पष्ट कर रहा था कि कन्याकुमारी से गांधी जी काफ़ी प्रभावित थे। स्वामी विवेकानन्द भी वहां जाकर भावावेश में आ गए थे और समुद्र में कूद कर कुछ दूर के एक बड़े पत्थर तक तैरते गए थे।

काकासाहेब ने बापू से पूछा, “आप भी आएंगे न?”

बापू ने कहा, “बार-बार जाना मेरे नसीब में नहीं है। एक दफ़ा हो आया इतना ही काफ़ी है।”

इस जवाब से काकासाहेब को दुख हुआ। वे चाहते थे कि बापू भी साथ जाएं। बापू ने काकासाहेब को नाराज देख कर गंभीरता से कहा, “देखो, इतना बड़ा आंदोलन लिए बैठा हूं। हज़ारों स्वयंसेवक देश के कार्य में लगे हुए हैं। अगर मैं रमणीय दृश्य देखने का लोभ संवरण न कर सकूं, तो सबके सब स्वयंसेवक मेरा ही अनुकरण करने लगेंगे। अब हिसाब लगाओ कि इस तरह कितने लोगों की सेवा से देश वंचित होगा? मेरे लिए संयम रखना ही अच्छा है।”122
(साभार : बापू की झांकियां काकासाहेब कालेलकर)

8 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर....
    ऐसे प्रेरक प्रसंग सिखा जाते हैं हमें एक पाठ....
    आभार
    अनु

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  2. कुछ जीवन होते ही ऐसे हें कि उनका हर कदम अनुकरणीय होता है . प्रेरक प्रसंग कुछ न कुछ सिखा कर ही जाते हें.

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  3. अपनी खुशी को देश की सेवा में बलिदान करने वाले बापू के जीवन में आए अनेक दृष्टांत आज भी हम सबके लिए अनुकरणीय है। यह प्रेरक प्रसंग जीवन के हर क्षेत्र में सफलता की कुंजी खोलने में सार्थक सिद्ध होगा । इस अनुकरणीय प्रसंग की प्रस्तुति के लिए आपका विशेष आभार।

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  4. यही तो आदर्श औरों से अलग बनाते हैं और तभी अनुकरणीय होते हैं।

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  5. खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित
    है जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है, स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध
    लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है, पर
    हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री
    भी झलकता है...

    हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने दिया है.
    .. वेद जी को अपने संगीत कि
    प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.
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