किन्तु बुद्धि नित खड़ी ताक में
रहती घात लगाए
कब जीवन का ज्वार शिथिल हो
कब वह उसे दबाये ।
और सत्य ही , जभी रुधिर का
वेग तनिक कम होता
सुस्ताने को कहीं ठहर
जाता जीवन का सोता ।
बुद्धि फेंकती तुरत जाल निज
मानव फंस जाता है
नयी नयी उलझने लिए
जीवन सम्मुख आता है ।
क्षमा या कि प्रतिकार , जगत में
क्या कर्त्तव्य मनुज का ?
मरण या कि उच्छेद ? उचित
उपचार कौन है रूज का ?
बल - विवेक में कौन श्रेष्ठ है ,
असि वरेण्य या अनुनय ?
पूजनीय रुधिराक्त विजय
या करुणा - धौत पराजय ?
दो में कौन पुनीत शिखा है ?
आत्मा की या मन की ?
शमित - तेज वय की मति शिव
या गति उच्छल यौवन की ?
जीवन की है श्रांति घोर ,हम
जिसको वय कहते हैं ,
थके सिंह आदर्श ढूंढते ,
व्यंग - वाण सहते हैं ।
वय हो बुद्धि - अधीन चक्र पर
विवश घूमता जाता
भ्रम को रोक समय को उत्तर ,
तुरत नहीं दे पाता ।
तब तक तेज लूट पौरुष का
काल चला जाता है ।
वय - जड़ मानव ग्लानि - मग्न हो
रोता - पछताता है ।
वय का फल भोगता रहा मैं
रुका सुयोधन - घर में
रही वीरता पड़ी तड़पती
बंद अस्थि- पंजर में ।
न तो कौरवों का हित साधा
और न पांडव का ही ,
द्वंद्व - बीच उलझा कर रक्खा
वय ने मुझे सदा ही ।
धर्म , स्नेह , दोनों प्यारे थे
बड़ा कठिन निर्णय था ,
अत: एक को देह , दूसरे-
को दे दिया हृदय था ।
किन्तु , फटी जब घटा , ज्योति
जीवन की पड़ी दिखाई
सहसा सैकत - बीच स्नेह की
धार उमड़ कर छाई ।
धर्म पराजित हुआ , स्नेह का
डंका बजा विजय का ,
मिली देह भी उसे , दान था
जिसको मिला हृदय था ।
भीष्म न गिरा पार्थ के शर से ,
गिरा भीष्म का वय था ,
वय का तिमिर भेद वह मेरा ,
यौवन हुआ उदय था ।
क्रमश:
बहुत सुन्दर शुरुयात है ...
जवाब देंहटाएंभीष्म न गिरा पार्थ के शर से ,
जवाब देंहटाएंगिरा भीष्म का वय था ,
वय का तिमिर भेद वह मेरा ,
यौवन हुआ उदय था ।
बहुत आनंद आ रहा है पढ़ने में..
👌
हटाएंBahut aanand aa raha hai ise padhne me!
जवाब देंहटाएंसभी कुछ अर्थपूर्ण है....अति सुन्दर!...शिवरात्री के पावन पर्व पर हार्दिक बधाई!
जवाब देंहटाएंजीवन की है श्रांति घोर ,हम
जवाब देंहटाएंजिसको वय कहते हैं ,
थके सिंह आदर्श ढूंढते ,
व्यंग - वाण सहते हैं ।
अहा! कितनी गूढ़ बात कह गए दिनकर जी।
अर्थपूर्ण और बेहतरीन रचना ..
जवाब देंहटाएंक्षमा या कि प्रतिकार,बल या कि विवेक,आत्मा या कि मन-यह दुविधा अस्तित्व के साथ ही जीवन में आई प्रतीत होती है। तभी देव-दानव दोनों इस द्वंद्व के शिकार दिखते हैं!
जवाब देंहटाएंबहुत आनंद आ रहा है पढ़ने में| धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंअनुपम भाव संयोजन के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंभीष्म न गिरा पार्थ के शर से ,
जवाब देंहटाएंगिरा भीष्म का वय था ,
वय का तिमिर भेद वह मेरा ,
यौवन हुआ उदय था ।
दिनकर जी को कभी पढ़ना एक नया अनुभव होता है फिर चाहे अनुशीलन 'उर्वशी 'का हो या कुरुक्षेत्र का
AB PACHHTAYE HOT KYA JAB CHIDIYA CHUG GAYI KHET...IS Lokokti ka ye sabse bada aur dukhdayi udaahran hai hamare itihas ka.
जवाब देंहटाएंbahut sunder shrinkhla.
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंab pachhtaaye...line ko pahale pooree karane kaa kasht kare.
हटाएंऊपर ये लोकोक्ति पूरी ही लिखी है ...
हटाएंअब पछताए क्या होत जब चिड़ियाँ चुग गयी खेत
phir se padhna achha lag raha hai... bahut badhiya...
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