बुधवार, 29 फ़रवरी 2012


हरिवंशराय बच्चन

10. साथी, सो न, कर कुछ बात

साथी, सो न, कर कुछ बात !

बोलते    उडुगण   परस्पर,
तरु  दलों  में मन्द ‘मरमर’,
बात  करतीं सरि-लहरियां कूल से जल-स्नात!
साथी, सो न, कर कुछ बात !

बात  करते   सो  गया  तू,
स्वप्न  में फिर  खो गया तू,
रह  गया  मैं  और  आधी  बात, आधी रात!
साथी, सो न, कर कुछ बात !

पूर्ण  कर   दे  वह  कहानी,
जो   शुरू  की  थी  सुनानी,
आदि  जिसका हर निशा  में, अन्त चिर अज्ञात!
साथी, सो न, कर कुछ बात !
***

6 टिप्‍पणियां:

  1. पूर्ण कर दे वह कहानी,
    जो शुरू की थी सुनानी,
    आदि जिसका हर निशा में, अन्त चिर अज्ञात!
    साथी, सो न, कर कुछ बात !
    subh-subh bahut achchi kavita padhwane ke liye dhanyavad.

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  2. हरिवंश राय बच्चन जी कोमल भावनाओं के कवि थे । उनका व्यक्तिगत जीवन कल्पनाओं की बुनियाद पर निर्मित नही हुआ था बल्कि .यथार्थ का जीता जागता स्वरूप ही उन्हें एक नई जीवन दृष्टि प्रदान करता रहा जिसके आलोक में उनकी अंतस की अभिव्यक्तियां हर सुधी व्यक्ति को आत्मीय सी लगती है एवं उनके जिए हुए हर लमहे हरेक व्यक्ति से रागात्मक लगाव बरबस ही स्थापित कर जाते है । उन्होंने अपने जीवन में निराशावादी भावों को कभी भी प्रश्रय नही दिया एवं उस चिर शाश्वत सत्य को अपनी कविताओं में समावेश किया । कुछ ऐसे ही भावों की पृष्ठभूमि में रची गयी उनकी कविता "साथी, सो न, कर कुछ बात" इस बात का द्योतक है कि जीवन की कहानी को कहने-सुनने से ही उसकी स्पष्ट रूप-रेखा भी उभर कर सामने आती है, अन्यथा हर बातें गुमनामी की दशा में सुषुप्त होकर अर्थहीन सी हो जाती हैं । उस भावमयी कविता को प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद । सर, कुछ अस्वस्थ चल रहा हूं ,इसीलिए आपके पोस्ट पर आने में विलंब हुआ । धन्यवाद ।

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  3. bahut anupam rachanaa.badhaai aapko.


    आप का बहुत बहुत धन्यवाद की आप मेरे ब्लॉग पर पधारे और इतने अच्छे सन्देश दिए /आपका आशीर्वाद मेरी रचनाओं को हमेशा इसी तरह मिलता रहे यही कामना है /मेरी नई पोस्ट आपकी टिप्पड़ी के इन्तजार में हैं/ जरुर पधारिये /लिंक है /
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