प्रेरक प्रसंग-25
प्रेरक प्रसंग – 1 : मानव सेवा, प्रेरक-प्रसंग-2 : सहूलियत का इस्तेमाल, प्रेरक प्रसंग-3 : ग़रीबों को याद कीजिए, प्रेरक प्रसंग-4 : प्रभावकारी अहिंसक शस्त्र, प्रेरक प्रसंग-5 : प्रेम और हमदर्दी, प्रेरक प्रसंग-6 : कष्ट का कोई अनुभव नहीं, प्रेरक प्रसंग-7 : छोटी-छोटी बातों का महत्व, प्रेरक प्रसंग-8 : फूलाहार से स्वागत, प्रेरक प्रसंग-९ : बापू का एक पाप, प्रेरक-प्रसंग-10 : परपीड़ा, प्रेरक प्रसंग-11 : नियम भंग कैसे करूं?, प्रेरक-प्रसंग-12 : स्वाद-इंद्रिय पर विजय, प्रेरक प्रसंग–13 : सौ सुधारकों का करती है काम अकेल..., प्रेरक प्रसंग-14 : जलती रेत पर नंगे पैर, प्रेरक प्रसंग-15 : वक़्त की पाबंदी, प्रेरक प्रसंग-16 : सफ़ाई – ज्ञान का प्रारंभ, प्रेरक प्रसंग-17 : नाम –गांधी, जाति – किसान, धंधा ..., प्रेरक प्रसंग-18 : बच्चों के साथ तैरने का आनंद, प्रेरक प्रसंग-19 : मल परीक्षा – बापू का आश्चर्यजनक..., प्रेरक प्रसंग–20 : चप्पल की मरम्मत, प्रेरक प्रसंग-21 : हर काम भगवान की पूजा, प्रेरक प्रसंग-22 : भूल का अनोखा प्रायश्चित, प्रेरक प्रसंग-23 कुर्ता क्यों नहीं पहनते? प्रेरक प्रसंग-24 : सेवामूर्ति बापू
आश्रम के नियमों का उल्लंघन
प्रस्तुतकर्ता : मनोज कुमार
बापू बा के कमरे में थे। गुजराती में तेज़ आवाज़ में बातें कर रहे थे। आवाज़ की तल्ख़ी बता रही थी कि मामला कुछ गंभीर है। ऐसा लग रहा था कि वे बा के ऊपर कोई आरोप लगा रहे हों। उसी समय मीरा बहन उनसे मिलने वहां पहुंची थीं। उनकी समझ में गुजराती भाषा आती नहीं थी, इसलिए क्या माज़रा है, वो समझ नहीं पाईं।
अगले दिन प्रार्थना सभा में बापू ने जो कहा, वह सबके लिए आश्चर्य का विषय था। अमूमन वे सभा में लोगों के प्रश्न आमंत्रित करते थे, उस दिन ऐसा किए बिना वे बोलने लगे। “नवजीवन में लगातार छप रही मेरी आत्मकथा तो आप सब पढ़ ही रहे होंगे। इसमें आपने कई अध्यायों में देखा होगा कि मैंने हमारी धर्मपत्नी कस्तूरबा बाई की कितनी प्रशंसा की है। मेरे जीवन के सुख-दुख, उतार-चढ़ाव में उन्होंने मेरा क़दम-क़दम पर साथ दिया है। मेरे राह आदर्श भरे रहे हैं, उस पर चलने में वो कभी भी बाधा नहीं बनीं। जब मैंने अपनी इच्छा से ब्रह्मचर्य व्रत धारण करने का निर्णय लिया तो न सिर्फ़ उन्होंने मेरे इस निर्णय का सम्मान किया, बल्कि मेरे लिए शक्ति का स्रोत बन कर मेरे साथ रहीं। इस सब के पीछे मुझे लगता है कि यह एक अंध पतिभक्ति थी।”
अगली पंक्ति में बा बैठी यह सब सुन रही थीं। उनका चेहरा निर्विकार था। बापू कहे जा रहे थे, “पतिभक्ति की मज़बूरी में लगता है कि उन्होंने हालाकि सांसारिक वस्तुओं का परित्याग तो कर दिया है पर उसको पाने की इच्छा अभी भी उनमें बाक़ी है। इसका परिणाम यह हुआ है कि लोगों से जो भेंट मिलती रही है, उनमे से लगभग एक साल पहले उन्होंने दो सौ रुपए अलग रख लिए थे। इसे मैं आश्रम के नियमों का उल्लंघन मानता हूं। आप सभी जानते हैं कि आश्रम का नियम है कि व्यक्तिगत उपहार भी निजी उपयोग के लिए नहीं रखे जा सकते। इसलिए बा ने जो किया है उसे मैं चोरी की श्रेणी में रखता हूं। बा ने इस बात के मालूम हो जाने के बाद पश्चाताप भी किया था। मैं समझ रहा था कि उनका पश्चाताप सही था, किन्तु कुछ ही दिन पहले एक आगन्तुक ने चार रुपए भेंट में दिए थे। बा ने इस राशि को प्रबंधक को न देकर अपने पास रख ली। इसका मुझे बहुत दुख है। हद तो यह है कि आश्रम के एक वरिष्ठ सदस्य ने उन्हें ऐसा करते देखा, किन्तु शिष्टाचार को निभाते हुए उन्होंने इस विषय को किसी और को बताना उचित नहीं समझा। कल उन्होंने मगनलाल भाई को इस घटना के बारे में जानकारी दी। मगनभाई ने डरते हुए ही सही बा से पैसे मांगा और बा ने शर्मिंदगी के साथ पैसे वापस कर दिए। उन्होंने ऐसी ग़लती फिर से न करने का वचन मुझे दिया है।
“आश्रम में किसी प्रकार की गड़बड़ी या हेरा-फेरी को मैं अपने भीतर की ग़लतियों का प्रतिबिम्ब मानता हूं। आश्रम मेरे लिए मेरी सर्वश्रेष्ठ रचना है। इसके माध्यम से मैं ईश्वर के दर्शन करना चाहता हूं।”
बा चुपचाप बैठी रहीं। किसी कि हिम्मत नहीं हो रही थी कि वे बा की ओर देख सकें। लोगों की आंखों से झर-झर आंसू बह रहे थे। बा अपनी साड़ी की कोर से आंखें पोंछ रही थीं।
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ईमानदारी का अद्भुत प्रसंग
जवाब देंहटाएंBahut hee adbhut prasang....Baa ke liye dukh bhee hota hai!
जवाब देंहटाएं“आश्रम में किसी प्रकार की गड़बड़ी या हेरा-फेरी को मैं अपने भीतर की ग़लतियों का प्रतिबिम्ब मानता हूं। आश्रम मेरे लिए मेरी सर्वश्रेष्ठ रचना है। इसके माध्यम से मैं ईश्वर के दर्शन करना चाहता हूं।”
जवाब देंहटाएंउक्त कथन की पृष्ठभूमि में बापू की उस अलौकिक जीवन दर्शन की रूप-रेखा सामने आती है जिसके कारण वे महान हुए । उनकी मान्यता रही होगी कि जिस आश्रम या संस्था के लोग चरित्रवान नही होंगे तो उस संस्था की वह गरिमा नही रहेगी जिसके लिए आम लोगों में उसकी पहचान बनी रहती है । बापू के बारे में अच्छी जानकारी मिली । धन्यवाद ।
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 27-02-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
अद्भुत प्रेरक प्रसंग। काश इन जीवन मुल्यों को जीवन में हम अपना पाते।
जवाब देंहटाएंbahut achcha lga padhkr phle kabhi nhi pdha tha.thanks.
जवाब देंहटाएंवास्तव में प्रेरक और प्रेरणादायक प्रसंग है.
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