शूरधर्म है अभय दहकते
अंगारों पर चलना
शूरधर्म है शाणित असि पर
धर कर चरण मचलना |
शूरधर्म कहते हैं छाती तान
तीर खाने को
शूरधर्म कहते हँस कर
हालाहल पी जाने को |
आग हथेली पर सुलगा कर
सिर का हविष् चढाना
शूरधर्म है जग को अनुपम
बलि का पाठ पढ़ाना |
सबसे बड़ा धर्म है नर का
सदा प्रज्वलित रहना
दाहक शक्ति समेट स्पर्श भी
नहीं किसी का सहना |
बुझा बुद्धि का दीप वीरवर
आँख मूँद चलते हैं
उछल वेदिका पर चढ जाते
और स्वयं बलते हैं |
बात पूछने को विवेक से
जभी वीरता जाती
पी जाती अपमान पतित हो
अपना तेज गंवाती |
सच है बुद्धि-कलश में जल है
शीतल सुधा तरल है
पर ,भूलो मत , कुसमय में
हो जाता वही गरल है |
सदा नहीं मानापमान की
बुद्धि उचित सुधि लेती
करती बहुत विचार , अग्नि की
शिखा बुझा है देती |
उसने ही दी बुझा तुम्हारे
पौरुष की चिंगारी
जली न आँख देख कर खिंचती
द्रुपद- सुता की साड़ी |
बाँध उसी ने मुझे द्विधा से
बना दिया कायर था
जगूँ-जगूँ जब तक , तब तक तो
निकल चुका अवसर था |
यौवन चलता सदा गर्व से
सिर ताने , शर खींचे
झुकने लगता किन्तु क्षीण बल
वे विवेक के नीचे |
यौवन के उच्छल प्रवाह को
देख मौन , मन मारे
सहमी हुई बुद्धि रहती है
निश्छल खड़ी किनारे |
डरती है , बह जाए नहीं
तिनके - सी इस धारा में
प्लावन - भीत स्वयं छिपती
फिरती अपनी कारा मे
हिम-विमुक्त , निर्विघ्न , तपस्या
पर खिलता यौवन है
नयी दीप्ति, नूतन सौरभ से
रहता भरा भुवन है ||
क्रमश:
प्रथम सर्ग -- भाग - १ / भाग -२
द्वितीय सर्ग --- भाग -- १ / भाग -- २ / भाग -- ३
तृतीय सर्ग --- भाग -- १ /भाग -२
चतुर्थ सर्ग ---- भाग -१ / भाग -२ / भाग - ३ /भाग -४ /भाग - ५ .
द्वितीय सर्ग --- भाग -- १ / भाग -- २ / भाग -- ३
तृतीय सर्ग --- भाग -- १ /भाग -२
चतुर्थ सर्ग ---- भाग -१ / भाग -२ / भाग - ३ /भाग -४ /भाग - ५ .
अंग-अंग में ऊर्जा देने वाली ... दिनकर जी बिहार की माती के लाल है
जवाब देंहटाएंयह अमर कृति मैंने कभी पढ़ी ही नहीं थी। आपके साथ पढ़ते जा रहा हूं।
जवाब देंहटाएंmaine ik bar padhi thi vidhyarthi jivn me dubara mauka mil rha hai dhanyavad sangeeta jee.
जवाब देंहटाएंLajawab!
जवाब देंहटाएंअभी हाल ही में मेरे आठ वर्षीया बेटे ने 'चाँद का कुरता ' नमक बड़ी प्यारी कविता 'दिनकर ' जी की स्कूल में सुनायी ..
जवाब देंहटाएंkalamdaan.blogspot.in
सच है बुद्धि-कलश में जल है
जवाब देंहटाएंशीतल सुधा तरल है
पर ,भूलो मत , कुसमय में
हो जाता वही गरल है |
सदा नहीं मानापमान की
बुद्धि उचित सुधि लेती
करती बहुत विचार , अग्नि की
शिखा बुझा है देती
गज़ब गज़ब गज़ब ..
यौवन के उच्छल प्रवाह को
जवाब देंहटाएंदेख मौन , मन मारे
सहमी हुई बुद्धि रहती है
निश्छल खड़ी किनारे |
अदभुद...
आभार संगीता जी..
sunder prayas...man ko bar bar padhne k liye udwelit karta yah kurukshetr.
जवाब देंहटाएंaabhar.
दिनकर जी की यह कृति साहित्य जगत के लिए अनमोल धरोहर है । मेरा यह अनुभव है कि इसे जितनी बार पढ़ा जाए एक नए व्याख्या का स़ृजन सा होने लगता है । कुरूक्षेत्र में उल्लिखित शब्द केवल पुस्तकों तक सीमित न रह कर जीवन के सत्य से परिचय करा जाते हैं । मैं इसे रोज पढ़ता हूं पर ये बात जिगर है कि समयाभाव के कारण इस पर अपनी कुछ प्रतिक्रिया नही दे पाता हूँ । यह पोस्ट आपके सोच का द्योतक है । समय इजाजत दे तो मेरे पोस्ट पर आकर मुझे भी प्रोत्साहित करें । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंHii
जवाब देंहटाएंशुरधर्म हैं अभय ढकते अंगारों पर चलना शुरधर्म हैं शांति आसी पर धर कर चरण मंचलना अर्थ
जवाब देंहटाएंGeeta
जवाब देंहटाएंGeeta Singh ahirwar
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