बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

तुम तूफ़ान समझ पाओगे?


हरिवंशराय बच्चन

8. तुम तूफ़ान समझ पाओगे

तुम तूफ़ान समझ पाओगे?

गीले बादल, पीले रजकण,
सूखे पत्ते, रूखे तृण घन
लेकर चलता करता ‘हरहर --- इसका गान समझ पाओगे?
तुम तूफ़ान समझ पाओगे?

गंध-भरा यह मंद पवन था,
लहराता  इससे मधुवन था,
सहसा इसका टूट गया जो स्वप्न महान, समझ पाओगे?
तुम तूफ़ान समझ पाओगे?

तोड़-मरोड़  विटप-लतिकाएं,
नोच-खसोट कुसुम-कलिकाएं,
जाता है अज्ञात दिशा को! हटो विहंगम, उड़ जाओगे!
तुम तूफ़ान समझ पाओगे?

13 टिप्‍पणियां:

  1. गहन विचार देती रचना ...
    आभार इसे पढवाने के लिए ...

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  2. बच्चन जी की एक दार्शनिक भावों से पूर्ण रचना!!

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  3. तूफ़ान के अंतर्मन में झाँकती और एक नये दृष्टिकोण से उसे व्याख्यायित करती अनमोल रचना ! आभार इसे हम तक पहुंचाने के लिये !

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  4. बेहद गहन रचना पढवाने के लिये आभार्।

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  5. एक गहन,सुन्दर रचना पढवाने का आभार.

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  6. गहन,और खूबसूरत रचना यहाँ पढ़वाने के लिए आपका आभार समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  7. तुम तूफ़ान समझ पाओगे?
    सिमसिम की तरह अब खुला है भेद बिग बी की दाढ़ी का .

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  8. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    http://charchamanch.blogspot.in/2012/02/777.html
    चर्चा मंच-777-:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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  9. एक गहन दार्शनिक चिंतन से उपजी काव्य-माधुरी.

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  10. हरिवंश जी की रचना !!..
    धन्यवाद ,हमारे समक्ष प्रस्तुत करने के लिए
    kalamdaan.blogspot.com

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  11. गहन चिंतनपूर्ण रचना पढवाने के लिये आभार..

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