भरी सभा में लाज द्रोपदी
की न गयी थी लूटी ,
वह तो यही कराल आग
थी निर्भय हो कर फूटी .
ज्यों ज्यों साड़ी विवश द्रोपदी
की खिंचती जाती थी ,
त्यों – त्यों वह आवृत ,
दुरग्नि यह नग्न हुयी जाती थी |
उसके कर्षित केश जाल में
केश खुले थे इसके ,
पुंजीभूत वासन उसका था
वेश खुले थे इसके |
दुरवस्था में घेर खड़ा था
उसे तपोबल उसका ,
एक दीप्त आलोक बन गया
था चीरांचल उसका |
पर , दुर्योधन की दुरग्नि
नंगी हो नाच रही थी
अपनी निर्लज्जता , देश का
पौरुष जांच रही थी |
किन्तु न जाने क्यों उस दिन
तुम हारे , मैं भी हारा ,
जाने , क्यों फूटी न भुजा को
फोड़ रक्त की धारा |
नर की कीर्ति- ध्वजा उस दिन
कट गयी देश में जड़ से
नारी ने सुर को टेरा ,
जिस दिन निराश हो नर से |
महासमर आरम्भ देश में
होना था उस दिन ही ,
उठा खड्ग यह पंक रुधिर से
धोना था उस दिन ही |
निर्दोषा, कुलवधू , एकवस्त्रा
को खींच महल से ,
दासी बना सभा में लाये
दुष्ट द्यूत के छल से |
और सभी के सम्मुख
लज्जा-वसन अभय हो खोलें
बुद्धि- विषण्ण वीर भारत के
किन्तु नहीं कुछ बोलें |
समझ सकेगा कौन धर्म की
यह नव रीति निराली ,
थूकेंगीं हम पर अवश्य
संततियां आने वाली |
उस दिन की स्मृति से छाती
अब भी जलने लगती है ,
भीतर कहीं छुरी कोई
हृत पर चलने लगती है |
धिक् धिक् मुझे , हुयी उत्पीड़ित
सम्मुख राज- वधूटी
आँखों के आगे अबला की
लाज खलों ने लूटी |
और रहा जीवित मैं , धरणी
फटी न दिग्गज डोला
गिरा न कोई वज्र , न अम्बर
गरज क्रोध में बोला |
जिया प्रज्ज्वलित अंगारे-सा
मैं आजीवन जग में
रुधिर नहीं था , आग पिघल कर
बहती थी रग -रग में |
यह जन कभी किसी का अनुचित
दर्प न सह सकता था
कहीं देख अन्याय किसी का
मौन न रह सकता था |
सो कलंक वह लगा , नहीं
धुल सकता जो धोने से
भीतर ही भीतर जलने से
या कष्ट फाड़ रोने से |
अपने वीर चरित पर तो मैं
प्रश्न लिए जाता हूँ
धर्मराज! पर , तुम्हें एक
उपदेश दिए जाता हूँ |
क्रमश:
प्रथम सर्ग -- भाग - १ / भाग -२
द्वितीय सर्ग --- भाग -- १ / भाग -- २ / भाग -- ३
तृतीय सर्ग --- भाग -- १ /भाग -२
चतुर्थ सर्ग ---- भाग -१ / भाग -२ / भाग - ३ /भाग -४
द्वितीय सर्ग --- भाग -- १ / भाग -- २ / भाग -- ३
तृतीय सर्ग --- भाग -- १ /भाग -२
चतुर्थ सर्ग ---- भाग -१ / भाग -२ / भाग - ३ /भाग -४
अपने वीर चरित पर तो मैं
जवाब देंहटाएंप्रश्न लिए जाता हूँ
धर्मराज! पर , तुम्हें एक
उपदेश दिए जाता हूँ |
महाभारत की कथा अनोखी है, आभार इस प्रस्तुति के लिये !
बेहतरीन भाव पूर्ण सार्थक रचना.....
जवाब देंहटाएंखबरनामा की ओर से आभार
आह ..कितना मार्मिक कितना प्रभावशाली
जवाब देंहटाएंसमझ सकेगा कौन धर्म की यह नव रीति निराली ,
थूकेंगीं हम पर अवश संततियां आने वाली
सच ही तो है.
sach me chaahe bheeshm kitna bhi pashchaatap karen lekin ye kalank to nahi dhul sakta.
जवाब देंहटाएंshukriya ham tak is ank ko pahuchane k liye.
सार्थक और प्रभावी प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंअपने वीर चरित पर तो मैं
जवाब देंहटाएंप्रश्न लिए जाता हूँ
धर्मराज! पर , तुम्हें एक
उपदेश दिए जाता हूँ |
very nice.