शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

संसद में जन लोकपाल बिल

संसद में जन लोकपाल बिल


अरुण चन्द्र रॉय

पिछले दस दिनों से देश अन्नामय है. जनता जिन अहिंसक आंदोलनों, क्रांति जो इतिहास की किताबों में था वह निकल कर रामलीला मैदान में आ गया है. इस से पूर्व जो छोटे मोटे आन्दोलन हुए हैं उनमे और इस आन्दोलन में एक भारी फर्क है. दिल्ली जैसे व्यस्त शहर में कोई ट्रैफिक जाम नहीं हुआ है. कोई तोड़ फोड़ या जबरदस्ती बंद नहीं हुआ है. फिर भी औसतन साठ हज़ार लोग रोज़ रामलीला मैदान पहुचे हैं. सब स्व प्रेरणा से हुआ है. राजनीतिक रैलियों की तरह कोई भाड़े पर नहीं आया है. कोई बिना टिकट यात्रा करके नहीं आया है. कोई जबरदस्ती बस को खींच कर नहीं लाया है.

उलटे कई ऐसे ऑटो ड्राइवर मिले हैं जिन्होंने फ्री सेवा दी है रामलीला मैदान तक. संक्षेप में कहें तो एक नया इतिहास लिखा जा रहा है.
इन सब के बीच राजनीतिक पार्टियां बार बार संसद की दुहाई दे रही हैं कि संसद सर्वोच्च है. लेकिन संसद की गरिमा कहाँ चली जाती है जब हमारे सांसद माइक उखाड़ कर एक दूसरे पर दे मारते हैं. ऐसे कई उदहारण हैं जब हमारे माननीय सांसदों के व्यवहार से हमारे संसद और लोकतंत्र को शर्मशार होना पड़ा है. एक उदहारण देखिये इस विडिओ में.
(http://www.metacafe.com/watch/86775/goverment_brawl_in_india/)

साथ ही,  सभी राजनीतिक पार्टियां एक सुर में कह रही हैं कि जन लोक पाल बिल को ३० अगस्त तक संसद में पास नहीं कराया जा सकता है. इस बारे में कुछ अधिक तो नहीं जनता मैं लेकिन मुझे याद आ रहा है कि २००९ के बजट सत्र में कई महत्वपूर्ण बिल संसद में बिना बहस के पास हुए. इकोनोमिक टाइम्स ने बहुत रोचक शीर्षक दिया था उस समय :"These days, bills get passed in Parliament faster than a T20 match". चौदहवी लोकसभा में स्पेशल इकोनोमिक ज़ोन एक्ट  जो कि किसी भी तरह से कम महत्वपूर्ण बिल नहीं था, को लोकसभा ने दो घंटे से कम के बहस में पास कर दिया था, जबकि इस बिल से हजारों किसानो का भविष्य जुड़ा था. भूमि अधिग्रहण जैसे मामले इस से जुड़े थे. इसी लोकसभा में ७००,००० करोड़ रूपये वाला भारतीय बजट जिस से हर एक भारतीय का जीवन प्रभावित होता है, केवल छः से दस घंटे के बहस में पास हो गया था. मार्च २००९ के सत्र में केवल २० मिनट में संसद ने ३६ में से १६ बिल को पास कर दिया था और बिना बहस के सभी सांसदों की सहमति बन गई थी. सांसदों के वेतन, भत्ते और अन्य सुविधाओं से जुड़े बिल बिना किसी बहस के पास हो जाते हैं. भूमि अधिग्रहण एवं पुनर्वास अधिनियम जैसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील बिल को लोकसभा ने २००८ में बिना बहस के पास कर दिया था जबकि राज्य सभा में जाकर यह अटक गई. यदि देखें तो दिनों दिन दोनों सदनों में बिलों पर बहस का समय लगातार घट रहा है. एक तो बैठकों के दिन कम रहे हैं दूसरे महत्वपूर्ण समय लोकसभा विपक्ष के वाकआउट में चला जाता है. ऐसे में यदि राजनीतिक दल कहते हैं कि जन लोकपाल बिल पर बहस कराया जाना और बिल पास करना संभव नहीं है तो यह विश्वसनीय नहीं लगता.

आज अन्ना को अनशन पर बैठे ११ दिन हो गए हैं. इतने दिनों में गंभीर सरकार इस बिल पर संसद के दोनों सदनों में चर्चा करा सकती थी. जो बातें आज हो रही हैं (इस आलेख के पढ़े जाने तक संसद में जन लोक पाल बिल पर चर्चा हो रही होगी) वह १६ अगस्त को भी हो सकती थी. लेकिन सरकार इस मुहिम की गंभीरता से प्रायः अनिभिज्ञ रही होगी. आज सरकार को अन्ना को मिल रहा जनसमर्थन चौंका रहा है.

१५वीं लोकसभा के पांचवे सत्र यानी २०१० के मानसून सत्र में लोकसभा में १८ बिल पेश हुए और पुराने लंबित बिलों को मिला कर २१ बिल पास हुए इसमें अधिकाश बिल बिना चर्चा के पास हुए जबकि कई बिल ऐसे थे जिनका देश के आम जन पर दूरगामी प्रभाव पड़ा है. इसी सत्र में संसद सदस्य के वेतन, भत्तों और पेंशन से जुड़ा बिल भी था जो बिना चर्चा हुए पास हो गया था. इसी तरह राज्य सभा के २२०वें सत्र (मानसून सत्र २०१०) में आठ बिल पेश हुए थे और लंबित बिलों को मिला कर कुल २१ बिल पास हुए. संसद सदस्य के वेतन, भत्ता और पेंशन (संशोधन) बिल २०१० पर राज्य सभा पर भी चर्चा नहीं हुई.  लेकिन जनलोकपाल बिल पर हमारे राजनीतिक दल देशवासियों को संसदीय प्रक्रिया की सीख दे रहे हैं.

यदि जन लोकपाल पर सभी राजनीतिक पार्टियों और सरकार ने इच्छा शक्ति दिखाई होती तो अन्ना का अनशन ग्यारहवें दिन नहीं पंहुचा होता. किन्तु जिस संसद के एक तिहाई सदस्य आपराधिक पृष्ठभूमि के हों उस सदन से सर्वव्यापी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर एक सशक्त लोकपाल का पास होना एक चुनौती से कम नहीं है. जो भी हो, देश को एक गाँधी और देशवासियों को राजनीतिक दलों और अपने प्रतिनिधियों को जानने का मौका मिला है.

13 टिप्‍पणियां:

  1. देखिये, अब आगे ही सब शुभ शुभ हो.

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  2. अरूण चंद्र रॉय जी,
    नमस्कार,
    आपके पोस्ट के संबंध में कुछ कहने पूर्व मैं Sir Issac Newton के Law of Motion के द्वितीय नियम का उल्लेख करना चाहूँगा जो स्वत: आपेक पोस्ट की सार्थकता को सिद्ध करनें में सार्थक सिद्ध होगा।
    नियम 2-- 'आवेग परिवर्तन की दर लगाए गए बल के समानुपाती होती है एवं परिवर्तन उसी दिशा में होता है है जिस दिशा में बल कार्य करता है ।'
    अन्ना हजारे साहब की स्थिति को कुछ लोग हास्यापद स्थिति में ला रहे हैं ।
    इतने दिनों के बाद आशा है कि आज कुछ आशा की किरण संसंद में दिखाई देगी । पोस्ट अच्छा लगा । धन्यवाद.

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  3. अपनी बात रखने के लिए सरकार के पास कोई ठोस और मजबूत तर्क नहीं हैं। वह किसी दिन कोई तर्क देती है तो अगले दिन उसे पलटना पड़ता है। आप द्वारा दिए गए प्रमाण सरकार के तर्कों की पोल खोलते हैं। इन्हीं सब कारणों से अन्ना के सन्देह निराधार नहीं हैं। सरकार जो करना चाहती है उसे एक ही दिन या कुछ घण्टों में कर लेती है और जिसे नहीं करना होती है उसके लिए नियम, कानून और संविधान की दुहाई देती हुई संसद की मर्यादा की बात करती है। जबकि सांसदों ने संसद की गरिमा कितनी रखी है, कुर्सी तोड़ना, माइक फेंकना, झगड़ा, अपशब्द बोलना आदि, यह किसी से छिपा नहीं है।
    सामयिक विचार प्रस्तुत करने के लिए आभार,

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  5. chaliye ther aae par thurust aae .

    char thashak se hava me latke bill ko ab zameen milegee ab sarkar aur nahee taal sakegee aisa mera vishvas hai......
    anhisa bahut badee shakti hai.....isme koi sanshay nahee ......ye vishv ke liye misal hai humara janaandolan.

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  6. अभी तो केवल संसद में चर्चा के लिए बिल रखने की बात कही गयी है ... जनसमर्थन को देखते हुए सरकार को यह करना पड़ रहा है .. इस बिल को किस रूप में माना जायेगा यह अभी पता नहीं .. भ्रष्ट लोग कैसे अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मारने का आदेश दे सकते हैं ..खैर जो हो जल्दी हो ..

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  7. जो भी हो, देश को एक गाँधी और देशवासियों को राजनीतिक दलों और अपने प्रतिनिधियों को जानने का मौका मिला है.

    सही आकलन और महत्वपूर्ण जानकारी देता लेख.. सरकार अब जाकर जगी है, जो इसके इरादों को जाहिर करता है.

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  8. जिस संसद के एक तिहाई सदस्य आपराधिक पृष्ठभूमि के हों उस सदन से सर्वव्यापी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर एक सशक्त लोकपाल का पास होना एक चुनौती से कम नहीं है

    देखिये

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  9. अरुण जी! रामलीला मैदान का दृश्य तो बस एक तीर्थ सा हो गया है.. मैं भी लगातार जाकर माथा झुका आता हूँ.. उधर भारतीय लोकतंत्र के तीर्थ कहे जाने वाले संसद भवन में जो चल रहा है, वह कहीं से भी सार्थक नहीं प्रतीत होता है.. न दिशा न दशा... जब सांसदों के वेतन वृद्धि का मामला होता है तो दलगत राजनीति से ऊपर उठाकर ध्वनिमत से पारित करवा लेते हैं.. मगर जब ऐसे विधेयकों की बारी आती है तो बगलें झांकते दीखते हैं..
    बहुत ही सार्थक आलेख!!

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  10. @लेकिन जनलोकपाल बिल पर हमारे राजनीतिक दल देशवासियों को संसदीय प्रक्रिया की सीख दे रहे हैं.


    नहीं... ये इम्तिहान है... हमारी संसदीय प्रणाली का. जब पूरा जन उमड़ पड़ा है तो यही तंत्र अपनी हेकड़ी दिखा रहा है...
    पता नहीं.... जन के लिए तंत्र है या फिर तंत्र ही ऐसा है जन के लिए ..... झूलते रहो..

    आंकड़ों ने लेख को पुष्ट किया है.. उम्दा लेख..

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  11. आपने बहुत सी बातें बिलकुल सच लिखी है आपने /जब इनके फायेदे की बातें होती हैं तो एक दिन में बिल पास हो जाते हैं /अगर जनता इतनी एक जुट नहीं होती तो ये बिल कभी पास नहीं होता /आज जनतंत्र की एकता की जीत हुई है /जनतंत्र की जीत से जनता ने अपनी शक्ति पहचानी है /अन्नाजी ने इस शक्ति को जगाया है /बस ऐसे ही अन्याय के खिलाफ सब एकता बनाकर एकजुट हो जाएँ तो इस देश का सुधार होने मैं कोई देर ना लगे /बहुत अच्छा लेख /इतनी अच्छी रचना के लिए बहुत बहुत बधाई आपको /

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  12. अन्ना जी की सफलता पर बधाई आपको.
    सुन्दर लेख की प्रस्तुति के लिए आभार.

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