जन्म --- 1398
निधन --- 1518
जा घट प्रेम न संचरे, सो घट जान समान ।
जैसे खाल लुहार की, साँस लेतु बिन प्रान ॥ 191 ॥
ज्यों नैनन में पूतली, त्यों मालिक घर माहिं ।
मूर्ख लोग न जानिए, बाहर ढ़ूंढ़त जांहि ॥ 192 ॥
जाके मुख माथा नहीं, नाहीं रूप कुरूप ।
पुछुप बास तें पामरा, ऐसा तत्व अनूप ॥ 193 ॥
जहाँ आप तहाँ आपदा, जहाँ संशय तहाँ रोग ।
कह कबीर यह क्यों मिटैं, चारों बाधक रोग ॥ 194 ॥
जाति न पूछो साधु की, पूछि लीजिए ज्ञान ।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान ॥ 195 ॥
जल की जमी में है रोपा, अभी सींचें सौ बार ।
कबिरा खलक न तजे, जामे कौन विचार ॥ 196 ॥
जहाँ ग्राहक तँह मैं नहीं, जँह मैं गाहक नाय ।
बिको न यक भरमत फिरे, पकड़ी शब्द की छाँय ॥ 197 ॥
झूठे सुख को सुख कहै, मानता है मन मोद ।
जगत चबेना काल का, कुछ मुख में कुछ गोद ॥ 198 ॥
जो तु चाहे मुक्ति को, छोड़ दे सबकी आस ।
मुक्त ही जैसा हो रहे, सब कुछ तेरे पास ॥ 199 ॥
जो जाने जीव आपना, करहीं जीव का सार ।
जीवा ऐसा पाहौना, मिले न दूजी बार ॥ 200 ॥
उज्ज्वल भक्ति ज्वाल है, उजियारा है नाम।
जवाब देंहटाएंकबिरा रस की गागरी, कबिरा सत कै धाम॥
सादर आभार।
प्रासंगिक दोहे ....!
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति !!
जवाब देंहटाएंसंगीता जी
जवाब देंहटाएंकबीरदास जी के दोहे आज सदियों पश्चात भी ज़िन्दगी के करीब हैं ..इनमे सच छुपा है ..
ज़िन्दगी का निचोड़ है इनमे..
ज्ञानवर्धक प्रस्तुति..
behatreen dohe
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंसादर नमन ।
जवाब देंहटाएंआभार ।।
झूठे सुख को सुख कहै, मानता है मन मोद ।
जवाब देंहटाएंजगत चबेना काल का, कुछ मुख में कुछ गोद ॥
कबीर सर्वकालिक हैं...समसामयिक है...और हमेशा रहेंगे...
kabeer k dohe aaaj bhi aise lagte hain jaise aaj k haalaton par hi kahe gaye hain.....lekin ye samsaamyikta hamesha na rahe ye dua hai.
जवाब देंहटाएंआपके इस प्रयास ने तो मेरा काम ही बिल्कुल सरल कर दिया।इसके लिए आपको धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंआपके इस प्रयास ने तो मेरा काम ही बिल्कुल सरल कर दिया।इसके लिए आपको धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंआपके इस प्रयास ने तो मेरा काम ही बिल्कुल सरल कर दिया।इसके लिए आपको धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंgyan ki barish
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