जन्म --- 1398
निधन --- 1518
पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात ।
देखत ही छिप जाएगा, ज्यों सारा परभात ॥ 211 ॥
पाहन पूजे हरि मिलें, तो मैं पूजौं पहार ।
याते ये चक्की भली, पीस खाय संसार ॥ 212 ॥
पत्ता बोला वृक्ष से, सुनो वृक्ष बनराय ।
अब के बिछुड़े ना मिले, दूर पड़ेंगे जाय ॥ 213 ॥
प्रेमभाव एक चाहिए, भेष अनेक बजाय ।
चाहे घर में बास कर, चाहे बन मे जाय ॥ 214 ॥
बन्धे को बँनधा मिले, छूटे कौन उपाय ।
कर संगति निरबन्ध की, पल में लेय छुड़ाय ॥ 215 ॥
बूँद पड़ी जो समुद्र में, ताहि जाने सब कोय ।
समुद्र समाना बूँद में, बूझै बिरला कोय ॥ 216 ॥
बाहर क्या दिखराइये, अन्तर जपिए राम ।
कहा काज संसार से, तुझे धनी से काम ॥ 217 ॥
बानी से पहचानिए, साम चोर की घात ।
अन्दर की करनी से सब, निकले मुँह की बात ॥ 218 ॥
बड़ा हुआ सो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर ।
पँछी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर ॥ 219 ॥
मूँड़ मुड़ाये हरि मिले, सब कोई लेय मुड़ाय ।
बार-बार के मुड़ते, भेड़ न बैकुण्ठ जाय ॥ 220 ॥
संगीता जी कबीर के कई दोहे पहली बार पढ रही हूँ । आभार आपका । पहले दोहे में सारा की जगह तारा है । ज्यों तारा परभात । जिस तरह प्रभात होने पर तारा छिप जाता है ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर दोहे है दी.....
जवाब देंहटाएंकबीर के दोहे समझने में आसान होते हैं..शायद आम जनमानस तक इसीलिए पहुंचे हैं ये...
आभार
अनु
तब से आज तक कबीर दूसरा ना हुआ ...
जवाब देंहटाएंमूँड़ मुड़ाये हरि मिले, सब कोई लेय मुड़ाय ।
जवाब देंहटाएंबार-बार के मुड़ते, भेड़ न बैकुण्ठ जाय ॥ 220 ॥
बहुत सार्थक दोहे ...!!
आभार दी ..
बानी से पहचानिए, साम चोर की घात ।
जवाब देंहटाएंअन्दर की करनी से सब, निकले मुँह की बात ॥ 218 ॥
बड़ा हुआ सो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर ।
पँछी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर ॥ 219 ॥
आह ..कितना सच सच..
कबीर के दोहों का सुन्दर संकलन किया है .आभार
जवाब देंहटाएंकबीर दोहावली शृंखला सुंदर लग रही है...एक सुंदर आयोजन.
जवाब देंहटाएंकबीर मेरे आत्मिक कवि हैं...
जवाब देंहटाएंकबीर दोहावली श्रंखला के लिए आभार...
जीवन माया राग है, क्षणभर की हर शान।
जवाब देंहटाएंकबिरा संगत साँच की, अमृत बहे जुबान।
सादर आभार।
school time yaad dila diya aaj in dohon ne.
जवाब देंहटाएंsunder shrinkhla.
Bahuthee achha lagta hain in dohonko padhana.
जवाब देंहटाएंखरगोश का संगीत राग रागेश्री
जवाब देंहटाएंपर आधारित है जो कि खमाज
थाट का सांध्यकालीन
राग है, स्वरों में कोमल निशाद और बाकी
स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है,
पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
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हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने दिया है.
.. वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि
चहचाहट से मिलती है.
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