चले गये तुम क्यों बापू ऐसे उँचे आदर्श छोड़ कर इन आदर्शों की चिता जली है आदर्शवाद का खोल ओढ़ कर । तुमने सपने में भारत की करी कल्पना कैसी थे ये जो भारत की हालत है क्या कुछ - कुछ ऐसी ही थी ? तुमने आंदोलन - हड़तालों से विश्व में क्रांति मचा दी थी इस क्रांति के द्वारा ही भारत को आज़ादी दिला दी थी। जब स्वतंत्र हुआ था भारत जनता कितनी उत्साहित थी घर - घर दीप जले खुशी के तेरी जय- जयकार हुई थी । अब सुन लो बापू तुम तेरे भारत की कैसी हालत है तेरे उन आदर्शों की कैसे चिता जल रही है ? हड़ताल शब्द को ही ले लो कितना अर्थ बदल गया है? पग -पग पर हड़तालों से तेरा आस्तित्व मिट चला है । अब आओ तुमको मैं कोई दफ़्तर दिखला दूँ तेरा कितना आस्तित्व है इसका तुझको अहसास करा दूँ। इस दफ़्तर में देखो तेरी तस्वीर लगी हुई है बड़ी श्रद्धा से शायद फूलों की माला चढ़ी हुई है। उसके नीचे भी देखो तेरे उपदेशों को लिखा है रिश्वत लेना महापाप है यह स्वर्णिम अक्षर में लिखा है । तेरे इस उपदेश को कितनों ने अपनाया है ? मैने तो हर शख्स को यहाँ रिश्वत लेते पाया है। कुछ और दिखाऊँ भारत की झाँकी ? या बस आत्मा तेरी काँप रही है ? भारत माँ तेरे जैसे बापू को आद्र स्वर में पुकार रही है । अब प्रश्न किया मैने जनता से क्या अहसास हुआ तुमको कुछ ढोल पीटते हैं बढ़ - चढ़ सब पर हम स्वयं में हैं कितने तुच्छ । ओ ! जनता के नेताओं तुम क्यों नही कुछ बोलते हो ? क्या गाँधी टोपी से ही केवल ऊँचे आदर्शों को तोलते हो । मत धोखे में रखो खुद को ये झूठा आवरण हटा दो गाँधी के आदर्शों को फिर भारत की धरती पर ला दो संगीता स्वरुप |
शनिवार, 2 अक्टूबर 2010
तेरे उपदेशों को
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समसामयिक प्रश्नों को उठाती यह कविता सार्थक है।
जवाब देंहटाएंबापू को शत-शत नमन!
बहुत सार्थक कविता|
जवाब देंहटाएंबापू को शत- शत नमन|
गांधीवाद की नितांत आवश्यकता है आज हिंदुस्तान के लिए . भ्रष्टाचार और हिंसा रूपी शैतान मुह बाये खड़ा है देश को निगल लेने को , कही धर्म के नाम पर तो कही क्षेत्रवाद के नाम पर . आपके उठाये प्रश्न अनुत्तरित है और गाँधी के पुनः अवतरण की बात जोह रहे है .आभार
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे से लय बद्ध की गयी सामयिक रचना पर बहुत बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक कविता|
जवाब देंहटाएंबहत ही सार्थक, कविता बिलकुल सामयिक
जवाब देंहटाएंसंगीता दी,
जवाब देंहटाएंआज आपकी कविता पढकर पताचला कि हमने क्याक्या खोया है!
ओ ! जनता के नेताओं
जवाब देंहटाएंतुम क्यों नही कुछ बोलते हो ?
क्या गाँधी टोपी से ही केवल
ऊँचे आदर्शों को तोलते हो ।
bahut hi badhiya
सार्थक प्रश्न उठाती लयबद्ध कविता सोचने को मजबूर करती है।
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक और सारगर्भित कविता संगीता जी ! कुछ ऐसे ही मेरे मनो भावों को आज 'कहाँ हो तुम बापू" में 'सुधीनामा' में पढ़िए ! आज हर व्यक्ति बापू के सामने शर्मिन्दा है कि हम उनके उच्च आदर्शों की विरासत की रक्षा नहीं कर पाए ! मुझे आदरणीय शरद जोशी जी के एक व्यंग लेख की बात याद आ रही है उसका आशय था कि जब निजी स्वार्थों के हित बापू के बताए सिद्धांतों के मार्ग पर चलना संभव नहीं रह गया तो हर शहर में एक मुख्य मार्ग का नाम महात्मा गांधी रोड रख दिया गया ताकि यह भ्रम बनारहे कि सारा भारत महात्मा गांधी के मार्ग पर चल रहा है ! आज की परिस्थितियों और परिवेश में उनका यह लेख कितना प्रासंगिक है यह आप भी अनुभव करती होंगी ! लाजवाब कविता के लिये बधाई !
जवाब देंहटाएंगांधी सदा से ही सामयिक रहे हैं बस हमें ही फ़ुर्सत नहीं उधर देखने की.
जवाब देंहटाएंचले गये तुम क्यों बापू
जवाब देंहटाएंऐसे उँचे आदर्श छोड़ कर
इन आदर्शों की चिता जली है
आदर्शवाद का खोल ओढ़ कर ।
बहुत अच्छी लगी आपकी ये रचना। बापू जी व लालबहादुर शास्त्री जी को शत शत नमन।
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंतुम मांसहीन, तुम रक्त हीन, हे अस्थिशेष! तुम अस्थिहीऩ,
तुम शुद्ध बुद्ध आत्मा केवल, हे चिर पुरान हे चिर नवीन !
तुम पूर्ण इकाई जीवन की, जिसमें असार भव-शून्य लीन,
आधार अमर, होगी जिस पर, भावी संस्कृति समासीन।
कोटि-कोटि नमन बापू, ‘मनोज’ पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
गाँधी जी के दिखाए रास्ते पर चल कर हम आज भी अपने वर्तमान हाल को सुधार सकते हैं लेकिन हमारी और विश्व की बदलती हुई मानसिकता ने उसे नकार दिया है. वे कालातीत आदर्श से हो गए हैं . देश की दुर्दशा तो देख कर हम रो रहे हैं उन्होंने तो इसके लिए जीवन ही अर्पित कर दिया था. कविता में ढाल कर बहुत सारी बात कह दीं हैं.
जवाब देंहटाएंजरुरत एक गाँधी की इन प्रश्नों का जबाब देने के लिए.
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना.