सोमवार, 25 अक्टूबर 2010

कविता :: इम्तहान

कविता

इम्तहान

संगीता स्वरूप

ज़िंदगी में इम्तहान तो
हर घड़ी चला करते हैं
कुछ स्वयं आ जाते हैं सामने
तो कुछ हम खुद चुन लिया करते हैं
और जो बचते हैं वो
हम पर थोप दिए जाते हैं।

और मान लिया जाता है कि
ज़िंदगी के इम्तिहान में
हमें सफल होना है।

यूँ ज़िंदगी से
जद्द-ओ -जहद करते हुए
हर इंसान
कदम दर कदम
आगे बढ़ता है
हर लम्हा कुछ
नया खोजते हुए
कुछ नया चाहते हुए
अपनी ख्वाहिशों को
अपनों पर लुटाते हुए।

क्या पता ऐसा करना
उसकी मजबूरी होती है या ज़रूरत ?
या फिर अपनों के प्रति
श्रद्धा या क़ुर्बानी
पर प्यार भरी डगर पर
चलते - चलते वो इंसान
अचानक ख़त्म कर देता है
अपनी कहानी॥

और फिर -
एक नाकाम सी कोशिश में
सब कुछ भूलने का प्रयास करते हुए
स्वयं उलझ कर रह जाता है

23 टिप्‍पणियां:

  1. ज़िन्दगी इम्तहान लेती है। और उससे तप कर इंसान कुंदन बन निकलता है। जो उलझा वो तो .....!

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  2. जीवन में प्रतिपल परीक्षा देते इंसान के संघर्ष की अनूठी दास्तान!!

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  3. ज़िंदगी सतत परीक्षाओं की एक लंबी श्रृंखला है जिनमें चाहे अनचाहे बैठना हमारी विवशता है ! जो इन चुनौतियों को बहादुरी से स्वीकार कर सफल हो जाता है यश और जीत का सेहरा उसीके माथे बँधता है और जो इनसे घबरा कर हार जाता है अवसाद और निराशा के गव्हर में कहीं खो जाता है ! बहुत सुन्दर रचना ! बधाई एवं शुभकामनाएं !

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  4. ..."और फिर -
    एक नाकाम सी कोशिश में
    सब कुछ भूलने का प्रयास करते हुए
    स्वयं उलझ कर रह जाता है "....सचमुच जीवन के इम्तहान कई बार थोप दिए जाते हैं.. अनितिम पंक्तियाँ बहुत अच्छी हैं.. सुंदर कविता !

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  5. यही तो ज़िन्दगी है हर कदम पर इम्तिहान लेती है……………जो सफ़ल होता है उसी पर मेहरबान होती है फिर चाहे इम्तिहान ज़िन्दगी का हो या कोई और्……………बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  6. हाँ, जिन्दगी एक इन्तिहाँ ही तो है, जिसको पास और फेल होने के चक्कर में इंसान पिसता रहता है. एक इन्तिहाँ पास कर लिया तो दूसरा सामने खुद बा खुद आ जाता है. आख़िर कहाँ तक इन इन्तिहानों से गुजार कर जियें हम. लेकिन ये इंसान की नियति है और इसको देना ही होगा.

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  7. बहुत ही संवेदनशील कविता है....ज़िन्दगी का इम्तहान ही ऐसा है जो कभी ख़त्म नहीं होता...ज़िन्दगी ख़त्म हो जाती है

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  8. Imtehaan!...jindagi mein kadam kadam par imtehaan dena padta hai...kabhi ham paas ho jaate hai, to kabhi fail!...sundar prastuti!

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  9. सच ही कहा है "जिंदगी इम्तिहान लेती " हर एक इन्सान उसमे सफल भी होना चाहता है और पूरी कोशिश भी करता है हर कोई किसी न किसी हद तक तो सफल हो जाता है पर कुछ लोग इस असफलता कुछ ज्यादा ही निराश हो जाते हैं

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  10. कर्तव्य,जिम्मेदारी और अभिलाषाओं के बीच स्वयं की कशमकश ..बेहतरीन लिखा है आपने.

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  11. ज़िन्दगी के महत्वपूर्ण पहलू में सतत परीक्षाओं से गुज़रना भी एक है..............सच है, कभी मनुष्य खुद इनका चुनाव करता है तो कभी परिस्थितियाँ , महत्वाकांक्षाओं और स्थितियों के बिच उलझे मन की कशमश बड़े संवेदनशील ढंग से प्रस्तुत की आपने ...

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  12. वर्तमान परिप्रेक्ष्य में आपकी कविता जिंदगी की कड़वी सच्चाई बयान कर रही है । जरूरी नहीं हर इम्तहान में हम पास हो जाए ।

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  13. जिंदगी की असलियत से रूबरू कराती है आपकी कविता ।

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  14. क्या बात है...! यहाँ इतना बड़ा मेला यूँ ही नहीं लग गया है! कुछ तो ख़ास बात है...वाह!

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  15. 6.5/10

    एक सहज कविता जो धुंध बनकर दिलो-दिमाग पर छा जाती है. बहुत ही खूबसूरती से जीवन-सार बता गयी रचना.

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  16. इम्तहान देनेवालों में भी - कोई बहुत गंभीरता से लेता है ,कोई सहज रूप से और कोई बिलकुल खेल,बहुत कुछ इस पर भी निर्भर करता है .हमीं थोड़ा -सा बदल लें अपने आप को -अच्छे नंबर लाने से भी कौन बड़ा अंतर पड़ता है .
    - एक सुझाव मात्र.

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  17. जिंदगी के इम्तिहान से गुजरते कभी -कभी गहरी थकान होती है और उससे उबरते बहुत सी उलझाने ..
    संवेदनशील कविता ...आभार ..!

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  18. “अच्‍छा लगा” और “मन भींग गया” में से जो बाद की अभिव्‍यक्ति है, वह हमारी कोमल अनुभूति को दर्शाती है। अतींद्रिय या अगोचर अनुभवों को अभिव्‍यक्ति के लिए भाषा भी सूक्ष्‍म, व्‍यंजनापूर्ण तथा गहन अर्थों का वहन करने वाली होनी चाहिए। भाषा में ये गुण प्रतींकों के माध्‍यम से आते हैं।

    puri tarah sahmat hun aapse.

    .

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