काव्य प्रयोजन (भाग-११) मनोविश्लेषणवादी चिंतन |
पिछली दस पोस्टों मे हमने (१) काव्य-सृजन का उद्देश्य, (लिंक) (२) संस्कृत के आचार्यों के विचार (लिंक), (३)पाश्चात्य विद्वानों के विचार (लिंक), (४) नवजागरणकाल और काव्य प्रयोजन (५) नव अभिजात्यवाद और काव्य प्रयोजन (लिंक) (६) स्वच्छंदतावाद और काव्य प्रयोजन (लिंक) (७) कला कला के लिए (८) कला जीवन के लिए (लिंक) (९) मूल्य सिद्धांत अय्र (१०) मार्क्सवादी चिंतन की चर्चा की थी। जहां एक ओर संस्कृत के आचार्यों ने कहा था कि लोकमंगल और आनंद, ही कविता का “सकल प्रयोजन मौलिभूत” है, वहीं दूसरी ओर पाश्चात्य विचारकों ने लोकमंगलवादी (शिक्षा और ज्ञान) काव्यशास्त्र का समर्थन किया। नवजागरणकाल के साहित्य का प्रयोजन था मानव की संवेदनात्मक ज्ञानात्मक चेतना का विकास और परिष्कार। जबकि नव अभिजात्यवादियों का यह मानना था कि साहित्य प्रयोजन में आनंद और नैतिक आदर्शों की शिक्षा को महत्व दिया जाना चाहिए। स्वछंदतावादी मानते थे कि कविता हमें आनंद प्रदान करती है। कलावादी का मानना था कि कलात्मक सौंदर्य, स्वाभाविक या प्राकृतिक सौंदर्य से श्रेष्ठ होता है। कला जीवन के लिए है मानने वालोका मत था कि कविता में नैतिक विचारों की उपेक्षा नहीं होनी चाहिए। मूल्य सिद्धांत के अनुसार काव्य का चरम मूल्य है – कलात्मक परितोष और भाव परिष्कार। मार्कसवादियों के अनुसार साहित्य जनता के लिए हो। इसका प्रयोजन तो मानव-कल्याण है। आइए अब पाश्चात्य विद्वानों की चर्चा को आगे बढाएं। |
फ़्रायड मनोविश्लेषण शास्त्री थे। उन्होंने यह प्रतिपादित किया कि अवचेतन और चेतन मन में दमित काम-वासना से अनेक रोग-व्याधियां, मानसिक विक्षेप उठ खड़े होते हैं। इनका शमन उदत्तीकरण या रेचन द्वारा हो सकता है। अरस्तू के विरेचन सिद्धांत या भाव-परिष्कार को मनोविश्लेषणशास्त्र के अंतर्गत उठाया गया। इस सिद्धांत के मानने वालों का कहना था कि काव्य, काम-वासना के रेचन या उदात्तीकरण का माद्ध्यम है। मनोविश्लेषण शास्त्रियों ने काव्य प्रयोजन को परिभाषित करते हुए कहा, “मानव की भावनाओं का उन्नयन-परिष्करण और उदात्तीकरण करना ही काव्य का प्रयोजन है।” अर्थात् मन के भीतर उत्पन्न हुए विकृतियों से मुक्ति दिलाना और चित्त का शमन ही काव्य का उद्देश्य है। इस सिद्धांत के मानने वालों का कहना था कि सौंदर्य परक काव्य और उद्दाम शृंगार परक क्कव्य-नाटक-उपन्यास के अध्ययन से मनव के मन की काम-भावना परिष्कृत होती है। इसका शमन होता है। एडलर भी मनोविश्लेषणशास्त्री थे। उनका कहना था कि साहित्य ‘ग्रंथियों’ से मुक्ति दिलाने का माध्यम है। जीवन की जटिलता को अनुभूति की आंच में सहजता से पकाकर पाठक को परोस देना भी साहित्य का एक प्रयोजन कहा जा सकता है। पश्चिम के एक और मनोविश्लेषणवादी हैं कार्ल युंग। उन्होंने तो कविता और मिथक को समक्ष माना। उनका कहना था कि जैसे स्वप्न और मिथक में आदिम काल से संचित मानव के सामूहिक अवचेतन मन और आदिम-बिम्ब का प्रकाशन होता है वैसे ही कविता में भी हमारे आदिम पुरखे बोल रहे होते हैं। युंग का कहना था कि मिथक और कविता, दोनों में अप्रतिहत वेग से प्रवाहित होने वाली जीवनी शक्तिनिबद्ध होकर अपना संयमित और नियंत्रित रूप प्रस्तुत करती है। अब अगर इसका अभाव हो तो मनसिक जीवन का वह तीव्र प्रवाह तो रुक ही जाएगा। अवरुद्ध हो जाएगा। या फिर इसका तीव्र वेग मानसिक जीवन में रोग-अराजकता उत्पन्न कर देगा। इस प्रकार मनोविश्लेषणवादी चिंतन में हम पाते हैं कि काव्य का कम है भावों या विचारों का रेचन या परिष्कार करना। |
पश्चिम में काव्य प्रयोजन संबंधी अनेक विचारधाराओं का प्रतिपादन हुआ। पर अगर गौर से देखें तो हम पाते हैं कि कुल मिलाकर दो समूह थे, एक आनंदवादी और दूसरा कल्याणकारी। इन दोनों के भीतर काव्य सृजन का प्रयोजन मानव चेतना का विस्तार है। सृजन एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है। यह एक सांस्कृतिक प्रक्रिया भी है। रचनाकार इस प्रक्रिया को आगे बढाता है। भावों और विचारों को सम्प्रेषित करता है। इस प्रकार जीवन की जटिलता को अनुभूति की आंच में सहजता से पकाकर पाठक को परोस देना भी साहित्य का एक प्रयोजन कहा जा सकता है। पर कुल मिलाकर अगर देखा जए तो काव्य का प्रयोजन है भावों और विचारों का सम्प्रेषण तथा सांस्कृतिक चेतना का विस्तार और परिष्कार। |
बुधवार, 6 अक्टूबर 2010
काव्य प्रयोजन (भाग-११) मनोविश्लेषणवादी चिंतन
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बहुत कीमती जानकारी, मनोज बाबू! ओईसे तो सब जानकारी सहेजने जोग्य है, जो एहाँ उपलब्ध है. ई ब्लॉग धीरे धीरे ग्रंथागार बनता जा रहा है. धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंकाव्य की विभिन्न धाराओं के बारे में संक्षिप्त और सारगर्भित जानकारी दे रही है यह श्रृंखला.. यदि इस तरह के लेखको और कवियों का भी लगे हाथ जिक्र हो जाता को और सार्थक हो जाती पोस्ट... जैसे.. नाटकों में मोहन राकेश का नाम लिया जा सकता है.. कविता में अज्ञेय , श्रीकांत वर्मा, रघुवीर सही.. आदि आदि..
जवाब देंहटाएंसार्थक लेख लिखा है .
जवाब देंहटाएंआभार
कुल मिलाकर दो समूह थे, एक आनंदवादी और दूसरा कल्याणकारी। इन दोनों के भीतर काव्य सृजन का प्रयोजन मानव चेतना का विस्तार है। सृजन एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है।
जवाब देंहटाएंकाव्य प्रयोजन पर सटीक जानकारी देता लेख ...
काव्य का प्रयोजन है भावों और विचारों का सम्प्रेषण तथा सांस्कृतिक चेतना का विस्तार और परिष्कार।
सार्थक बात ...
बहुत बढिया।
जवाब देंहटाएंआभार।
आपने बहुत ही अच्छी जानकारी दी है।
जवाब देंहटाएंhttp://sudhirraghav.blogspot.com/