शनिवार, 23 अक्टूबर 2010

पक्षियों का प्रवास-2

पक्षियों का प्रवास-2

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मनोज कुमार

पक्षियों का प्रवास-1 का लिंक यहां है।

पक्षियों में कुछ प्रवास ऋतुओं पर आधारित होता है। ब्रिटेन में बतासी (स्विफ्ट्स), अबाबील (स्वैलो), बुलबुल (नाइटिंजेल), पपीहा (कक्कू) गृष्म काल में पहुंचते हैं। दक्षिण की दिशा से यहां आकर वे प्रजनन करते हैं एवं शरत्काल तक यहां व्यतीत करते हैं। इसी तरह जाड़े के मौसम में आने वाले पक्षी हैं पथरचिरटा (बंटिंग)। सर्दियों में बर्फ की चादर बिछते ही विदेशी पक्षी मूलतः पूर्वी यूरोप साईबेरिया अथवा मध्य एशिया से हजारों मील की दूरी का सफर तय करके भारत के कई भागों और पंक्षी उद्यान में पहुंचते हैं।

इन विदेशी मेहमानों का सफरनामा भी कम रोचक नहीं है। आखिर कैसे ये निरीह अपना कार्यक्रम, देश व दिशा तय करते हैं? बत्तख (डक्स), सामुद्रिक (गल्स) एवं समुद्र तटीय पक्षी रात या दिन किसी भी समय अपनी यात्रा करते हैं। पर कुछ पक्षी जैसे कौए, अबाबील, रोबिन, बाज, नीलकंठ, क्रेन, मुर्गाबी (लून्स), जलसिंह (पेलिकन्स), आदि केवल दिन में ही उड़ान भरते हैं। अपनी लम्बी उड़ान के दौरान ये कुछ देर के लिए उचित जगह पर चारे की खोज में रुकते हैं। किन्तु अबाबील और बतासी तो अपने आहार कीट-पतंगों को उड़ते-उड़ते ही पकड़ लेते हैं। दिन में उड़ने वाले पक्षी झुंड में चलते हैं। बत्तख, हंस एवं बगुले में झुंड काफी संगठित होता है। इन्हें टोली का नाम दिया जा सकता है। जबकि अबाबील का झुंड काफी बिखरा-बिखरा होता है।

अधिकांश पक्षी रात में ही लंबी यात्रा करना पसंद करते हैं। इस श्रेणी में बाम्कार (थ्रशेज), एवं गोरैया (स्पैरो) जैसे छोटे-छोटे पक्षी आते हैं। ये अंधेरे में अपने शत्रुओं से बचते हुए यात्रा करते हैं। इसके अलावा एक और बात महत्त्वपूर्ण है, यदि ये पक्षी दिन में यात्रा करें तो रात होते-होते काफी थक जाएंगे। अतः अगली सुबह ऊर्जाहीन इन पक्षियों को अपने आहार प्राप्त करने में काफी दिक़्क़त होगी। यह उनके लिए प्राणघातक भी साबित हो सकता है। जबकि रात को चलते हुए सवेरा होते-होते ये उचित जगह पर थोड़ा विश्राम भी कर लेते हैं, फिर भोजनादि की तलाश में जुट जाते हैं। रात होते ही आगे की यात्रा पर पुनः निकल पड़ते हैं।

ये एक साथ आकाश में सैनिकों की भाँति अनुशासनात्मक पंक्तिबद्ध उडान भरते हैं। कुछ पक्षी जैसे बाज, बतासी, कौड़िल्ला (किंगफिशर), आदि अलग-अलग अपनी ही प्रजाति की टोली में चलते हैं। जबकि अबाबील, पीरू (टर्की), गिद्ध एवं नीलकंठ कई प्रजातियों की टोली में चलते हैं। इसका कारण उनके आकार-प्रकार का एक ही तरह का होना या फिर आहार की प्रकृति एवं पकड़ने के तरीक़े का समान होना हो सकता है। कुछ प्रजातियों में नर और मादा की टोली अलग-अलग चलती है। नर गंतव्य पर पहले पहुंच कर घोंसलों का निर्माण करता है। जबकि मादा अपने साथ नन्हें शिशु पक्षी को लिए पीछे से आती है।

अपनी प्रवासीय यात्रा के दौरान ये पक्षी कितनी दूरी तय करते हैं यह उनकी स्थानीय परिस्थिति एवं प्रजाति के ऊपर निर्भर करता है। इनके द्वारा तय की गई यात्रा की दूरी मापने के लिए पक्षी विज्ञानी इन्हें बैंड लगा देते हैं या फिर इनके ऊपर रिंग लगा देते हैं। फिर जहां वे पहुंचते हैं, उसका उन्हें अंदाज़ा हो जाता है। और तब दूरी माप ली जाती है। आर्कटिक क्षेत्र के कुररी (टर्न) पक्षी को सबसे ज़्यादा दूरी तय करने वाला पक्षी माना जाता है। लेबराडोर की तटों से ये ग्यारह हज़ार मील की दूरी तय कर अन्टार्कटिका में जाड़े के मौसम में पहुंचते हैं। इतनी ही दूरी तय कर गर्मी में ये वापस लौट जाते हैं। इसी तरह की मराथन उड़ान भरने वाली अन्य प्रजातियां हैं सुनहरी बटान, टिटिहरी (सैंड पाइपर) एवं अबाबील। ये आर्कटिक क्षेत्र से अर्जेन्टिना तक की छह से नौ हज़ार मील की दूरी तय करते हैं। यूरोप के गबर (व्हाइट स्टौर्क) जाड़ों में आठ हज़ार माल की दूरी तय कर दक्षिण अफ्रीका पहुंच जाते हैं।

इसमें कोई शक नहीं कि प्रवासी पक्षियों में ज़बरदस्त दमखम होता हागा, नहीं तो इतनी दूरी तय करना कोई आसान बात नहीं है। इस जगत में इनसे ज़्यादा अथलीट शायद ही कोई जीव होगा। प्रवासी यात्रा आरंभ करने के पहले ये पक्षी अपने अंदर काफी वसा एकत्र कर लेते हैं जो उनकी उड़ान वाली यात्रा के दौरान इंधन का काम करते हैं।

दूरी के साथ-साथ अपनी उड़ान में जो ऊंचाई ये छूते हैं वह भी कम रोचक नहीं है। कुछ तो जमीन के काफी साथ-साथ ही चलते हैं, जबकि सामान्य रूप से ये तीन हज़ार फीट की ऊंचाई पर उड़ान भरते हैं। उंचाई पर उड्डयन में कठिनाई यह होती है कि ज्यों-ज्यों उड़ान की ऊंचाई अधिक होती जाती है त्यों-त्यों संतुलन एवं गति बनाए रखना काफी मुश्किल हो जाता है। क्योंकि ऊपर में हवा का घनत्व काफी कम होता है और हवा की उत्प्लावकता (बुआएंसी) काफी कम हो जाती है। रडार के द्वारा पता लगा है कि कुछ छोटे-मोटे पक्षी पांच हज़ार से पंद्रह हज़ार फीट तक की ऊंचाई पर भी उड़ान भरते हैं। यहां तक कि हिमालय या एंडेस की पहाड़ियों को पार करते समय ये पक्षी बीस हज़ार फीट या उससे भी अधिक की ऊंचाई प्राप्त कर लेते हैं।

ऐसे प्रमाण मिले हैं जिससे यह पता लगता है कि पक्षी अपनी प्रवासीय यात्रा के दौरान सामान्य से अधिक गति से यात्रा करते हैं। छोटे-छोटे पक्षियों की यात्रा में औसत गति तीस मील प्रति घंटा होती है। जबकि अबाबील और अधिक गति से उड़ते हैं। बाज की गति तीस से चालीस मील प्रति घंटा होती है। तटीय पक्षी की गति चालीस से पचास मील प्रति घंटा होती है। जबकि बत्तख की गति पचास से साठ मील प्रति घंटा होती है। भारत में सबसे अधिक गति ब्रितानी पक्षी बतासी(स्वीफ्ट) का रिकार्ड किया गया है जो 171 से 200 मील प्रति घंटा होती है। प्रवासी पक्षी एक दिन या एक रात में क़रीब 500 मील की दूरी तय कर लेते हैं। पक्षी साधारणतया पांच से छह घटों की एक उड़ान भरते हैं। बीच में वे विश्राम या भोजन के लिये रुकते हैं। उनकी गति पर मौसम का भी प्रभाव पड़ता है। जैसे वर्षा, ओलों का गिरना या फिर तेज हवा के झोंकों से इनकी गति बाधित होती है।        

कई पक्षियों की प्रवासी यात्रा में कफी नियमितता पाई जाती है। साल-दर-साल के गहन अध्ययन से यह पता लगा कि ये नियमित रूप से मौसम की प्रतिकूलता की मार सहकर भी अपनी लंबी यात्रा बिल्कुल नियत समय पर नियत स्थल पर पहुंच कर पूरी करते हैं। शायद ही कभी एकाध दिन की देरी हो जाए। अबाबील और पिटपिटी फुदकी (हाउस रेन) ठीक 12 अप्रैल को वाशिंगटन पहुंच जाती हैं। भारत के प्रख्यात पक्षीशास्त्री सालीम अली ने खंजन (ग्रे वैगटेल) को अलमुनियम का छल्ला पहना दिया। मुम्बई के उनके आवास पर यह पक्षी प्रति वर्ष नियत समय पर पहुंच जाया करता था। पक्षी अपने धुन के बड़े पक्के होते हैं।

जान पर खेलकर पहुंचे ये पक्षी जिस तरह से अपना आशियां बनाते हैं, उसकी प्रक्रिया देखकर समझा जा सकता है कि नीड़ का निर्माण कितनी जटिल प्रक्रिया है और उसे कितनी सरलता से पक्षियों द्वारा पूरा किया जाता है। इनकी बस्ती में प्रकृति और पक्षियों का परस्पर सामञ्जस्य विलक्षण सौंदर्य की अनुभूति है। कौए जैसा काला स्याह आरमोरेन्ट, इग्रीट और स्पूनबिल जैसे झक्क सफेद पक्षी बिना किसी रंगभेद के एक ही वृक्ष की भिन्न-भिन्न शाखाओं पर अपने-अपने घोंसले बनाते हैं, प्रजनन व पालन करते हैं। अपने प्रवास के दौरान ये पक्षी मात्र प्रजनन क्रिया ही संपन्न नहीं करते। वे इस दौरान यहां अपने पुराने पंखों का परित्याग भी करते हैं। फिर धीरे-धीरे दो से तीन माह के दौरान ये अपने नये पंखों को हासिल भी कर लेते हैं। हां, इस दौरान ये उड़ नहीं पाते। इस कारण इनके शिकारियों के जाल में फंसने का खतरा बना रहता है।

प्रवासी पक्षी एक निश्चित पथ पर ही अपनी यात्रा तय करते हैं। हज़ारों किलोमीटर की दूरी तय कर आने वाले ये पक्षी पुन: उसी रास्ते वापस लौट जाते हैं। ये अपना रास्ता नहीं भूलते। प्राणी विशेषज्ञों का कहना है कि ये एकाधिक समुद्र पार कर आते हैं। प्रजनन की क्रिया संपन्न कर ठीक उसी रास्ते वापस चले जाते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि इंसान से भी अधिक इनकी स्मरण शक्ति होती है। हां इस पथ में परिवर्तन कुछ खास कारणों से हो सकता है। साधारणतया भौगोलिक आकृतियां जैसे नदी, घाटी, पहाड़, समुद्री तट, आदि इनका मार्ग दर्शन करते हैं। कुछ पक्षी तो अपनी पिछली यात्रा के अनुभव के आधार पर अपने दूसरे साथियों का पथ प्रदर्शन एवं मार्ग दर्शन करते हैं। पर उनका अनुभव शायद ही बड़े काम का होता होगा। क्योंकि पक्षियों की अधिकांश प्रजातियां तो टोली में यात्रा करने से कतराते हैं। वे तो अलग-अलग ही चलते हैं। हां आकाशीय पिंड उनकी इस मराथन यात्रा में उनका पथ-प्रदर्शक होते हैं। पक्षियों के अंदर एक आंतरिक घड़ी भी होती है जो उनके गंतव्य तक पहुंचाने में सहायता प्रदान करती है।

अब पहले की तरह प्रवासी पक्षी नहीं आते। इनकी तादाद लगातार घटती जा रही है। जानकारों का मानना है कि इसके पीछे प्रमुख कारण ग्लोबल वार्मिंग है मौसम मे परिवर्तन प्रवासी पक्षियों को रास नहीं आता इस कारण वे अब भारत से मुंह मोड़ने लगे हैं जलवायु परिवर्तन से पक्षियों का प्रवास बहुत प्रभावित हुआ है। पहले पूर्वी साइबेरिया क्षेत्र के दुर्लभ पक्षी मुख्यतः साइबेरियन सारस भारत में आते थे। जलस्त्रोतों के सूखने से उनके प्रवास की क्रिया समाप्त प्राय हो गई है। ये सुदूर प्रदेशों से अपना जीवन बचाने और फलने फूलने के लिए आते रहे हैं। पर हाल के वर्षों में इनके जाल में फांस कर शिकार की संख्या बढ़ी है। कई बार तो शिकारी तालाब या झील में ज़हर डाल कर इनकी हत्या करते हैं। माना जाता हा कि उनका मांस बहुत स्वादिष्ट होता है तथा उच्च वर्ग में इसका काफा मांग हाती है। अब वे चीन की तरफ जा रहे हैं। हम एक अमूल्य धरोहर खो रहे हैं। पक्षियों के प्रति लोगों में पर्यावरण जागरूकता को बढ़ावा देना चाहिए। पक्षी विहार से लाखों लोगों को रोजगार मिलता है। इसके अलावा काफी बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षियों को दखने पर्यटक आते हैं।

इस प्रवासीय यात्रा की शुरुआत क्यों हुई यह भी रोचक है। एक साधारण सी कहावत है कि “बाप जैसा करता है, वैसा ही करो” – शायद इसी रास्ते पर इसकी शुरुआत मानी जा सकती है। पर यह कोई वैज्ञानिक व्याख्या नहीं कही जी सकती। हां इतना तो माना जा सकता है कि बदलते वातावरण के कारण कुछ विपरीत परिस्थितियां पैदा हो गई होंगी, जिसके कारण पक्षियों के गृह स्थल पर भोजन एवं प्रजनन की सुविधाओं का अभाव हो गया होगा। इस सुविधा की प्राप्ति के लिए पक्षी अपने स्थान बदलने को विवश हो गए होंगे। समय बीतने के साथ यह साहसिक अभियान उनकी आदत में शुमार हो गया होगा। पक्षियों के जीवन यापन, शत्रुओं से सुरक्षा, भोजन एवं प्रजनन की सुविधा में यह प्रवास निश्चित रूप से उनके लिए लाभकारी साबित हुआ।

प्रवासी पक्षी अपने वतन लौटने की तैयारी लगभग दो सप्ताह पूर्व ही आरंभ कर देते हैं। सप्ताह पूर्व से अपना वजन घटाने हेतु सजग हो जाते हैं। यहाँ आए, ठहरे, प्रजनन में व्यस्त रहे, मौसम का लाभ लिया, शिशु के पंख खुलने लगे, उडने योग्य हुए और आबोदाना उठना शुरू। पक्षीविद् के अनुसार शुक्ल पक्ष की दूधिया चाँदनी में उडान के समय रोशनी में वे अपना निश्चित मार्ग सुगमता से देख सकते हैं। दिन में दिशाभ्रम, तेज धूप, असहनीय गर्मी तथा शत्रु भय के कारण शुक्ल पक्ष उनकी वापसी उडान का शुभ मुहूर्त होता है। इसलिये भी कि यात्रा के प्रत्येक चरण में रोशनी मिलती रहे। अपने वतन तक पहुँचने में अंतिम पडाव तक अथक निरन्तर सक्रिय व गतिशील बने रहें, इस उद्देश्य से विदाई पूर्व वजन घटाते हैं।

अपने वतन लौट चलने की तैयारी में जुटे प्रवासी जोरदार विशेष ध्वनि में अपने सभी सहयोगी मित्रों से ऊँची आवाज में लौट चलने हेतु आमंत्रित करती है। इनके जाने के बाद तिनकों से सजे वीरान आशियाने तथा प्रजनन के वक्त के बचे अण्डों की खोलें इनके गुजरे वक्त के चश्मदीद गवाह होते हैं। जाते-जाते ये बेजुबान मेहमान हमें ढेरों संदेश दे जाते हैं।

 

पिंजड़े   में   बंद  पंछी,   क्या   जाने   आकाश  को,

खुले गगन में, खुले चमन में, उड़ने के अहसास को!

--- बस!---

(चित्र आभार गूगल सर्च)

26 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी शृंखला रही। इतनी सरलता और रोचकता से आपने बहुत सी जानकारी दे दी। आपको ढेरों शुभकामनाएं।

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  2. काफ़ी जान्कारी मिलि , धन्यवाद.

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  3. @ हास्यफुहार, बूझो तो जानें
    प्रोत्साहन के लिए आभार!

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  4. पक्षियों के बारे में विस्तृत जानकारी मिली ...बहुत ज्ञानवर्धक लेख ...आभार

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  5. Thanks for the informative post on the blog. Hope you will maitain continuity in other field also.

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  6. एक अत्यंत ही ज्ञानवर्धक आलेख। आभार!

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  7. काफी नयी जानकारी मिली - ऐसे ही लिखाते रहें मनोज जी

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  8. बहुत अच्छी जानकारी मिली है। धन्यवाद।

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  9. काफ़ी बढिया और ज्ञानवर्धक जानकारी मिली…………आभार्।

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  10. 7.5/10

    पठनीय, संग्रहणीय व ज्ञानवर्धक .
    इस तरह की पोस्ट एक सौगात की तरह होती है.
    प्रकृति प्रेमी अथवा पक्षी प्रेमियों के अलावा सामान्य पाठक को भी यह प्रस्तुति पसंद आएगी. सुन्दर चित्रों और मेहनत की वजह से बेहतरीन पोस्ट सामने आई है.

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  11. मनोज जी, सचमुच आजकल आप बहुत गम्भीर का कर रहे हैं, यह इस लेख ने फिर प्रमाणित कर दिया है। इस ज्ञानवर्द्धक आलेख के लिए एक बार पुन- बधाई स्वीकारें।
    ..............
    यौन शोषण : सिर्फ पुरूष दोषी?
    क्या मल्लिका शेरावत की 'हिस्स' पर रोक लगनी चाहिए?

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  12. मनोज बाबू! डिस्टिंक्शन का बधाई! अऊर हमरे तरफ से उधार का कबिताईः
    पंछी,नदिया,पवन के झोंके
    कोई सरहद ना इन्हें रोके

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  13. @ उस्ताद जी
    कल आपसे कहा था कि डिस्टंक्शन ले कर रहूंगा!
    आभार आपका इस थैंकलेस जॉब को ईमानदारी से अंजाम देने के लिए।!

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  14. @ सलिल जी
    ई का, चिरैंया की तरह आए दाना चुगे अ‍उर फुर्र से उड़ गए।

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  15. @ प्रेम सरोवर जी, संगीता जी, जुगल जी, राम त्यागी जी
    प्रोत्साहन के लिए आभारी हूं।

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  16. @ निर्मला दीदी
    आशीष और स्नेह बनाए रखें, यही गुजारिश है।

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  17. @ वंदना जी
    आलेख आपको अच्छा लगा, यही हमारी खुशी का विषय है।

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  18. @ ज़ाक़िर भाई, उदय जी
    प्रोत्साहन के लिए आभारी हूं।

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  19. पंछियों का अद्भुत संसार और उसका रोचक परिचय!
    thanks for sharing !!!

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  20. पक्षियों के बारे में अच्छी जानकारी ...

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  21. पहली बार बहुत सार गर्भित लेख पढ़ कर जो
    आनंद मिला बहुत अच्छा लगा |आज सुबह यह पहला लेख पढ़ा है |बहुत बहुत बधाई |
    आशा

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  22. सीरिज रोचक व ज्ञान बढाने वाली है पक्षियों के माइग्रेशन पर काफी सारी जानकारी आपने दी सभी के बहुत काम आयेगी खासतौर पर स्कूल जाने वाले बच्चो तो विशेष लाभ मिलेगा ।आगे भी इस तरह की सीरीज लिखे........

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  23. मनोज जी चाहे आप साहित्य लिखें या विज्ञान.. समान अधिकार से लिखते हैं.. यह विलक्षण बात है.. पक्षियों के बारे में इतनी जानकारी लगा जैसे नेशनल ज्योग्राफी देख रहे हो.. बहुत सुंदर.. संग्रहनीय..

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  24. बहुत ही संग्रहणीय पोस्ट है यह. बहुत मेहनत से लिखा है...शुक्रिया.
    यह तो सच है कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से कई दुर्लभ पक्षी, अब भारत से मुहँ मोड़ने लगे हैं.

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