मंगलवार, 26 अक्टूबर 2010

समकालीन डोगरी साहित्य के प्रथम महत्वपूर्ण हस्ताक्षर : श्री नरेन्द्र खजुरिया

समकालीन डोगरी साहित्य के प्रथम महत्वपूर्ण हस्ताक्षर : श्री नरेन्द्र खजुरिया

अरुण सी राय

डोगरी साहित्य ने अपनी विविधता, लोकजीवन से निकट और नवीन विचारों के कारण भारतीय साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है. डोगरी भाषा के प्रथम साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत स्वर्गीय नरेन्द्र खजुरिया का लेखन काल बेहद कम रहा लेकिन उन्होंने डोगरी साहित्य को नई दिशा दी. अरुण चन्द्र रॉय दे रहे हैं स्वर्गीय नरेन्द्र खजुरिया का संक्षिप्त परिचय.

अपना देश विविधताओं से भरा है. देश के रंग और संस्कृति को जानने के लिए विभिन्न प्रदेशों की लोक भाषों से सशक्त को और माध्यम नहीं. ऐसे में यदि सुदूर उत्तर की सांस्कृतिक पहचान देश तक पहुंची है तो डोगरी कथा, कविता, निबंध के माध्यम से. साहित्य अकादमी ने १९७० से डोगरी भाषा में अकादमी पुरस्कार देना प्रारंभ किया था और पहली बार श्री नरेन्द्र खजुरिया को मरणोपरांत उनके कथा संग्रह "नीला अम्बर काले बादल" के लिए पुरस्कृत किया गया था. इस कथा संग्रह को समकालीन डोगरी साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है.

डोगरी साहित्य के विशिष्ठ कथाकार, कवि, नाटककार स्वर्गीय नरेन्द्र खजुरिया का जन्म जम्मू जिले में १९३३ में हुआ था और ३७ वर्ष की अल्प आयु में साहित्य साधना करके १९७० में उनका देहांत हो गया. साहित्य उनका पहला प्रेम था. उन्होंने एक बार कहा था, "मुझे अपनी वे कहानिया पसंद हैं जो मैंने अभी नहीं लिखी, केवल मूल विचार अपने मन की डाइरी में लिख रखें हैं. मैं अपने को उन्हें लिखने में समर्थ नहीं समझता."

जब वे छः वर्ष के थे तभी उनकी माता का देहांत हो गया था और मात्र आठ वर्ष के थे जब उनके पिता चल बसे. फलस्वरूप उनका लालन पालन उनके बड़े भाई श्री रामनाथ शास्त्री ने किया. शिक्षा समाप्त करने के उपरान्त श्री खजुरिया राज्य के शिक्षा विभाग में प्राथमिक शिक्षक बन गए और उन्हें सुदूर गाँव में पदस्थापित कर दिया गया. वहीँ जमीन, आम आदमी, प्रकृति और लोक कला के बीच रहकर उन्होंने साहित्य का सृजन किया. यहाँ उन्हें सरल पहाड़ी जन का निकट संपर्क प्राप्त हुआ जिनसे वे अपनी रचनाओं के लिए प्रेरणा पाते रहे.

१९६४ में श्री खजुरिया को जम्मू एंड कश्मीर अकादमी आफ आर्ट, कल्चर एंड लन्गुएज़ के अधीन हिंदी पत्रिका शीरजा का संपादक नियुक्त किया गया. उर्वर लेखन के धानी श्री खजुरिया ने अपनी इस अल्प चर्या में अनेक विधाओं में रचना की और अपने पृथक दृष्टिकोण, वैचारिक ताजगी के कारण डोगरी साहित्य के क्षेत्र में पदचिन्ह अंकित किये.

उनका पहला कथा संग्रह "कोले दिया लीकरां" डोगरी कथा साहित्य में एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ और इसे नई दिशा और विचार प्राप्त हुए. साहित्य अकादमी द्वारा १९७० में पुरस्कृत पुस्तक "नीला अम्बर, काले बादल" उनका दूसरा कहानी संग्रह है. अपनी मनोहर गद्य शैली और यथार्थ परक चरित्र चित्रण से युक्त यह कथा संग्रह समकालीन डोगरी साहित्य में महत्वपूर्ण देन है.

पुरस्कृत पुस्तक नीला अम्बर, काले बादल में आठ कहानिया हैं जो लोक जीवन, प्रकृति प्रेम, सांस्कृतिक विविधता के रंगों से रंगे हैं. ये कहानिया हैं - कास्तु का काला तीतर, इनामी कहानी, एक कविता का अंत, नीला अम्बर काले बादल, अपना अपना धर्म, पंछी लौटे पर..., धागे और चट्टान एवं सद्दरो दाई.

नरेन्द्र खजुरिया जी कहते हैं , " साम्बा के बस अड्डे पर मैंने पुलिस की हिरासत में एक स्त्री को देखा. उसपर किसी का बछा चुराने का आरोप था. जाने क्यों मुझे उस स्त्री के चेहरे पर कहीं भी पाप, अत्याचार या बुराई का कोई चिन्ह दिखाई नहीं दिया. इस तरह सद्दरो दाई कहानी बनी" यह कथाकार के संवेदनशील ह्रदय को दर्शाता है.  बेमेल विवाह जो केवल उम्र के लिहाज से नहीं बल्कि रहन सहन, विचारों की भिन्नता के आधार पर भी जो जाते हैं और इसी विषय पर उन्होंने एक कहानी लिखी "एक कविता का अंत" .  अपने पात्रों के बारे में स्वर्गीय नरेन्द्र खजुरिया ने कहा था कि "मुझे वे पात्र अधिक पसंद हैं जो अभी मेरी लेखनी के कैदी नहीं बने." केवल ३७ वर्ष की आयु में १९७० में श्री खजुरिया के अकाल मृत्यु से ना केवल डोगरी साहित्य को क्षति हुई बल्कि सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में कुछ अधूरा, कुछ रिक्त रह गया.

13 टिप्‍पणियां:

  1. dogri sahitya aur shri narendra khajuria ke baare me detail me batane ke liye dhanyawad..........:)

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  2. अन्य भाषा के साहित्यकार की जानकारी के लिए धन्यवाद ।

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  3. प्रेरक व्यक्तित्व!! परिचय के लिये आभार

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  4. डोगरी साहित्य और नरेंद्र जी के बारे मैं जानकार अच्छा लगा। इस सुन्दर जानकारी का आभार।

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  5. डोगरी साहित्य और नरेंद्र जी के बारे मैं जानकार अच्छा लगा। इस सुन्दर जानकारी का आभार।

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  6. डोगरी साहित्य और नरेंद्र जी के बारे मैं जानकार अच्छा लगा। इस सुन्दर जानकारी का आभार।

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  7. अन्य भाषा के साहित्यकार की जानकारी के लिए धन्यवाद ।

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  8. ऐसी महान विभूतियाँ अकाल काल के गाल में क्यों समा जाती हैं... दुश्यंत,राजकमल और ये खजुरिया जी... अरुण जी आभार, इस परिचय के लिए!!

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  9. प्रांतीय भाषाओँ के लेखक साहित्य की रंगोली के वे चटक रंग है जिनके बिना भारतीय साहित्य अपूर्ण है . इन ज्ञान दीपों को खोजना और पाठकों के समक्ष रखना अरुणजी के उच्च स्तरीय पठन पाठन को दर्शाता है . रोचक जानकारी के लिए धन्यवाद. इस श्रृंखला के विस्तार के लिए शुभकामना.

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  10. बहुत अच्छी साहित्यिक कृति। आभार इस प्रस्तुति के लिए।

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