गुरुवार, 1 मार्च 2012

दोहावली / कबीर



जन्म  --- 1398
निधन ---  1518

दुख में सुमरिन सब करे, सुख मे करे न कोय ।
जो सुख मे सुमरिन करे, दुख काहे को होय ॥ 1 ॥

तिनका कबहुँ ना निंदिये, जो पाँव तले होय ।
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥ 2 ॥

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दें, मन का मनका फेर ॥ 3 ॥

गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय ॥ 4 ॥

बलिहारी गुरु आपनो, घड़ी-घड़ी सौ सौ बार ।
मानुष से देवत किया करत न लागी बार ॥ 5 ॥

कबीरा माला मनहि की, और संसारी भेख ।
माला फेरे हरि मिले, गले रहट के देख ॥ 6 ॥

सुख मे सुमिरन ना किया, दु:ख में किया याद ।
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥ 7 ॥

साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥ 8 ॥

लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।
पाछे फिरे पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट ॥ 9 ॥

जाति न पूछो साधु की, पूछि लीजिए ज्ञान ।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान ॥ 10 ॥

21 टिप्‍पणियां:

  1. साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय ।
    मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥ 8 ॥

    हिन्दी साहित्य के हज़ार वर्षों के इतिहास में कबीर जैसा व्यक्तित्व लेकर कोई लेखक उत्पन्न नहीं हुआ। मस्ती, फ़क्कड़ाना स्वभाव और सब कुछ को झाड़–फटकार कर चल देने वाले तेज़ ने कबीर को हिन्दी–साहित्य का अद्वितीय व्यक्ति बना दिया है। उनकी वाणियों में सब कुछ को छाकर उनका सर्वजयी व्यक्तित्व विराजता रहता है। उसी ने कबीर की वाणियों में अनन्य–असाधारण जीवन रस भर दिया है। कबीर की वाणी का अनुकरण नहीं हो सकता। अनुकरण करने की सभी चेष्टाएँ व्यर्थ सिद्ध हुई हैं। इसी व्यक्तित्व के कारण कबीर की उक्तियाँ श्रोता को बलपूर्वक आकृष्ट करती हैं। इसी व्यक्तित्व के आकर्षण को सह्रदय समालोचक सम्भाल नहीं पाता और रीझकर कबीर को 'कवि' कहने में संतोष पाता है। ऐसे आकर्षक वक्ता को 'कवि' न कहा जाए तो और क्या कहा जाए? परन्तु यह भूल नहीं जाना चाहिए कि यह कविरूप घलुए में मिली हुई वस्तु है। कबीर ने कविता लिखने की प्रतिज्ञा करके अपनी बातें नहीं कही थीं। आज भी कबर के दोहे उतने ही प्रासंगिक हैं जो उस समय थे।
    धन्यवाद ।

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  2. vaah ! sangeeta kya prastuti kee hai, ham inhen bhoole to nahin hain lekin phir se unko duhara kar ek bar inake yatharth se jud kar sochte jaroor hai ki jo ye log kah gaye vo aksharashah satya tha , hai aur sadaiv rahega.

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  3. जीवन में सद्गुण सिखाते -'दोहे'

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  4. kabeerdas ji ke dohe sadaiv samaj me vyapt kuritiyon par kada prahar karte rahen hain .sarthak prastuti hetu aabhar .aapko holi parv ki hardik shubhkamnayen .YE HAI MISSION LONDON OLYMPIC !

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  5. सार्थक तथा सामयिक पोस्ट, आभार.

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  6. बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय......

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  7. कबीर को पढ़ना सदा ही एक एक अनोखा अनुभव है....

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  8. सभी दोहे ज़िन्दगी जीने की सीख देते हैं ………आभार्।

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  9. कबीर के अर्थपूर्ण दोहे पढवाने के लिए आभार ..

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  10. बेहतरीन भाव पूर्ण सार्थक रचना, शुभकामनाएँ।

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  11. हिन्दी साहित्य के हज़ार वर्षों के इतिहास में कबीर जैसा व्यक्तित्व लेकर कोई लेखक उत्पन्न नहीं हुआ। प्रेम सरोवर जी की इस बात से सौ फीसदी सहमत हूं.
    सार्थक प्रस्तुति...

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  12. संगीता जी कबीर के दोहों की प्रस्तुति प्रसंशनीय है लेकिन कई दोहों में मात्राओं की त्रुटियाँ हैं जो अखरती हैं । उदाहरण स्वरूप --तिनका कबहुँ....होय । कबीरदास जी की भाषा ( सधुक्कडी) भले ही बहुत कलात्मक न हो किन्तु दोहा व अन्य पदों में मात्राओं के नियम का उन्होंने पूरा ध्यान रखा है ।

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  13. गिरिजा जी ,
    आभार कि आप ने इस पोस्ट को पढ़ा और अपने अमूल्य विचार रखे ....॥हो सकता है कि टंकण कि अशुद्धियाँ हों कोशिश रहेगी कि ऐसा आगे से न हो ...
    रही कबीर की रचनाओं की बात तो एक कबीर ही ऐसे कवि हैं जिनके दोहों में हमें मात्राओं का नियम नहीं दिखाई देता ...क्यों कि उनकी रचनाएँ उन्होने स्वयं नहीं लिखी हैं ....वो तो बस कहते थे ... वैसे ज़्यादातर दोहों में नियम अपने आप ही लागू हो जाता है पर कुछ दोहे उनके अपवाद भी हैं ....

    स्कूल में पढ़ाते समय भी जब भी मैंने बच्चों को दोहों की मात्राओं को गिनना सिखाया है तब हमेशा यह बात कही है कि कबीर के दोहे मत लीजिएगा .... क्यों कि उसमें कभी कभी नियम नहीं मिलता ....

    आपका शुक्रिया

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  14. निश्चय ही महामानव थे कबीरदास......

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