गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

गुणाढ्य की कथा - भाग-2


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आदरणीय पाठक गण आप सब को मैं, अनामिका सादर प्रणाम  करते हुए सर्वप्रथम आप सब के बीच एक ख़ुशी बांटना चाहती हूँ वो यह  कि हमारे राजभाषा ब्लॉग के कर्णधार श्री मनोज कुमार जी आज पटना में गृहमंत्रालय की तरफ से राजभाषा के क्रियान्वन में अपने उत्कृष्ट योगदान के लिए सर्वश्रेष्ठ अधिकारी के रूप में पुरुस्कृत किये गए हैं.  हम सब की तरफ से उन्हें हार्दित बधाई....

                                                                                    झिंगूर दास 198

तो  लीजिये अब हाज़िर हूँ आपके समक्ष कथासरित्सागर से माल्यवान (गुणाढ्य )की कथा की अगली कड़ी लेकर. 


पिछले आठ अंकों में आपने कथासरित्सागर से शिव-पार्वती जी की कथावररुचि की कथा पाटलिपुत्र (पटना)नगर की कथाउपकोषा की बुद्धिमत्ता, योगनंद की कथा पढ़ी.....प्रथम अंक में हमने जाना था कि जब शिव जी पार्वती जी को कथा सुना रहे होते हैं तो उनके गण पुष्पदंत योगशक्ति से अदृश्य हो वह कथा सुन लेते हैं और पार्वती क्रोधवश पुष्पदंत को श्राप देती हैं ...पुष्पदंत के मित्र माल्यवान साहस कर उमा भगवती के चरणों पर माथा रख अपने मित्र का अपराध क्षमा करने का आग्रह करते हैं, लेकिन पार्वती क्रोधवश माल्यवान को भी शाप देती हैं जिससे पुष्पदंत और माल्यवान मनुष्य योनी पाकर धरती पर आये हैं, जहाँ पुष्पदंत को शाप-मुक्ति के उपाय हेतु काणभूति(सुप्रतीक नामक यक्ष)को वही कहानी सुनानी है और माल्यवान को काणभूति से यह कथा सुनकर मनुष्य योनी में इसका प्रचार करना है तभी इनकी मुक्ति संभव है. 

लेकिन काणभूति बृहत्कथा सुनाने से पहले माल्यवान की इस जन्म की कथा सुनना चाहता है...माल्यवान बताते हैं कि वह यहाँ प्रतिष्ठान प्रदेश के सुप्रतिष्ठित नामक नगर के एक ब्राह्मण सोमशर्मा की पुत्री श्रुतार्था के पुत्र गुणाढ्य हैं. गुणाढ्य दक्षिणापथ में विद्याएँ प्राप्त कर सुप्रतिष्ठित नगर लौटते हैं और राजा सातवाहन उनसे प्रसन्न हो अपना मंत्री नियुक्त कर लेते हैं.

राजा की एक रानी व्याकरण की पंडित थी. एक दिन उसने राजा को खरी खोटी सुना दी राजा लाज से गड़ गया. तब से राजा ने तय कर लिया कि या तो पांडित्य प्राप्त कर लूँगा या मर जाऊंगा. अब आगे...


गुणाढ्य की कथा - भाग-2 


राजा के अन्य मंत्री शर्ववर्मा ने गुणाढ्य को बताया - महाराज की रानियों में वह व्याकरण पंडिता रानी विष्णु शक्ति की बेटी है, उसी ने राजा का अपमान किया है. रानी की बात मन में लगने से राजा की व्याकरण पढने की और पंडित बनने की इच्छा हो गयी है.

अगले दिन गुणाढ्य और शर्ववर्मा राजा से मिलने जाते हैं . राजा कुछ नहीं बोलता.  गुणाढ्य राजा से पूछते हैं  - महाराज क्या बात है, अकारण आप उदास क्यों दिख रहे हैं ? तब भी राजा कोई उत्तर नहीं देता.

तब शर्व वर्मा राजा को एक किस्सा सुनाते हुए कहता है - महाराज आज मैंने सपने में देखा कि एक कमल आकाश से गिरा, उसके साथ कोई देवकुमार प्रकट हुआ, उसने कमल को खिला दिया, कमल के खिलते ही एक श्वेत-वस्त्र धारिणी एक देवी निकली और वह सीधे आपके मुख में चली गयी. इतना ही देख पाया और मेरी निद्रा टूट गयी, लेकिन महाराज अब मैं समझ गया हूँ कि वह देवी सरस्वती थीं, और उसने आपके मुख में वास करना आरम्भ कर दिया है - इसमें संदेह नहीं.

शर्ववर्मा की गप्प सुन कर राजा मुस्कुरा देता है और बोलता है - मैं मूर्ख हूँ. विद्या के बिना मुझे यह लक्ष्मी बिलकुल भी नहीं भाति. तुम लोग बताओ कि कोई व्यक्ति परिश्रम करके कितने दिनों में व्याकरण सीख सकता है ?

गुणाढ्य ने कहा - राजन, व्याकरण तो सभी विद्याओं का दर्पण है. नियम है कि बारह वर्ष तक व्याकरण का अध्ययन नियमित करना चाहिए, तभी व्याकरण आता है. पर मैं आपको छः वर्ष में व्याकरण का ज्ञान करा सकता हूँ.

यह सुनते ही शर्ववर्मा डाह के साथ बोलता है - हे महाराज, मैं आपको छः महीने में व्याकरण का ज्ञान करा सकता हूँ.

गुणाढ्य ने कहा - राजन,यह तो असंभव है. यदि शर्ववर्मा छः महीने में आपको व्याकरण सिखा दे तो मैं संस्कृत, प्राकृत और देशी भाषा तीनों का त्याग कर दूंगा.

शर्ववर्मा बोला - और यदि मैं ऐसा न कर पाया तो बारह वर्ष तक तुम्हारी पादुकाएं माथे पर धारण करूँगा.

बस फिर क्या था...जहाँ गुरु और चेला दोनों ही जनूनी मिल जाएँ तो सफलता तो झक्क मार कर पीछे आएगी ही.  स्वामी कुमार की कृपा से प्राप्त कातंत्र व्याकरण के सहारे शर्ववर्मा ने राजा को छह महीने में विद्याओं में पारंगत बना दिया. सारे राष्ट्र में उत्सव मनाया गया. घर घर पर पताकाएं फहरा रही थीं. राजा ने अपार धन-सम्पदा दे कर शर्ववर्मा की पूजा की और उसे नर्मदा के तट पर भृगु कच्छ (भड़ौच ) देश का राजा बना दिया. विष्णुशक्ति की पुत्री जिस रानी के कहने पर राजा को विद्याभ्यास की लगन लगी थी, उसे राजा ने अपनी पटरानी बना लिया.

गुणाढ्य शर्ववर्मा से शर्त हार गए और अपने वचन के अनुसार तीनों भाषाएं छोड़ कर मौन धारण कर लिया और विंध्यवासिनी के दर्शन के लिए निकल पड़े. गुणाढ्य काणभूति को बताते हैं की देवी विध्यासिनी के कहने पर ही मैं तुमसे मिलने आया हूँ. विन्ध्य के वन में रह कर वहा के पुलिंदों से मैंने यह पिशाच भाषा सीखी है, जिसमे मैं अब बोल रहा हूँ. अब तुम मुझे ब्रहत्कथा सुनाओ, जिसे मैं इसी पैशाची भाषा में लिखूंगा. उसके बाद मेरी शाप मुक्ति हो पायेगी.

गुणाढ्य के द्वारा इस प्रकार अपनी कथा सुनाने पर काणभूति ने भी उसे वररुचि से सुनी हुई ब्रह्त्कथा सुनाई. गुणाढ्य ने उस ब्रह्त्कथा को सात वर्षों में सात लाख छंदों में पैशाची (प्राकृत) में लिखा. उस घोर वन में स्याही न मिलने के कारण मनस्वी गुणाढ्य ने अपने रक्त से ही वह विशाल कथा लिख डाली.सुना जाता है कि लिखते लिखते जब गुणाढ्य अपनी कथा पढने लगते, तो सुनने के लिए सिद्ध विद्याधरों का जमघट आकाश में लग जाया करता था.  इस प्रकार गुणाढ्य की कथा पूरी लिखी गयी, उस महाकथा को काणभूति ने सुना और गुणाढ्य कृत ब्रह्त्कथा ग्रन्थ को देखा. सुन कर और देख कर वह शाप से मुक्त हो गया. उसके साथ रहने वाले पिशाच भी उस कथा को सुन कर दिव्यलोक में पहुँच गए.

साथियों अभी मैं इस कथा को यहीं विश्राम देती हूँ...अगले अंक में इस कथा के प्रचार की कथा का वृतांत आपके समक्ष रखूंगी जो कि बहुत ही मार्मिक अनुभूतियाँ करता है.....तब तक के लिए आज्ञा दें.

नमस्कार !

13 टिप्‍पणियां:

  1. श्री मनोज कुमार जी राजभाषा ब्लॉग के कर्णधार होने के साथ-साथ वे मेरे ब्लॉग गुरू भी हैं । उनको मेरी ओर से बधाई । इस ज्ञानवर्धक प्रस्तुति के लिए आपका आभार । पोस्ट की समाप्ति तक इसे पढ़ता रहूंगा । आप बहुत ही अच्छा कार्य कर रही हैं । धन्यवाद ।

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  2. Manoj Kumarji ko bahut,bahut badhayee ho!

    Katha me badaa hee aanand aaya! Aapke lekhan ka intezaar hamesha rahega!

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  3. मनोज जी को बहुत बहुत बधाई...

    कथा बहुत रोचक लगी...आभार

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  4. मनोज जी को हार्दिक शुभकामनायें .कथा रोचक और मार्मिक है

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  5. मनोज जी को बहुत-बहुत बधाई !
    कथा प्रेरक है ,अगर ठान लें तो असंभव लगनेवाला कार्य भी संभव हो जाता है !

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  6. बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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  7. मनोज जी को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें !
    गुणाढ्य की कथा का यह भाग भी रोचक है ! अगली कड़ी के लिये आपने उत्सुकता जगा दी है ! इन कथाओं का अपना अलग ही आकर्षण है ! आनंद आ रहा है !

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