रविवार, 19 फ़रवरी 2012

प्रेरक प्रसंग-24 : सेवामूर्ति बापू

प्रेरक प्रसंग-24

प्रेरक प्रसंग – 1 : मानव सेवा, प्रेरक-प्रसंग-2 : सहूलियत का इस्तेमाल, प्रेरक प्रसंग-3 : ग़रीबों को याद कीजिए, प्रेरक प्रसंग-4 : प्रभावकारी अहिंसक शस्त्र, प्रेरक प्रसंग-5 : प्रेम और हमदर्दी, प्रेरक प्रसंग-6 : कष्ट का कोई अनुभव नहीं, प्रेरक प्रसंग-7 : छोटी-छोटी बातों का महत्व, प्रेरक प्रसंग-8 : फूलाहार से स्वागत, प्रेरक प्रसंग-९ : बापू का एक पाप, प्रेरक-प्रसंग-10 : परपीड़ा, प्रेरक प्रसंग-11 : नियम भंग कैसे करूं?, प्रेरक-प्रसंग-12 : स्वाद-इंद्रिय पर विजय, प्रेरक प्रसंग–13 : सौ सुधारकों का करती है काम अकेल..., प्रेरक प्रसंग-14 : जलती रेत पर नंगे पैर, प्रेरक प्रसंग-15 : वक़्त की पाबंदी, प्रेरक प्रसंग-16 : सफ़ाई – ज्ञान का प्रारंभ, प्रेरक प्रसंग-17 : नाम –गांधी, जाति – किसान, धंधा ..., प्रेरक प्रसंग-18 : बच्चों के साथ तैरने का आनंद, प्रेरक प्रसंग-19 : मल परीक्षा – बापू का आश्चर्यजनक..., प्रेरक प्रसंग–20 : चप्पल की मरम्मत, प्रेरक प्रसंग-21 : हर काम भगवान की पूजा, प्रेरक प्रसंग-22 : भूल का अनोखा प्रायश्चित, प्रेरक प्रसंग-23 कुर्ता क्यों नहीं पहनते?

सेवामूर्ति बापू

प्रस्तुत कर्ता : मनोज कुमार

प्रसंग चंपारण का है। सन 1917 की बात है। किसानों का सत्याग्रह चल रहा था। गांधी जी के सत्याग्रह में सब भाग ले सकते थे। चंपारण में जो सत्याग्रह चल रहा था, उसमें कुष्ठरोग से पीड़ित एक खेतिहर मज़दूर भी शामिल था। वह पैरों में फटे कपड़े का चिथड़ा लपेट कर चलता था। उसके घाव से मवाद बहते रहते थे और पैर खूब सूजे हुए थे। उसे असहनीय दर्द होता था। लेकिन बापू का आह्वान और उसकी आत्मशक्ति ने उस महारोगी को सत्याग्रही बनने के लिए प्रेरित किया था।

एक दिन सत्याग्रही दिन-भर की यात्रा के बाद शाम के वक़्त आश्रम की तरफ़ लौट रहे थे। उस महारोगी के पैरों मे लिपटे चिथड़े रास्ते में गिर पड़े। उससे चला नहीं जा रहा था। उसके पैर के घावों से रिस-रिस कर ख़ून बहने लगे। जब इस तरह की यात्रा या मार्च होती थी तो गांधी जी सबसे आगे चलते थे। उस दिन भी वे आगे-आगे चल रहे थे। अन्य सत्याग्रही उनकी चाल से अपने क़दम मिलाते हुए चल रहे थे। सारे सत्याग्रही आगे बढ़ गए। गांधी जी बहुत तेज़ी से चलते थे। वह महारोगी पीछे छूट गया। उसका किसी को ध्यान ही न रहा।

सब आश्रम पहुंचे। शाम की प्रार्थना का वक़्त हो चला था। बापू के चारो ओर सारे सत्याग्रही बैठ गए। बापू को वह महारोगी न दिखा। उन्होंने उसके बारे में पूछताछ की। किसी ने बताया, “वह तेज़ी से चल नहीं सकता था। थक जाने के कारण एक पेड़ के नीचे बैठ गया था।”

बापू ने एक शब्द भी नहीं कहा। चुपचाप उसी क्षण उठे, हाथ में एक लालटेन उठाया और उस महारोगी को खोजने निकल पड़े। कुछ दूर चलने के बाद उन्हें राम नाम लेता एक सज्जन एक पेड़ के नीचे बैठा दिखा। नज़दीक पहुंचने पर पाया कि यह तो वही महारोगी है। उसकी दशा दयनीय थी। वह थका-हारा और परेशान दिख रहा था। लाटेन की रोशनी में जब उसने सामने बापू को देखा तो उसके चेहरे पर प्रसन्नता की लकीर खिंच गई। भरे गले से उसने पुकारा, “बापू!”

गांधी जी ने उससे कहा, “अरे, तुमसे चला नहीं जा रहा था, तो तुम्हें मुझसे कहना चाहिए था ना।” लालटेन की रोशनी में उसके पैरों पर बापू की नज़र गई। पैर ख़ून से सना था। साथ के दूसरे सत्याग्रही उस कुष्ठ-रोगी की ऐसी अवस्था देख कर पीछे हट गए। गांधी जी ने अपनी चादर फाड़कर उसके पैरों को लपेट दिया। उसको सहारा देकर धीरे-धीरे आश्रम में अपने कमरे में ले गए। उन्होंने उसके पैरों को ठीक से धोया। मलहम लगाया। पट्टी की। प्रेम से उसे अपने पास बिठाया। वहीं पर भजन शुरू हुआ। प्रार्थना भी हुई। वह कुष्ठ-रोगी प्रेम-और भक्ति की सरिता में गोते लगाता हुआ तालियां बजा रहा था। उसकी आंखें भक्ति और सेवामूर्ति बापू के स्नेह से भरी हुई थीं।

***

7 टिप्‍पणियां:

  1. गांधी जी मानवीय संवेदना को सर्वदा ध्यान में रखते थे एवं "परहित सरिस धरम नही भाई" से प्रभावित थे । उन्होंने आजीवन लोगों की सेवा में ही अपने आप को समर्पित रखा एवं हर पल दुखी, लाचार एवं विवश लोगों के साथ ही व्यतीत किया । इस महान योगी के कर्मों का लेखा -जोखा ही उन्हे एक ऐसी ऊचाई पर ले गया जहां से आज भी उनकी कृतियां सबको एक नई रोशनी प्रदान करती है । दुनिया के तमाम धार्मिक ग्रंथों के मूल में यही भाव दिखता है कि .... The best way to love God is to love mankind. संग्रहणीय पोस्ट की प्रस्तुति के लिए मेरी ओर से आप प्रशंसा के पात्र हैं । धन्यवाद ।

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  2. प्रेरणादायक है बापू जी का यह प्रसंग ....कोई व्यक्ति अगर लोगों के दिलों पर राज कर सकता है तो वह निश्छल सेवा से ही संभव है .....!

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  3. मानवीय समवेदनाओं की पराकाष्ठा .... आज के नेता सही हलामत पैर को लहूलुहान कर जाते हैं ॥

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  4. बेहतरीन भाव पूर्ण सार्थक रचना,

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  5. एक संवेदनशील घटना... मानव जाति की सेवा ही परमात्मा की सेवा है.. इस तथ्य को उजागर करती!!

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  6. उसकी आंखें भक्ति और सेवामूर्ति बापू के स्नेह से भरी हुई थीं। vastav me gandhi jee manav nhi blki mahamanav the jb koi unki burai krta hai to mujhe burai krnevale pr taras aata hai.

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  7. बापू को नमन ! प्रेरक घटना !

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