जन्म --- 1398
निधन --- 1518
सुमरण की सुब्यों करो ज्यों गागर पनिहार ।
होले-होले सुरत में, कहैं कबीर विचार ॥ 111 ॥
सब आए इस एक में, डाल-पात फल-फूल ।
कबिरा पीछा क्या रहा, गह पकड़ी जब मूल ॥ 112 ॥
जो जन भीगे रामरस, विगत कबहूँ ना रूख ।
अनुभव भाव न दरसते, ना दु:ख ना सुख ॥ 113 ॥
सिंह अकेला बन रहे, पलक-पलक कर दौर ।
जैसा बन है आपना, तैसा बन है और ॥ 114 ॥
यह माया है चूहड़ी, और चूहड़ा कीजो ।
बाप-पूत उरभाय के, संग ना काहो केहो ॥ 115 ॥
जहर की जर्मी में है रोपा, अभी खींचे सौ बार ।
कबिरा खलक न तजे, जामे कौन विचार ॥ 116 ॥
जग मे बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय ।
यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोय ॥ 117 ॥
जो जाने जीव न आपना, करहीं जीव का सार ।
जीवा ऐसा पाहौना, मिले ना दूजी बार ॥ 118 ॥
कबीर जात पुकारया, चढ़ चन्दन की डार ।
बाट लगाए ना लगे फिर क्या लेत हमार ॥ 119 ॥
लोग भरोसे कौन के, बैठे रहें उरगाय ।
जीय रही लूटत जम फिरे, मैँढ़ा लुटे कसाय ॥ 120 ॥
sarthak prayas......
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen...
जो जन भीगे रामरस, विगत कबहूँ ना रूख ।
जवाब देंहटाएंअनुभव भाव न दरसते, ना दु:ख ना सुख ॥
कबीर का मानसिक सोच एवं अभिव्यक्ति का स्वरूप निराला है । उन्होंने अपने दोहों में भक्ति, प्रेम व सदाचरण से भगवान को प्राप्त करने का संदेश दिया। वस्तुतः कबीर की व्यथा किसी वर्ग विशेष की व्यथा नहीं थी, वह व्यापक मानवता की व्यथा थी। वर्तमान संदर्भों में उन्होंने आज की तरह प्रतिष्ठा दिलाने के लिए साधना नहीं की। क्योंकि कबीर के अनुसार साधना से ही मूलतः मानव व प्राणी मात्र का आध्यात्मिक कल्याण है। यदि एकाग्रचित होकर पढा जाए तो उनके प्रत्येक दोहे का अर्थ हमें वर्तमान हलातों से संघर्ष करने के निमित्त कुछ सीख दे सकता है । इस पोस्ट की निरंतरता बनाए रखें । धन्यवाद ।
सुमरण की सुब्यों करो ज्यों गागर पनिहार ।
जवाब देंहटाएंहोले-होले सुरत में, कहैं कबीर विचार ॥ 111 ॥
कबीर दास सामान्य जीवन के उदाहरण देकर साधना की गूढ़ बातें समझाते थे...बहुत सार्थक पोस्ट!
बहुत कुछ सीखने को मिलता है कबीर से. आभार.
जवाब देंहटाएं्बहुत सुन्दर कबीर वाणी
जवाब देंहटाएंसादर नमन ||
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति |
आभार ||
सुन्दर कबीर वाणी.
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंइंडिया दर्पण की ओर से आभार।