सभी सुधि जनों को अनामिका का सादर नमन ! आज प्रस्तुत है साहित्य सेवा और नौकरी दो नावों में सवार दिनकर
जी के जीवन के संघर्ष की दास्तान...
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१. देवता हैं नहीं २. नाचो हे, नाचो, नटवर ३. बालिका से वधू ४. तूफ़ान ५. अनल - किरीट ६. कवि की मृत्यु
दिनकर जी जीवन दर्पण-भाग-7
दिनकर जी अपना परिचय देते हुए लिखते
हैं....
सलिल कण हूँ या
पारावार हूँ मैं
स्वयं छाया,
स्वयं आधार हूँ मैं
बंधा हूँ,
स्वपन हूँ, लघु वृत्त मैं
हूँ
नहीं तो व्योम
का विस्तार हूँ मैं !!
अब आगे ...
यह बड़ी अचरज की बात थी कि हिंदी का यह
महान कवि अंग्रेजी सरकार कि नौकरी में फंस गया, जिसके भीतर से
भारत की राष्ट्रीयता अपनी सबसे निर्भीक आवाज़ उठाने वाली थी. पर यह स्थिति उतनी
अनहोनी नहीं है. 'वन्देमातरम'
के कवि और
'आनंदमठ' के लेखक
बंकिमचंद्र चटर्जी, राष्ट्रीय उपन्यासकार रमेशचंद्र दत्त,
राष्ट्रीय
नाटककार डी. एल. राय सभी सरकारी नौकर थे. इनके अलावा आशुतोष मुखर्जी,
महादेव
गोविन्द रानडे भी सरकारी नौकर थे. दिनकरजी की सरकारी नौकरी की आड़ लेकर उनके
निंदकों ने उनकी भीतर-भीतर बुराई की, इसका कारण शायद
यह है कि वे अपेक्षाकृत छोटी नौकरी करते थे.
नौकरी के दिन अमन-चैन से नहीं बीते. स्वयं
दिनकरजी से खोद-खोद कर पूछने पर जिन बातों का पता लगा,
वे काफी
दिलचस्प हैं. स्कूल की मास्टरी छोड़कर जब दिनकर जी सब-रजिस्ट्रारी में जाने लगे,
तब उनके
परम मित्र रामवृक्ष बेनीपुरी ने उनके इस इरादे का विरोध किया था. पर जब वे नौकरी
में चले गए, राष्ट्रपति राजेन्द्रबाबू ने बनारसीदास जी
चतुर्वेदी से कहा था - दिनकरजी को दो में से एक को त्यागना पड़ेगा,
या तो कविता
को या नौकरी को.
किन्तु दिनकरजी ने साहित्य और नौकरी दो
नावों पर पैर रखे, जैसा बंकिमचंद्र,
रमेशचंद्र
दत्त, और डी. एल. राय रख सके. प्रेमचंद
जी को एक नाव छोडनी पड़ी. इससे स्पष्ट है कि
परिस्थितियों से वे केवल जूझना ही नहीं, समझौता करना भी
जानते थे. दिनकरजी में समझौते की प्रवृति थी और इसी
प्रवृति से विविध संघर्ष झेलकर वे इतनी दूर तक आ सके और ऐसा कहना शायद संभव नहीं
कि बचा सकते तो वह अजूबा ही होता. वह स्वयं नहीं, उनकी सारी
अक्षौहिणियां राष्ट्रीयता के पक्ष में रहीं, यदि एकाध सैनिक
भटक कर दुर्योधन के शिविर में पहुँच गया तो उससे दिनकर की राष्ट्रीयता का महाभारत
अशुद्ध नहीं हो जाता.
1935 में दिनकरजी ने
बिहार प्रादेशिक साहित्य सम्मेलन के साथ होनेवाले छपरा कवि सम्मेलन का सभापतित्व
किया था. उस सम्मेलन में अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध कई कवितायें
पढ़ी गयी थी . एक कविता
श्री ललित कुमार सिंह नटवर ने भी पढ़ी थी, जो ब्रिटिश
सरकार द्वारा गोलमेज सम्मेलन के अवसर पर प्रकाशित श्वेतपत्र के बारे में थी. सम्मेलन
के बाद सरकार ने दिनकरजी से कैफियत तलब की, कि -
१. उस सम्मेलन में सम्मिलित होने के
पूर्व तुमने सरकार से अनुमति क्यूँ नहीं मांगी और
२. सभापति की हैसियत से तुमने कवियों
को सरकार के विरुद्ध कवितायेँ पढने से क्यूँ नहीं रोका ?
दिनकर जी ने जवाब दिया,
सांस्कृतिक
सभाओं में जाने के लिए अनुमति लेने की आवश्यकता मैंने नहीं समझी और कवियों को यदि
मैं कवितायें पढने से रोकता, तो जनता उनकी ओर
और भी आकृष्ट होती. सरकार ने कदाचित अंतिम तर्क को गौरव प्रदान किया और शायद इसीके
फलस्वरूप इनके विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की गयी.
1935 में ही जब
'रेणुका' पहले पहल निकली,
तो हिंदी
संसार ने तुरंत उसे सर आँखों पर उठा लिया. 'माधुरी'
में
प्रकाशित एक लेख में ' रेणुका'
की गड़ना हिंदी की
सर्वश्रेष्ठ सौ पुस्तकों में की गयी और बिहार के
हिंदी और अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं के पत्रों ने उसका स्वागत बड़े ही उत्साह से
किया.
इससे सरकार के कान
खड़े हो गए.
फिर क्या था, सेक्क्रीटेरीएट में इसका अंग्रेजी अनुवाद
तैयार किया गया और दिनकरजी को फिर चेतावनी दी गयी. यह चेतावनी मुजफ्फरपुर के जिला
मजिस्ट्रेट मिस्टर बौस्टेड के द्वारा दिलाई गयी थी. बौस्टेड ने पूछा
- क्या आप 'रेणुका' के लेखक हैं ?
दिनकरजी ने हामी भरी. बौस्टेड बोले - आपने
सरकार विरोधी कवितायेँ क्यों लिखी ? पुस्तक प्रकाशित
करने के पूर्व सरकार से अनुमति क्यों नहीं मांगी ?
दिनकरजी ने कहा - मेरा भविष्य साहित्य
में है. अनुमति मांगकर किताबें छपवाने से मेरा भविष्य बिगड़ जायेगा. और मेरे कहना
यह है कि रेणुका की कवितायें सरकार विरोधी नहीं, मात्र देशभक्ति
पूर्ण हैं. यदि देशभक्ति अपराध हो, तो मैं वह बात
जान लेना चाहता हूँ.
बौस्टेड ने कहा -
देशभक्ति अपराध नहीं है और अपराध वह
कभी नहीं
होगी, पर आप संभल कर चलें.
दिनकरजी के विरुद्ध एक बार फिर कोई
कार्यवाही नहीं हुई.
इसके बाद जब 'हुंकार'
प्रकाशित
हुआ, सरकार के कान फिर खड़े हो गए. इस बार चेतावनी
मुंगेर के जिला मैजिस्ट्रेट द्वारा दिलवाई गयी. उस समय मुंगेर के जिला मजिस्ट्रेट
रायबहादुर विष्णुदेव नारायणसिंह थे, जो बाद में
रांची विश्वविद्यालय के उपकुलपति रहे. ब्रिटिश सरकार के आधीन कुछ ऐसे भी भारतीय
अफसर थे जो भीतर ही भीतर राष्ट्रीयता के भक्त थे. विष्णुदेव नारायणसिंह ने दिनकर से कहा
- यह रोज रोज का टंटा क्यों किए चलते हैं ? सरकारी अफसरों
के लिए यह अच्छा नहीं है कि उनके पीछे ख़ुफ़िया लगे फिरें. अनुमति लेकर किताबें
प्रकाशित करवाइए और नौकरी को निरापद रखिये.
दिनकरजी ने कहा - मेरे सिर पर गरीब
परिवार का भारी बोझ है. मैं नौकरी छोड़ने की स्थिति में नहीं
हूँ. और अनुमति मांगूंगा तो फिर कविता लिखने से क्या लाभ ?
कहिये तो
कविता लिखना छोड़ दूँ.
इस पर जिला मजिस्ट्रेट बोले - अरे,
कविता न
लिखने से तो देश का ही नुक्सान होगा. मुझे जो कुछ कहना था,
मैंने कह
दिया.
क्रमशः
इसी प्रकार के दमघोंटू वातावरण में
दिनकर जी को जनता का प्यार मिलता रहा और लेखनी विस्तार
पाती रही .....लीजिये हुंकार से ही ली गयी दिनकर जी की 'दिगम्बरी'
कविता.
दिगम्बरी
उदय-गिरी पर पिनाकी
का कहीं टंकार बोला,
दिगम्बरी ! बोल,
अम्बर में
किरण का तार बोला.
(१)
तिमिर के भाल पर चढ़ कर विभा के
बाणवाले,
खड़े हैं मुन्तजिर कब से नए अभियानवाले !
प्रतीक्षा है,
सुने कब व्यालिनी ! फुंकर तेरा ?
विदारित कब करेगा
व्योम को हुंकार तेरा ?
दिशा के बंध से
झंझा विकल है छूटने को ;
धरा के वक्ष से
आकुल हलाहल फूटने को !
कलेजों से लगी बत्ती
कहीं कुछ जल रही है ;
हवा की सांस पर बेताब सी कुछ चल
रही है !
धराधर को हिला गूंजा
धरणी से राग कोई,
तलातल से उभरती आ
रही है आग कोई !
क्षितिज के भाल पर नव
सूर्य के सप्ताष्व बोले
चतुर्दिक भूमि के
उत्ताल पारावार बोला !
नये युग की भवानी,
आ गयी
बेला प्रलय की,
दिगम्बरी! बोल,अम्बर में किरण
का तार बोला !
(२)
थकी बेडी कफस की हाथ में
सौ बार बोली,
ह्रदय पर झनझनाती टूट कर तलवार बोली,
कलेजा मौत ने जब-जब टटोला इम्तिहाँ में,
जमाने को तरुण की टोलियाँ ललकार बोलीं!
पुरातन और नूतन वज्र
का संघर्ष बोला,
विभा सा कौंध कर भू का नया आदर्श बोला,
नवागम-रोर से जागी बुझी -ठंडी
चिता भी,
नयी श्रृंगी उठाकर
वृद्ध भारतवर्ष बोला !
दरारें हो गयीं
प्राचीर में बंदी भवन के,
हिमालय की दरी का सिंह भीमाकार बोला !
नये युग की भवानी,
आ गयी
बेला प्रलय की,
दिगम्बरी! बोल,अम्बर में किरण
का तार बोला.
(३)
लगी है धुल को परवाज़,
उडती जा
रही है,
कड़कती दामिनी झंझा कहीं से आ
रही है !
घटा सी दीखती जो,
वह
उमड़ती आह मेरी,
कड़ी जो विश्व का पथ रोक,
है वह चाह
मेरी !
सजी चिंगारियां,
निर्भय प्रभंजन मग्न आया,
क़यामत की घडी आई,
प्रलय का
लग्न आया !
दिशा गूंजी,
बिखरता
व्योम में उल्लास आया,
नए युगदेव का नूतन
कटक लो पास आया !
पहन द्रोही कवच रण
में युगों के मौन बोले,
ध्वजा पर चढ़ अनागत धर्म का
हुंकार बोला !
नए युग की भवानी,
आ गयी बेला प्रलय की,
दिगम्बरी ! बोल,
अम्बर में
किरण का तार बोला !
(४)
ह्रदय का लाल रस
हम वेदिका में दे चुके हैं,
विहंस कर विश्व का अभिशाप सिर पर ले
चुके हैं !
परीक्षा में रुचे,
वह कौन हम उपहार लायें ?
बता, इस बोलने
का मोल हम कैसे चुकाएं ?
युगों से हम अनय
का भार ढोते आ रहे हैं,
न बोली तू,
मगर, हम रोज मिटते जा रहे हैं !
पिलाने को कहाँ से
रक्त लायें दानवों को ?
नहीं क्या स्वत्व है प्रतिकार का हम
मानवों को ?
जरा तू बोल तो,
सारी धरा हम फूंक देंगे,
पड़ा जो पंथ में
गिरी, कर उसे दो टूक देंगे !
कहीं कुछ पूछने बूढा
विधाता आज आया,
कहेंगे हाँ,
तुम्हारी सृष्टि को हमने मिटाया !
जिला फिर पाप को टूटी धरा
यदि जोड़ देंगे,
बनेगा जिस तरह उस सृष्टि को हम फोड़
देंगे !
ह्रदय की वेदना बोली
लहू बन लोचनों में,
उठाने मृत्यु का
घूघट हमारा प्यार बोला !
नए युग की भवानी,
आ गयी
बेला प्रलय की,
दिगम्बरी ! बोल,
अम्बर में
किरण का तार बोला !
(हुंकार)
राष्ट्रकवि दिनकर के जीवन और साहित्य से परिचय की यह श्रृंखला बहुत बढ़िया और ज्ञानवर्धक है...
जवाब देंहटाएंDinkarji ke jeevanke kayee pahluon kee bahut rochak tareeqese maloomaat de rahee hain aap!
जवाब देंहटाएंदिनकर जी की जीवन शैली से परिचय अच्छा लगा ...
जवाब देंहटाएंउम्दा पोस्ट .
जवाब देंहटाएंपिलाने को कहाँ से रक्त लायें दानवों को ?
जवाब देंहटाएंनहीं क्या स्वत्व है प्रतिकार का हम मानवों को ?आपके सौजन्य से ये काल जयीय रचनाएं हमें भी पढने को मिल रहीं हैं .आभार आपका ..कृपया यहाँ भी पधारें -
बुधवार, 9 मई 2012
शरीर की कैद में छटपटाता मनो -भौतिक शरीर
http://veerubhai1947.blogspot.in/
रहिमन पानी राखिये
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
सलिल कण हूँ या पारावार हूँ मैं
जवाब देंहटाएंस्वयं छाया, स्वयं आधार हूँ मैं
बंधा हूँ, स्वपन हूँ, लघु वृत्त मैं हूँ
नहीं तो व्योम का विस्तार हूँ मैं !!
/
मैं सलिल भी हूँ और दिनकर जी के पटना वाले घर के पड़ोस से भी हूँ...
मगर यह श्रृंखला बहुत ही प्रभावी है!!
इस श्रृंखला का एक-एक अंक बेहद रोचक और संग्रहणीय है।
जवाब देंहटाएंaap sab ka aabbar.
जवाब देंहटाएंदिनकर जी के विषय में इतनी जानकारी पहली नहीं थी आपकी पोस्ट पर आकर अच्छा लगा आभार... समय मिले आपको तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है एक नारी होने के नाते मेरी इस पोस्ट पर आपके विचारों की प्रतीक्षा रहेगी।
जवाब देंहटाएंhttp://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/ धन्यवाद....