श्रीकांत वर्मा
श्रीकान्त वर्मा (1931-1986) |
मगध
सुनो
भाई घुड़सवार मगध किधर है
मगध से आया
हूं
मगध
मुझे जाना है
किधर मुड़ूँ
उत्तर के
दक्षिण
या
पूर्व के
पश्चिम
में
लो, वह
दिखायी पड़ा मगध
लो, वह
अदृश्य
कल ही तो मगध
मैंने
छोड़ा था
कल ही तो कहा
था
मगधवासियों
ने
मगध मत छोड़ो
मैंने दिया
था वचन –
सूर्योदय के पहले
लौट जाऊँगा।
न मगध है न मगध
तुम भी तो मगध को ढूँढ़
रहे हो
बंधुओं
यह वह मगध नहीं
तुमने जिसे पढ़ा है
किताबों में
यह वह मगध है
जिसे तुम
मेरी तरह गँवा
चुके हो।
*** *** ***
मन को छूती ....बहुत सुंदर कविता ....!!
जवाब देंहटाएंपढ़वाने का आभार ....!!
यह वह मगध नहीं
जवाब देंहटाएंतुमने जिसे पढ़ा है किताबों में
यह वह मगध है
जिसे तुम
मेरी तरह गँवा
चुके हो।
श्रीकांत वर्मा ने अपनी इस कविता के माध्यम से इतिहास की उस कड़ी को दुहराया है जो समय के प्रवाह के साथ अपना अस्तित्व एवं गरिमा खो चुका है । इन पक्तियों की पृष्ठभूमि में न जाने कितने सत्य एवं संघर्ष की कहानी मगध में दम तोड़ चुकी है। आज मगध का अपना कहने के लिए कुछ शेष नही बचा है पर श्रीकांत वर्मा ने अपनी इस कविता के माध्यम से मगध की महता को बखूबी से रेखांकित किया है जो साहित्य एवं इतिहास का सहचर बन चुका है । इस कविता को पोस्ट करने के लिए आपका विशेष आभार ।
राष्ट्र-कवि दिनकर वे भी कुछ ऐसे ही प्रश्न पूछे थे -
जवाब देंहटाएं'तू पूछ अवध से राम कहाँ ?
वृंदा ! बोलो घनश्याम कहाँ ?
ओ मगध ! कहाँ मेरे अशोक ?
वह चन्द्रगुप्त बलधाम कहाँ ?'
*
- बहुत सार्थक कविता कि मगधवासी ही मगध को विस्मृत कर बैठे
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबुधवारीय चर्चा-मंच पर |
charchamanch.blogspot.com
बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंश्रीकांत वर्मा जी की कविता पढ़वाने के लिए हार्दिक आभार ....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर कविता ..पढवाने का आभार.
जवाब देंहटाएंश्रीकांत जी को पढ़ना एक अपूर्व अनुभव रहा .हम भी तो अपने अपने शहरों में अपने शहर को ढूंढ रहें हैं .
जवाब देंहटाएंकृपया यहाँ भी पधारें -
डिमैन्शा : राष्ट्रीय परिदृश्य ,एक विहंगावलोकन
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
सोमवार, 30 अप्रैल 2012
जल्दी तैयार हो सकती मोटापे और एनेरेक्सिया के इलाज़ में सहायक दवा
बहुत अच्छी कविता..
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