पुस्तक परिचय-29 : मुस्लिम मन का आईना
मनोज कुमार
एक
बेहतर हिन्दू-मुस्लिम संबंधों और लोगों के बीच सहिष्णुता के वातावारण के लिए यह
अत्यंत आवश्यक है कि मुसलमान हिन्दुओं के और हिन्दू मुसलमानों के मानस को समझें। इसी उद्देश्य को केन्द्र में रखकर श्री राजमोहन गांधी ने “मुस्लिम मन का आईना” पुस्तक लिखी है। 1984-85 में यह पुस्तक लिखी गई थी और 1986 में अमरीका से “अंडरस्टैंडिंग
द मुस्लिम माइंड” नाम से प्रकाशित हुई थी। इस पुस्तक का अनुवाद अरविन्द मोहन
ने किया है।
राजमोहन
गांधी महात्मा गांधी के पोते हैं। उनके पिता श्री देवदास गांधी हिन्दुस्तान टाइम्स
के प्रबन्ध सम्पादक थे। उनके नाना श्री सी. राजगोपालाचारी स्वन्तन्त्र भारत के
पहले गवर्नर जनरल थे। सेंटर फॉर पॉलिसी स्टडीज़, नई दिल्ली में रिसर्च प्रोफेसर
श्री राजमोहन गांधी ने न सिर्फ़ गांधी जी,
राजा जी, सरदार पटेल की जीवनी लिखी है बल्कि भारतीय स्वन्त्रता संग्राम के नायकों,
भारत-पाक संबंध और मानवाधिकार पर विस्तारपूर्वक लिखा है।
श्री राजमोहन गांधी
द्वारा लिखी गई “मुस्लिम मन का आईना” एक
विशिष्ट पुस्तक है जो हिन्दू-मुस्लिम संबंधों के विषय में हमें जागरूक करती है,
ऐसे प्रश्नों को लेकर सार्थक चिन्तन और उत्तर प्रस्तुत करने का प्रयास करती है जो
आज तक अनुत्तरित हैं।
इस
पुस्तक में भारत और पाकिस्तान के आठ प्रसिद्ध मुस्लिम नेताओं के जीवन को रेखांकित
किया गया, उनके कहे-अनकहे पहलुओं को हमारे सामने लाया गया है। ये लोग हैं – सैयद अहमद ख़ान, मुहम्मद इक़बाल, मुहम्मद अली, मुहम्मद अली जिन्ना, फज़्लुल
हक़, अबुल कलाम आज़ाद, लियाक़त अली ख़ां, ज़ाकिर हुसैन। लेखक ने इन हस्तियों
की जो इस माध्यम से कई कही-अनकही बातों
को कहा है, उसे कानों के साथ-साथ दिल से भी सुनने की अपेक्षा रखी जाती है। लेखक खुद
इस बात को स्वीकार करते हैं कि उनपर ‘छद्म-धर्मनिर्रपेक्षतावादी’ होने का लेबिल
लगाया जा सकता था, लेकिन निष्ठावान हिन्दूओं द्वारा भी इस पुस्तक की प्रशंसा की गई
है।
यह पुस्तक हमारे
मन में बनी मुसलमानों के प्रति उन सभी भ्रान्त धारणाओं को वैचारिक स्तर पर तोड़ती है
जिन्हें हम तथा कथित “इतिहास” के रूप में जानते आए हैं। इतिहास कभी आपसी द्वेष और शंकाओं
को खतम नहीं कर पाया। लेखक का मानना है कि एक उदार और जहां तक सम्भव हो सके इतिहास
के प्रति एक ग़ैर-पक्षपातपूर्ण नज़रिया हमें कम से कम हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे के रास्ते
की रुकावटों के बारे में बता सकता है और साथ ही यह बता सकता है कि इतिहास में क्या
कुछ ग़लत हुआ था और क्यों, जो कि हमें इन बाधाओं को समाप्त करने में मददगार हो सकता
है।
हिन्दू और मुसलमानों की मानसिक संरचना में कितनी एकरूपता है और कितनी भिन्नता,
तथा दोनों ही समुदाय हर पहलू से कितने एक-दूसरे के नज़दीक हैं, यह पुस्तक हमें विस्तार
से बताती है। लेखक के अनुसार ‘यदि हम उस समय का अध्ययन करें जब दूसरा पक्ष भी उदार-हृदय
था और उस समय का जब हमने भी संकीर्ण नज़रिया अपनाया था, यह चेतना, चाहे हम मुसलमान हों
या हिन्दू, हमारे द्वेष को कम कर सकती है। तब जाकर कहीं इतिहास हमें राष्ट्रीय और उपमहाद्वीपीय
पारस्परिक समझ दे पाएगा।”
यह पुस्तक हमें अत्यंत विनम्रता से उन ज़िन्दगियों को समझाने का प्रयास करती
है जिनके विषय में हम जानते हुए भी बहुत कम जानते हैं। पुस्तक परिचय के इस अंक को समाप्त
करते हुए, इसी पुस्तक के “निष्कर्ष” अध्याय की कुछ पंक्तियां कोट करना चाहूंगा,
“ये ज़िन्दगियां न हिन्दू-मुस्लिम सह-अस्तित्व को नकारती हैं, न ही उसका भरोसा दिलाती हैं, यद्यपि यह महत्वपूर्ण है कि एक या दूसरे समय में इन आठों में से सभी का इस पर विश्वास था।…”
इसे
एक बार ज़रूर पढ़ना चाहिए।
***
पुस्तक का नाम
|
मुस्लिम मन का आईना
|
रचनाकार
|
राजमोहन
गांधी
|
प्रकाशक
|
राजकमल
प्रकाशन, नई दिल्ली
|
संस्करण
|
प्रथम संस्करण : 2008
|
मूल्य
|
450
|
पेज
|
400
|
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सलमान हिन्दुओं के और हिन्दू मुसलमानों के मानस को समझें। इसी उद्देश्य को केन्द्र में रखकर श्री राजमोहन गांधी ने “मुस्लिम मन का आईना” पुस्तक लिखी है।
जवाब देंहटाएंkoshish achhi he.
बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंफर्क हम करते हैं फर्क होता नहीं है
यह चेतना, चाहे हम मुसलमान हों या हिन्दू,
जवाब देंहटाएंहमारे द्वेष को कम कर सकती है।
सुन्दर ।।
सादर नमन ।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमुझे हमेशा आपके इस लेख का इंतज़ार रहता है. कभी कभी जब ऐसा पुस्तक परिचय जो उत्सुकता को चरम सीमा तक पहुंचा देता है और मेरी पहुँच से दूर रहता है तो कहने में संकोच न होगा कि मानवीय स्वभाव के अंतर्गत ईर्ष्या भी होती है कि आपको कैसे आसानी से ऐसी पुस्तकें मिल जाती हैं. मैं भी विस्तार से जानना चाहती हूँ हिन्दू-मुस्लिम संबंधों को. लेकिन आज तक ये आम इन्सान इन समबन्धों को जितना जान पाया वो मीडिया और राजनैतिक संवादों से ही जान पाया है. वास्तविकता क्या है, शायद उस से हम कोसों दूर हैं. और इसी लिए आप अनुमान लगा पाएंगे की आम जनता इन संबंधों पर कैसा नजरिया रखती है.
जवाब देंहटाएंहमें ऐसी पुस्तकें ना सिर्फ जरूर पढनी चाहिए बल्कि इसमें प्रकाशित विचारों को भी आम जनता में फैलाना चाहिए....तभी तो विषमताओं की खायी पाटी जा सकेगी.
आभार इस पुस्तक परिचय के लिए.
राजमोहन गांधी द्वारा लिखित पुस्तक "मुस्लिम मन का आईना" के बारे में आपने जिन तथ्यों का वर्णन किया है, उसे ध्यान में रखते हुए यह पुस्तक पठनीय है । इस प्रकार की पुस्तकें मन में चल रहे आंतरिक मतभेद को शेष करने का सामर्थ्य रखती हैं । अतीत गवाह है कि नासमझी एवं समुचित ज्ञानाभाव के कारण हमें बहुत कुछ खोना पड़ा है ,जिसका भरपाई हम आज तक न कर सके । पुस्तक परिचय के रूप में आपकी इस प्रकार की प्रस्तुति हम सबके ज्ञान को विस्तार प्रदान करती है । आशा है भविष्य में भी आप इस प्रकार की श्रंखला को गतिशील रखेंगे । धन्यवाद सहित ।
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