प्रेरक प्रसंग-36
चटनी का स्वाद
बात उस समय की है जब देश का स्वाधीनता संग्राम अपने चरम पर था। गांधी जी के आह्वान पर देश के हर वर्ग के लोग उनके साथ आगे आए। इनमें कई राजा-महाराजा भी थे। एक दिन काशी के महाराज गांधी जी के आश्रम आए और उन्होंने गांधी जी से कहा, “बापू! मैं भी राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल होना चाहता हूं।”
गांधी जी ख़ुश हुए। उन्होंने कहा, “यह तो बहुत अच्छी बात है। आप जैसे राजा लोग यदि आगे आएंगे, तो उनके साथ प्रजा भी आगे आएगी। एक राजा अपने साथ लाखों प्रजा साथ लेकर आएगा।”
भोजन के समय गांधी जी ने महाराज को भी साथ खाने को कहा। आश्रम का सादा भोजन सबके लिए परोसा गया। राजा के लिए भी। लेकिन राजा की थाली में एक चीज़ नहीं दी गई जो गांधी जी की थाली में थी। वह थी एक चटनी। गांधी जी उस चटनी को बड़े मज़े ले-ले कर खा रहे थे।
जब महाराजा ने यह देखा तो वे पूछ बैठे, “यह चटनी मुझे नहीम दी गई?”
गांधी जी बोले, “आपको भी चटनी चाहिए?” उन्होंने एक चम्मच चटनी महाराजा की थाली में डाल दी। महाराज ने स्वाद लेने की अधीरता में ढेर सारी चटनी एक बार में ही मुंह में भर लिया। मुंह में चटनी के जाते ही उनके मुंह का स्वाद बिगड़ने लगा। उन्हें अब न तो निगलते बन रहा था और न ही उगलते। उन्होंने पूछा, “बापू ये चटनी तो बहुत कड़वी है। नीम की है क्या?”
बापू ने कहा, “हां, नीम की ही है। मैं तो सालों से इसे खा रहा हूं। आप भि अगर अपने मुंह का स्वाद नहीं बदलेंगे, तो आन्दोलन के कष्ट को कैसे भोग सकेंगे।”
महाराज बापू के कहे का आशय समझ चुके थे। मन को कड़ा कर वे भी चटानी के स्वाद का आनंद लेने लगे।
बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
वाह क्या चटनी!!
जवाब देंहटाएंचटनी का स्वाद बहुत मजेदार रहा.. मैं भी दो तीन महीने से यही चटनी खा रहा हूँ!!
जवाब देंहटाएंmaja aa gya chatni khake ..........jane kab hamare abhi ke neta ise khayenge !
जवाब देंहटाएंअच्छी पोस्ट!
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मातृदिवस की शुभकामनाएँ!
रोचक प्रसंग ....
जवाब देंहटाएंगाँधी जी से जुदा रोचक प्रसंग प्रेरक भी लगा !
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