जन्म --- 1398
निधन --- 1518
एक कहूँ तो है नहीं, दूजा कहूँ तो गार ।
है जैसा तैसा हो रहे, रहें कबीर विचार ॥ 121 ॥
जो तु चाहे मुक्त को, छोड़े दे सब आस ।
मुक्त ही जैसा हो रहे, बस कुछ तेरे पास ॥ 122 ॥
साँई आगे साँच है, साँई साँच सुहाय ।
चाहे बोले केस रख, चाहे घौंट भुण्डाय ॥ 123 ॥
अपने-अपने साख की, सबही लीनी मान ।
हरि की बातें दुरन्तरा, पूरी ना कहूँ जान ॥ 124 ॥
खेत ना छोड़े सूरमा, जूझे दो दल मोह ।
आशा जीवन मरण की, मन में राखें नोह ॥ 125 ॥
लीक पुरानी को तजें, कायर कुटिल कपूत ।
लीख पुरानी पर रहें, शातिर सिंह सपूत ॥ 126 ॥
सन्त पुरुष की आरसी, सन्तों की ही देह ।
लखा जो चहे अलख को, उन्हीं में लख लेह ॥ 127 ॥
भूखा-भूखा क्या करे, क्या सुनावे लोग ।
भांडा घड़ निज मुख दिया, सोई पूर्ण जोग ॥ 128 ॥
गर्भ योगेश्वर गुरु बिना, लागा हर का सेव ।
कहे कबीर बैकुण्ठ से, फेर दिया शुक्देव ॥ 129 ॥
प्रेमभाव एक चाहिए, भेष अनेक बनाय ।
चाहे घर में वास कर, चाहे बन को जाय ॥ 130 ॥
बहुत सुन्दर और सार्थक .....
जवाब देंहटाएंसाँई आगे साँच है, साँई साँच सुहाय ।
जवाब देंहटाएंचाहे बोले केस रख, चाहे घौंट भुण्डाय ॥ 123 ॥
कबीर वाणी के तो क्या कहने………आभार
हिंदी के प्रमुख कवि मंगलेश डबराल जी के साथ कुछ समय बिताने का मौका मिला.. उन्होंने कहा था कि कविता जब रचनाकार के नाम से विलग हो अपना मुकाम बनाती है.. वही कविता अधिक समय तक प्रासंगिक होती है... कबीर के दोहे आज कबीर के नाम के बिना भी जीवित हैं.. लोक गीतों के रचनाकारों के नाम नहीं होते.... कबीर की यह श्रंखला बहुत बढ़िया जा रही है..
जवाब देंहटाएंलीक पुरानी को तजें, कायर कुटिल कपूत ।
जवाब देंहटाएंलीख पुरानी पर रहें, शातिर सिंह सपूत
वाह गज़ब के दोहे .कबीर का जबाब नहीं.
कबिरन बानी सब फली, महका हरसिंगार।
जवाब देंहटाएंछाँव ज्ञान का पायगा, जब तक है संसार।
सादर आभार।
सन्त पुरुष की आरसी, सन्तों की ही देह ।
जवाब देंहटाएंलखा जो चहे अलख को, उन्हीं में लख लेह ॥ 127 ॥
संतों की शरण में जाने पर ही संतों की वाणी में भेद खुलते हैं...