सत्यमेव जयते:
अधूरे शोध का बाजारवादी प्रदर्शन
अधूरे शोध का बाजारवादी प्रदर्शन
आमिर खान कहते हैं कि वे सपने देखते हैं इसलिए वे सत्यमेव जयते कार्यक्रम कर रहे हैं. बाज़ार भी सपने देखता है और दिखता भी है. जीवन को बदल देने का लुभावना वादा करके हमारे दिल दिमाग को जकड लेता है. दास बना लेता है. विज्ञापन के सुन्दर चित्र और रिश्ते उपभोग को बढ़ाने का पूरा इंतजाम करते हैं. हाल में जब मीडिया ने राजनीति से लेकर क्रांति, खेल से लेकर रियेलिटी, सेक्स से लेकर संबंधो जैसे विषयों पर सनसनीखेज़ कार्यक्रम बना कर थक गया तो सभी चैनलों के टी आर पी में एक रुकावट, एक ठहराव आने सा लगा था. सीरियल के प्रति क्रेज़ ख़त्म हो रहा था. ऐसे में बाज़ार को लगा कि राष्ट्रवाद, सामाजिक मुद्दे बिक सकते हैं, जैसे कि अन्ना हजारे के मामले में हुआ था. आमिर भाई साहब को भी छोटे परदे के माध्यम से घर घर तक पहुचना था और रामायण और महाभारत के बाद रविवार का स्लॉट अब भी खाली था.
फिर तैयारी शुरू हुई सत्यमेव जयते की. अब तक तीन कड़ियाँ प्रसारित हो गई हैं. स्टार टीवी की टीआरपी नई ऊंचाई पर है. बाध्य होकर दूरदर्शन को भी इस दौड़ में शामिल होना पड़ा. आकाशवाणी पर भी यह कार्यक्रम प्रसारित हो रहा है. और समूचा देश एक गिरफ्त में सा लगता है. मेरा दुर्भाग्य कहिये या सौभाग्य, केवल कड़ी ही देख पाया हूं, जिसमे दवाई और डाक्टर के बीच के नेक्सस को दिखाने की कोशिश की गई है. इस कड़ी को बहुत ध्यान से देखा. इस कार्यक्रम को देखने के बाद जब उठा तो कुछ सवाल मैंने स्वयं से पूछे... इस में कौन सी ऐसी बात आमिर खान ने की जो आम आदमी को नहीं पता है. एक-एक बच्चा जानता है कि डाक्टर साहब कमीशन लेकर दवाई लिखते हैं. सरकारी अस्पतालों के खस्ता हाल पर रोज़ ही अखबारों में ख़बरें रहती हैं. दवाई के बिना दम तोड़ देने की कहानी रोज़ ही आपको मिल जाएगी . फिर नया क्या था ! नया यह है कि इसे आमिर खान कह रहे हैं.
दिल्ली के गुरु तेगबहादुर अस्पताल में जन औषधि स्टोर का उद्घाटन करते हुए श्री रामविलास पासवान |
पिछली कड़ी को देखने के बाद कहना चाहूँगा कि आमिर खान की टीम का शोध सतही होने के साथ साथ अधूरा है. जेनरिक दवाई की जो मुहिम राजस्थान में शुरू हुई थी, उसे देश भर में फ़ैलाने का काम तत्कालीन रसायन एवं उर्वरक मंत्री राम विलास पासवान ने शुरू किया था. रामविलास पासवान नई औषध नीति लाना चाह रहे थे किन्तु २००५ से २०१० तक जब वे मंत्री रहे कई बार कोशिश की लेकिन मंत्रिमंडल ने उसे लौटा दिया और यह नीति संसद तक नहीं पहुच सकी. कारण... दवाई बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों का दवाब. छोटे दवाई निर्माता और बड़े दवाई निर्माता को एक मंच पर लाने और दवाइयों का वाजिब दाम रखने की अनूठी पहल श्री पासवान जी ने औषध सलाहकार मंच का गठन करके किया था और उस मंच पर मैंने देखा है कि किस तरह बड़े दवाई निर्माता विद्रोह पर उतर आते थे और उनके प्रतिनिधि बैठक छोड़ कर चले जाते थे. मंत्री रहते हुए भी रामविलास पासवान की मज़बूरी हमने पांच सालों तक देखी. किसी मीडिया को तब फुर्सत नहीं थी कि इसे रिपोर्ट करे.
हैदराबाद के ओ.एम.जी. अस्पताल में जन औषधि स्टोर |
देश में किसी भी उत्पाद का मूल्य निर्धारित करने के लिए कभी कोई नीति नहीं बनी है. तभी तो १ रूपये की लगत वाली वस्तु १०० रूपये तक में बिकती है. कहीं कोई रोक नहीं है. लेकिन जीवन रक्षक दवाइयों के लिए एक मूल्य निर्धारण नीति बनी थी. रामविलास पासवान ने कोशिश की थी कि दवाइयों के मूल्य निर्धारण के लिए जिम्मेदार संस्था नेशनल फार्मास्युटिकल प्रयिसिंग अथोरिटी (एनपीपीए) के दांत तेज़ किये जाएँ लेकिन वे असफल ही रहे. सत्यमेव जयते में भारतीय प्रशाशनिक अधिकारी श्री सुमित की बड़ी भूमिका रही है लेकिन उस से बड़ी भूमिका थी आरडीपीएल यानी राजस्थान ड्रग्स एंड फार्मास्युटिकल की. साथ ही कर्णाटक ड्रग एंड फार्मास्युटिकल लिमिटेड (केडीपीएल) की भी बड़ी भूमिका है जेनरिक दवाओं के उत्पादन में. जेनरिक औषधियों में इन कंपनियों ने कमाल कर दिखाया है और ये देश की पहली लोक उपक्रम हैं जो सस्ती दवाइयां बना कर भी लगातार लाभ अर्जित कर रही हैं .
भटिंडा के सरकारी अस्पताल में जन औषधि स्टोर |
जेनरिक दवाइयों को आमजन तक पहुचने की दिशा में रामविलास पासवान के पहल पर जन औषधि स्टोर खोले जाने शुरू ही ही हुए थी कि लोक सभा चुनाव आ गए. फिर भी अभी देश में लगभग १०० ऐसे स्टोर सरकारी अस्पतालों के आहते में खुले हैं जो ब्रांडेड दवाइयों के स्थान पर सस्ते जेनरिक दवाइयां देते हैं. दिल्ली के गुरु तेगबहादुर अस्पताल में एक स्टोर सफलतापूर्वक चल रहा है. उनकी योजना देश से सभी सरकारी अस्पतालों और जिला मुख्यालय में ऐसे स्टोर खोलने की ताकि लोगों को महँगी दवाइयों से थोड़ी रहत मिले. लेकिन देश का दुर्भाग्य कहिये कि ऐसा हो न सका. वर्तमान मंत्री इस प्रोजेक्ट में रूचि नहीं ले रहे क्योंकि शायद इसमें कोई कमीशन या कट नहीं है. जन औषधि स्टोर के जिक्र के बिना आमिर खान का यह एपिसोड अधूरा ही कहा जायेगा.
सत्यमेव जयते में बहुत सी बाते कहीं गई लेकिन एक बड़ी बात रह गई वो है.. दवाइयों के रैपर पर हिंदी में दवाओं का नाम और दाम का जिक्र होना. पहली बार जब यह प्रस्ताव दावा कंपनियों के सामने लाया गया तो दवाई माफिया इस बात का पुरजोर विरोध कर रहे थी किन्तु जनहित के आगे उन्हें झुकना ही पड़ा और आज आप पायेंगे कि दवाइयों के रैपर पर हिंदी और अंग्रेजी में दवाओं के नाम मुद्रित हैं. इस से आम आदमी को बहुत लाभ पंहुचा है. कम से कम वह दवाइयों का नाम पढ़ तो सकता है. संयोग की बात है कि यह काम भी रामविलास पासवान के पहल पर ही शुरू हुआ था.
इनसे प्रतीत होता है विषय पर गहन शोध न करके इसे बाज़ार के लिहाज़ से तैयार किया जाता है, ताकि जनभावना को तालियों और टीआरपी में बदला जा सके.
Ek samarth aalekh1
जवाब देंहटाएंbhaut khub kya baat hai
जवाब देंहटाएंकुछ भी परफेक्ट नहीं हो सकता. कमियां हर चीज़ में हो सकती हैं और निकाली जा सकती हैं. बेशक अधूरा हो शोध, और बेशक आमिर कह रहे हों वही जो सब जानते हैं. पर सास बहु के अनरिआलिस्टिक कार्यक्रमों से इतर कुछ तो रियालिस्टिक आ रहा है. अगर सास बहु वाले ड्रामो को देखकर साडियों का फेशन आ सकता है तो शायद इसी बाजारवाद के चलते कुछ सुधार हो जाएँ. उम्मीद पर दुनिया कायम है.
जवाब देंहटाएंसार्थक लेख आपका.
शिखा जी की बात से पूरी तरह सहमत हूं. क्यों हम हर बार कुछ भी नया करने वाले से इतनी अधिक अपेक्षाएं रख लेते हैं कि जिन्हें पूरा कर पाना संभव ही न हो. आमिर का यह कार्यक्रम भले ही शोध के पैमाने पर खरा न उतरता हो पर जो संदेश यह देना चाहता है उसमें सौ फीसदी खरा उतर रहा है. फिर आमिर टीवी पर कोई शोध करने थोड़े ही उतरे हैं. ये बाजार है.....और बाजार के बीच रहकर भी अगर जनसरोकार से जुड़े कार्यक्रम बन रहे हैं तो बहुत सुखद बात है. और रही बात पैसा कमाने की तो वह तो टीवी कार्यक्रम बनाने वाले का पहला उद्देश्य है. दूसरे सास बहू की जूतमपॅजार और बिग बॉस की नंगई के बीच कुछ तो अच्छा है.
जवाब देंहटाएंएकदम ठीक बात ... कुछ लोग स्वयं भले कुछ भी न करें लेकिन दूसरों के किए का छिद्रान्वेषण ज़रूर करते हैं
हटाएंshikha jee .main apki bat se bilkul sahamat hoon. hamare desh men yah badi pareshani hai koi yadi uchit disha men kadam uthata hai to uski tang kheenchne se baj nahi ate log kamiya dhoondh lene ki hamari adat ban gayi hai.
हटाएंVery nice post.....
जवाब देंहटाएंAabhar!
Mere blog pr padhare.
भारत एक नौटंकी पसंद देश रहा है ,यहाँ गंभीर विषयों को भावुकता ,नाटकीयता तथा हास्य के सतही मिश्रण के साथ दिखाया जाए तो आम लोगो को समझ में आता है।सामाजिक विषयो पर विमल रॉय,गुरु दत्त, सत्यजित रॉय तथा श्याम बेनेगल ने कितनी शानदार फिल्मे बनाई है, पर राज कपूर की सतही फिल्मे ज्यादा लोकप्रिय रही है।
जवाब देंहटाएंविचारणीय आलेख्।
जवाब देंहटाएंAPKI BAT SAHI HAI PASWAN JI KI KOSHISH SAHI THI PAR DRUG LOBI KE AGE SAPHAL NAHI HO SAKI . KYA AISA NAHI HO SAKTA KI LOG KAMISHAN KE SATH BHI KUCH AM ADAMI KE BHALE KE BARE ME SOCHEN
जवाब देंहटाएंश्री अरूण चंद्र रॉय जी,
जवाब देंहटाएंआपका पूरा पोस्ट पढ़ा । आपने सारी वस्तु- स्थिति से परिचय भी करवा दिया , लेकिन इस संबंध में, मैं अपनी ओर से यही कहना चाहूंगा कि वैशाखियों पर चलती सरकार के समक्ष जनहित की अपेक्षा पार्टी हित पर ज्यादा ध्यान दिया जाता रहा है एवं जाता रहेगा । दवाईयों के रैपर पर हिंदी और अंग्रेजी भाषा में नाम लिखने से ही काम शेष नही होता है । हिंदी के या अन्य किसी मुद्दे पर माननीय प्रधानमंत्री जी को संसद में अंग्रेजी में भाषण देता देख कर हिंदी प्रेमियों के मन क्या विचलित नही होते हैं! क्या इसे संवैधानिक - दायित्व का उल्लंघन नही माना जाएगा! क्या सरकार ऐसा कोई नियम बना पाएगी जिस दिन हर दवाई की दुकान पर एक नोटिस बोर्ड लगा होगा कि इस दुकान में असली जेनरिक दवाईयां सस्ते दर पर मिलती हैं। इस स्थिति में पासवान जी का क्या दोष है! 'सत्यमेव जयते" कार्यक्रम किसी निदेशक के अंतर्गत ही संचालित होता है एवं यह कार्यक्रम सरकार की नीति निर्धारण का संवाहक तो नही बन सकता है। इस संवेदनशील प्रस्तुति के लिए मेरी ओर से आपको हार्दिक बधाई । मेरे पोस्ट पर भी यदा - कदा आकर मुझे भी अपनी प्रतिक्रियाओं से अवगत कराते रहें ताकि एक सहज आत्मीयता की अनुभूति से मन सर्वदा ऊर्जावान बना रहे । धन्यवाद ।
पासवान का प्रयास अच्छा था। पर वे तो एक नौकर मात्र थे। देश की असली मालिक जनता द्वारा चुनी हुई सरकार नहीं बल्कि पूंजीपति हैं जिन के कारखाने हैं और जिन में दवाइयाँ बनती हैं। कैसे एक पासवान उन के मुनाफे पर हाथ डाल सकता था। सरकार न उलट दी जाती।
जवाब देंहटाएंइतना ही कि लेख बढिया रहा... पासवान का काम अच्छा लगा...
जवाब देंहटाएंआमिर हों या कोई फैनबाज लोग हमेशा काल्पनिकता में जीते- सोचते से लगते हैं... उनसे कुछ नहीं कहना फिलहाल...
Very nice post.....
जवाब देंहटाएंAabhar!
Mere blog pr padhare.
very good analysis.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक समालोचना जानकारी बिखेरती राम विलास पासवान के एक अच्छे कदम से वाकिफ करवाती हुई .आभार .बधाई ..
जवाब देंहटाएंकृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
बुधवार, 30 मई 2012
HIV-AIDS का इलाज़ नहीं शादी कर लो कमसिन से
http://veerubhai1947.blogspot.in/
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
कब खिलेंगे फूल कैसे जान लेते हैं पादप ?
विचारणीय आलेख् आभार !
जवाब देंहटाएंक्या लिखें...पर्दे पर आमिर का हर किसी की पूर्व प्रायोजित कहानी सुनकर आंसू पौंछते देख कर ...सब कुछ एक नाटक/ नौटन्की सा लगता है .... क्या आमिर को इस उम्र में आकर यह सब पता चला है ...नौ सौ चूहे खाय बिलाई हज़ को चली ..बाली बात है....
जवाब देंहटाएं--- जो लोग इसे बडी बात मान रहे हैं वे तो सब चलो दूसरे ने किया हम तो बच गये फ़ालतू का काम करने से कहकर सान्स लेने वाले हैं....
Nice post , Nice comments.
जवाब देंहटाएंकमियां हर चीज़ में होती हैं. कुछ भी परफेक्ट नहीं हो सकता. पर सास बहु के अनरिआलिस्टिक कार्यक्रमों से इतर कुछ तो रियालिस्टिक आ रहा है.
भारत एक नौटंकी पसंद देश रहा है . फैन लोग हमेशा काल्पनिकता में जीते हैं. कैसे एक पासवान पूंजीपति के मुनाफे पर हाथ डाल सकता था ?
सरकार न उलट दी जाती ?
आमिर का यह कार्यक्रम भले ही शोध के पैमाने पर खरा न उतरता हो पर जो संदेश यह देना चाहता है उसमें सौ फीसदी खरा उतर रहा है.
आपने सारी वस्तु- स्थिति से परिचय भी करवा दिया ,
Aabhar!
Nice post , Nice comments.
जवाब देंहटाएंकमियां हर चीज़ में होती हैं. कुछ भी परफेक्ट नहीं हो सकता. पर सास बहु के अनरिआलिस्टिक कार्यक्रमों से इतर कुछ तो रियालिस्टिक आ रहा है.
भारत एक नौटंकी पसंद देश रहा है . फैन लोग हमेशा काल्पनिकता में जीते हैं. कैसे एक पासवान पूंजीपति के मुनाफे पर हाथ डाल सकता था ?
सरकार न उलट दी जाती ?
आमिर का यह कार्यक्रम भले ही शोध के पैमाने पर खरा न उतरता हो पर जो संदेश यह देना चाहता है उसमें सौ फीसदी खरा उतर रहा है.
आपने सारी वस्तु-स्थिति से परिचय भी करवा दिया ,
Aabhar!
आपने सटीक शोधात्मक विश्लेषण किया है परिस्थिति का...
जवाब देंहटाएं“मार्केटिज़्म” और “सेन्सेस्नालिज़्म” दोनों जबर्दस्त रास्ते हैं अपनी साख ऊपर उठाने के वास्ते... और सारा देश इसी में रत है कि कैसे सनसनी फैला कर मार्केट वेल्यू बढ़ाई जाये....
सार्थक आलेख हेतु सादर बधाई स्वीकारें।