मंगलवार, 11 अक्टूबर 2011

जगजीत सिंह हैं अभी यहीं कहीं

जगजीत सिंह हैं अभी यहीं कहीं


arunpicअरुण चन्द्र रॉय

संगीत से प्रेम नहीं है मुझे. गुनगुना भी नहीं सकता. कोई गीत भी याद नहीं है. मुखड़ा भी नहीं. बस रेडिओ उपलब्ध था और उसी पर अक्सर एक आवाज़ को सुना करता था जिससे कई दिनों तक जेहन में उथल पुथल मचा रहता था. नाम नहीं पता था उस गायक का. फिर १९९९ में दिल्ली आ गया और एक विज्ञापन एजेंसी में ट्रेनी कापीराइटर के तौर पर काम करने लगा. नौकरी की पहली दिवाली. बोनस मिला कुल सत्ताईस सौ रूपये. शायद इतने रूपये एक साथ हमने नहीं देखे थे. सत्रह सौ मासिक था उस समय. लक्ष्मी नगर के नवरंग ऑडियो वीडियो से नेशनल पैनासोनिक का एक टू इन वन ले लिया. साथ में लिए कुछ कैसेट्स जिसमे ज़ाकिर हुसैन के फ्यूज़न म्युज़िक के पांच कैसेट थे... अर्थ, स्काई, वाटर, फायर और एयर. और एक कैसेट था.. सम वन सम व्हेयर .... ना जाने इस कैसेट को कितनी बार सुना. रोया.... महसूस किया... खो गया  ..... और   आज तक की यह मेरी सबसे अच्छी कमाई रही. घर पहुच कर सबसे पहले अपनी माँ और फिर अपने कंपनी के मालिक श्री अग्रवाल जी को बताया कि मैंने आपके द्वारा दिए गए बोनस के पैसे से टू इन वन और जगजीत सिंह जी के कैसेट खरीद लिए हैं. बाद में कंपनी ने मुझे उसकी प्रतिपूर्ति कर दी थी.... अभी जब अप्रैल में एल ई ड़ी टीवी उसी नवरंग ऑडियो विडियो से लेकर आया तो सबसे अधिक याद आया था मेरा पहला टू इन वन और जगजीत सिंह.

उसी दिसंबर यानी १९९९ में टाटा येल्लो पेजेज़ ने जगजीत सिंह जी का शो किया था ताज दिल्ली में. मेरी कंपनी में दो पास आये थे. जाना श्री अग्रवाल जी और मेरे वरिष्ट सहयोगी श्री लवलेश जी को था. लेकिन मैंने अग्रवाल सर से कहा कि आज तक मैंने जगजीत सिंह जी की केवल आवाज़ सुनी है और उन्हें देखना चाहता हूं. उन्होंने मुझे जाने की अनुमति दे दी. अपनी टेबल का काम निपटाते निपटाते देर हो गई और जब तक ताज पहुचता हाल भर चुका था. मुझे स्टेज के बिल्कुल नीचे बैठने की जगह मिली. और तीन घंटे तक उन्हें बस अपलक देखता रहा मात्र दस फिट की दूरी रही होगी.  क्या सुना बस कहीं धरोहर की तरह सहेजा है किसी संदूक में. किसी तपस्वी की तरह लीन उनका चेहरा आज भी ताज़ा है मानसपटल पर  मानो कल की बात हो.

samvednaफिर जब माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जी प्रधानमंत्री थे और जगजीत सिंह जी ने उनकी कविताओं को 'संवेदना' एल्बम में स्वर दिया था, उस कार्यक्रम के स्टेज का बैकड्राप तैयार करने में मेरी भूमिका थी और उस कार्यक्रम में फिर से जगजीत सिंह जी को और भी करीब से देखने का मौका मिला था. अपने मित्र सुरेश अमीन जिन्होंने उन्हें पहली बार किसी फिल्म में गाने का मौका दिया (गुजराती फिल्म : धरती ना छोडू ) की स्मृति में गाया उनका गीत उन्ही को समर्पित.

" चिट्ठी  ना  कोई  सन्देश…

जाने  वो कौन  सा  देश जहा  तुम  चले गए
इस दिल पे लगा के ठेस जाने वो कौन सा देश
जहा तुम चले गए....”

जब तक मेरा वह पहला टू इन वन है... या दुनिया में दूसरा कोई संगीत यन्त्र है... जगजीत सिंह यहीं कहीं हैं आसपास.... सम वन सम व्हेयर..... हम सब के दिलों में .

15 टिप्‍पणियां:

  1. आपके इस लेख में बहुत गहरी संवेदना प्रकट हुई है ...आपकी यादों की ..लेकिन भाई नियति यही है क्या किया जा सकता है ? .....मेरे लिए भी दुखद .....पिछले 7 सालों से अनवरत जगजीत सिंह जी को सुनता आ रहा हूँ कोई दिन शायद ऐसा जाता हो जब मैंने जगजीत सिंह को नहीं सुना हो दिन में 4-5 घंटे उन्हें सुनना .....हर एक शब्द पर सोचना .....लेकिन अब आवाज तो हमारे बीचे में रहेगी लेकिन एक खालीपन ..बस खालीपन .....!

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  2. अपने अपने पास जगजीत की यादें हैं…अल-अलग टुकड़ों में…

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  3. मेरा गीत अमर कर दो..............।
    जगजीत सिंह तो सिर्फ पर्दा किए हैं । वे हमेशा हम लोगों के पास ही रहेंगे।
    गजल सम्राट को विनम्र श्रद्धांजलि ।

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  4. आप ने स्व.जगजीत सिंहजी को भावभीनी श्रद्धांजली दी है!...एक एक शब्द से संवेदना प्रकट हो रही है!...हम भी आप के साथ है...

    ..इस महान गजल सम्राट के प्रति विनम्र श्रद्धांजली!

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  5. ग़ज़ल सम्राट को विनम्र श्रद्धांजलि .

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  6. हम सबकी यादों में हैं जगजीत.

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  7. क्या कहूँ .... इस विषय में मैंने भी कुछ लिखा है।
    समय मिले तो कभी आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com

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  8. हमारे परिवार में किसी अपने खोये जाने का सा माहौल है!! परमात्मा चित्रा जी को यह दुःख सहने की शक्ति प्रदान करे!!

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  9. संगीत से मेरा छत्तीस का आँकड़ा है। पर स्व.जगजीत सिंह जी का गायन सुनते ही मैं चलते हुए एकबार ठहर गया था। वह गीत तो याद नहीं। ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दे और उनके शोकाकुल परिवार को दुख सहन करने की शक्ति।

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  10. ग़ज़ल को लिखकर जो ऊंचाई ग़ालिब ने दी,वही गाकर जगजीत ने। उनकी आवाज़ में जो शोक था,अफ़सोस कि वह जीवन में भी उतर आया। वह तो संगीत का ब्लिसफुलनेस था जो उन्हें यहां तक खींच लाया। अन्यथा,बाप के कंधे पर बेटे की लाश का बोझ क्या होता है,जिस पर बीतती है,वही जानता है।

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  11. एक भावुक कर देने वाली पोस्ट है अरुण भाई।
    विनम्र श्रद्धांजलि।

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  12. जगजीत सिंह अपनी आवाज़ के जादू से हमेशा यहीं कहीं रहेंगे ...

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  13. हां सचमुच. वे हमारे पास हैं, और हमेशा रहेंगे.

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  14. एक दिलकश आवाज़ का यूं खोना बहुत हृदय-विदारक घटना है...बहुत ही भावपूर्ण पोस्ट...

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