बुधवार, 26 अक्टूबर 2011

हिन्दी के पाणिनि - आचार्य किशोरीदास बाजपेई

अंक-6

हिन्दी के पाणिनि - आचार्य किशोरीदास बाजपे

आचार्य परशुराम राय

पिछले अंक में हमने देखा कि किस प्रकार आचार्य ने किस प्रकार नागा साधुओं के विरूद्ध आन्दोलन शुरू किया और बाद में किन परिस्थितियों में उन्हें उसे वापस लेना पड़ा। मेला निर्विघ्न समाप्त हो गया।

उन दिनों हरिद्वार म्यूनिसिपलिटी बोर्ड के चेयरमैन सरकारी अधिकारी होते थे। लेकिन तत्कालीन कांग्रेसी मंत्रिमंडल ने निर्णय लिया कि इस बोर्ड का चेयरमैन गैर सरकारी हो और हरिद्वार के तीर्थ पुरोहित सरदार पं0 राम रक्खा शर्मा बोर्ड के चेयरमैन निर्वाचित हुए। शर्मा जी ने घूसखोरी आदि बुराइयों को हटाने के लिए पदभार ग्रहण करते ही एक परिपत्र छपवाकर वितरित करवा दिया।

आचार्य जी ने भी देखा कि इन बुराइयों को दूर करने का यह अच्छा अवसर है। अतएव इन्होंने एक छोटे से स्थानीय साप्ताहिक पत्र क्रांति का प्रकाशन शुरू किया। ये स्वयं बोर्ड के हाईस्कूल के अध्यापक थे, अतएव सम्पादक पं0 कल्याणदत्त शर्मा को बनाकर सारा काम स्वयं किया करते थे। क्रांति से घूसखोर अधिकारियों और सदस्यों में तिलमिलाहट शुरू हो गयी। चेयरमैन साहब ने आचार्य जी को बुलाकर समझाया, तब तक बहुत कुछ हो चुका था। इसके परिणामस्वरूप आचार्य जी को अवज्ञा के आरोप में अपनी नौकरी गँवानी पड़ी। अपने निष्कासन के विरुद्ध इन्होंने अपील की, जो नियमानुसार अग्रसारित कर दी गई।

इसी संदर्भ में आचार्य जी स्वायत्तशासन की तत्कालीन मंत्री सुश्री विजयलक्ष्मी पंडित से मिले। दोनों के बीच हुई बातचीत को आचार्य जी की भाषा में उनके ग्रंथ साहित्यिक जीवन के अनुभव और संस्मरण से साभार यहाँ यथावत दिया जा रहा है -

''कहिए, क्या बात है?''

''मैं हरिद्वार म्यूनि. बोर्ड के हाई स्कूल में अध्यापक था। बोर्ड में साधुओं का तथा तीर्थ पुरोहितों का जोर है। मैंने कुछ समाज-सुधार के काम नहीं किए; इससे वे लोग नाराज हो गए और मुझे नौकरी से अलग कर दिया।''

-- ''तो आप समाज-सुधार के काम करते हैं, या बच्चों को पढ़ाते हैं?''

''बच्चों को तो पढ़ाता ही हूँ और इस काम में 99% सफलता परीक्षा-परिणाम बता देते हैं; पर अपने बचे हुए समय का उपयोग टयूशन आदि में न करके कुछ समाज सुधार के कामों में लगाता हूँ।''

''आप समाज-सुधार के काम करते ही क्यों हैं? किस ने कहा है?''

''आप ही लोग वैसा कहते हैं कि अध्यापकों को समाज सुधार के कामों में मदद करनी चाहिए।

'' मैंने कब वैसा कहा है?''

''आप ने तो नहीं, पर पं. जवाहर लाल नेहरू ने तो सैकड़ों बार वैसा कहा है।''

'' तो फिर उन्हीं के पास जाइए।''

'' उनके ही पास पहुँचता, यदि वे प्रान्त के स्वायत्त-शासन-मंत्री होते।''

'' अच्छा, तो कहिए, क्या काम आपने समाज-सुधार के किए?''

'' हरिजन-अभ्युत्थान आदि के काम करता रहता हूँ और सबसे बड़ा काम पिछले हरिद्वार-कुम्भ मेले पर नागा साधुओं के बारे में आन्दोलन किया वे एकदम दिगम्बर होकर निकला करें, कम-से-कम एक लंगोटी तो जरूर लगाए रहा करें।''

'' ऐसा आपने क्या समझ कर किया?''

''यह समझ कर कि हमारी नागरिक व्यवस्था के विपरीत वैसा प्रदर्शन पड़ता है और लोग उसे अच्छा नहीं समझते हैं।''

''आप ने यह कैसे समझा कि नागा साधुओं के उस प्रदर्शन को लोग अच्छा नहीं समझते?''

आचार्य जी लिखते हैं कि पं.नेहरू की बहिन के मुख से इस तरह की बातें सुनकर मैं जल-भुन गया और आँखें नीची कर अत्यन्त गम्भीरता से निवेदन किया -

'' मैंने पुरुष-वर्ग के तो सहस्त्रों व्यक्तियों से चर्चा की, सबने इससे असन्तोष प्रकट किया। टण्डन जी ने तथा नेहरू जी ने भी वैसा ही कहा; परन्तु मैंने स्त्रियों से नहीं पूछा कि वे उसे कैसा समझती हैं! हाँ, मेरी स्त्री तो वैसे प्रदर्शन को ठीक नहीं समझती है।''

यह सुनते ही श्रीमती पण्डित का गौरवपूर्ण बदन क्रोध से एकदम लाल हो गया और बोलीं-

'' आपसे मेरी कतई सहानुभूति नहीं है और आपको हर्गिज बहाल न किया जाएगा।''

इसके बाद आचार्य जी नमस्ते बोलकर चल दिए और सीधे राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन के घर पहुँचे, उनसे पूरी बातें बताईँ। टंडन जी उन दिनों अस्वस्थ थे और जलवायु परिवर्तन कर पुरी से लौटे थे। फिर भी उन्होंने अपने सेक्रेटरी से पार्लियामेन्टरी सचिव श्री खेर को तुरन्त फोन लगाने के लिए कहा। फोन पर अन्य बातें करने के बाद उन्होंने पूछा कि आचार्य किशोरीदास वाजपेयी का कोई केस आया है। उन्होंने आचार्य जी और मंत्री महोदया के बीच हुई सारी बातों का ब्यौरा दिया और बताया कि चेयरमैन, कमिश्नर और गवर्नमेंट सेक्रेटरी ने भी बुरा ही लिखा है। टंडन जी ने उनसे कहा कि हो सकता है विजयलक्ष्मी जी ने यह सब हँसी में कहा हो और वाजपेयी जी संस्कृत के पंडित होने के कारण समझ न सके हों। अतएव इस मामले की विधिवत जाँच की जाए, क्योंकि यह राष्ट्रीयता का सवाल है। इतनी बात करके टंडन जी ने आचार्य वाजपेयी से कहा कि वे इधर-उधर न भटकें और सीधे हरिद्वार चले जाएँ।

आचार्य जी जबतक हरिद्वार पहुँचे तबतक हाई कमान का आदेश आ गया कि आवश्यक काम निपटाकर कांग्रेसी मंत्रिमंडलों को अपने त्यागपत्र सौंप दें। जरूरी कामों में आचार्य जी के केस का भी निपटारा हुआ और निर्णय उनके पक्ष में गया। परिणामस्वरूप उन्होंने फिर अपना कार्यभार सँभाला। साथ ही उन्हे दस महीने का वेतन भी मिला। क्योंकि अपील का निपटारा होते-होते दस महीने लग गये थे।

अब आचार्य जी को काफी धन मिल गया था। अतएव उन्होंने नीलामी में एक छोटा प्रेस खरीदा। इसमें उन्हें डेढ़ सौ रुपये ऋण भी लेने पड़े। प्रेस की मालकिन अपनी पत्नी को बनाया। हालाँकि प्रेस चलाने के अनुभव के अभाव में आचार्य जी उसे बहुत दिनों तक अपने पास न रख सके। प्रेस के कामों की जानकारी का अभाव, कर्मचारियों एवं काम की देखरेख न होने से घाटे तथा अंग्रेजी सरकार से तंग आकर उन्होंने उसे बेच दिया। वे लिखते हैं कि अनुभव न हो तो प्रेस प्रेत बनकर खाने लगता है। इसमें इनके मैनेजर पं. कल्याणदत्त शर्मा ने इन्हें धोखा दिया। इसी बीच आचार्य जी को नौकरी से फिर हाथ धोना पड़ा। प्रेस बेचने से जो कुछ मिला उसी से दाल-रोटी चलती रही।

इस बीच आचार्य जी ने अपने प्रेस में अपनी दो पुस्तकें - द्वापर की क्रांति (नाटक) और लेखन-कला छापीं। वैसे द्वापर की क्रांति गंगा पुस्तक माला से सुदामा नाम से पहले ही छप चुकी थी। जिसके विषय में डॉ. माताप्रसाद गुप्त ने पुस्तक-साहित्य नामक विवरण में लिखा कि द्वारकावासी कृष्ण को लेकर केवल एक कलात्मक रचना इस काल में मिलती है, वह है पं. किशोरीदास वाजपेयी कृत सुदामालेखन-कला हिन्दी परिष्कार पर लिखी पहली पुस्तक है, जिससे प्रेरित होकर डॉ. रामचन्द्र वर्मा ने अच्छी हिन्दी नामक प्रसिद्ध पुस्तक लिखी। आचार्य जी ने पुनः अपनी पुस्तक लेखन-कला में संशोधन कर अच्छी हिन्दी का नमूना लिखी।

इस अंक में बस इतना ही।

सभी पाठकों और टीम के सभी सदस्यों को दीपावली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ।

12 टिप्‍पणियां:

  1. दीपावली की ढेरों शुभकामनाएं.

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  2. आपके द्वारा प्रस्तुत हर जानकारी ज्ञानार्जन की संभावनाओं के कपाट को स्वत: ही खोल देती है । दीपावली की शुभकामनाएं । धन्यवाद ।

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  3. सब को शुभकामना,
    सुख से हो सामना,
    झिलमिल झिलमिल झिलमिल,
    खुशियां छलके अपार।दिवाली के रंग खुशियों के संग मुबारक झिलमिल दीप ,उजास ,आस ,लक्ष्मी का प्रवास .
    बहुत ही विरल और उल्लेख्य प्रस्तुति .दिवाली की अप्रतिम भेंट सी .आको भी दिवाली मुबारक आपके सभी अपनों को भी .

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  4. बहुत अच्छी जानकारी देती हुई अच्छी पोस्ट ...

    दीपावली की शुभकामनायें

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  5. आपकी इस श्रृंखला से आचार्य किशोरी दास वाजपेयी जी के जीवन के संबंध में बहुत अच्छी जानकारियां मिल रहीं हैं...

    आपको सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं ...

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  6. आचार्य जी!
    इस श्रृंखला के माध्यम से आपने आचार्य किशोरीदास के जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डाला है.., और वे सारी घटनाएँ प्रेरक हैं!!
    आभार आपका!!

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  7. आचार्य किशोरी दास वाजपेयी जी को कहीं भी देखता हूँ, एक संतोष सा मिलता है।

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  8. सभी मित्रों को दीपावली के पावन पावन पर्व पर सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य की ढेरों शुभकामनाएँ।

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  9. आपकी पोस्ट में आना सार्थक रहा...जानकारी के लिए बधाई..सुंदर प्रस्तुती ....

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    * आप सबको दीवाली की रामराम !*
    *~* भाईदूज की बधाई और मंगलकामनाएं !*~*

    - राजेन्द्र स्वर्णकार
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