सोमवार, 3 अक्टूबर 2011

झंझावात ..



दूर तक नज़र
ढूढ़ती है कि
कोई नेह का बादल
अपना छोटा सा टुकड़ा
कहीं छोड़ गया हो
और वो बरस कर
मुझे भिगो दे .

पर-
मंद समीर भी
उड़ा ले जाता है
हर टुकड़े को
अपने साथ .

और आ जाता है
मेरी ज़िंदगी में
कुछ ऐसा झंझावात
कि भीगने को
तरसते मन को
जैसे रेतीली हवाओं ने
घेर लिया हो
चारों ओर से .

संगीता स्वरुप

18 टिप्‍पणियां:

  1. संगीता जी, नमस्कार,,
    आपकी कविता का यह रूप,शैली एवं गहन भावों का समावेशन किसी भी प्रेमी हदय को सोचने के लिए मजबूर कर देगा । जिंदगी में हमें हर समय कुछ पा लेन की आश बधी रहती है क्योंकि हम उसे पाने के लिए अपने मन में नकारात्मक भाव का सृजन नही होने देते पर न जाने विधाता की क्या खासियत है कि हमारे मन के अंदर रचे-बसे आश को पूरा नही होने देता है । हर इंसान को अपनी जिंदगी में जो चाहे वही मिल जाता तो दुख किस बात का रहता । आपके सुंदर जजबातों के साथ मेरी पूरी सहानुभूति है । बहुत सुंदर लगा । धन्यवाद ।

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  2. नेह का यह बदली, नेह की उष्‍मता से ही पास आती है और बरबस बरस जाती है। अच्‍छी कल्‍पना है।

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  3. जिस को तरसते रहे उम्र भर
    नेह का वो मरहम ना मिला एक पल

    कितनी खूबसूरती से दर्द को उकेरा है……………शानदार्।

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  4. संगीता दी,बहुत ही अच्छी है ये प्रस्तुति.हर कोई इस नेह के बदली को तरस रहा है आज

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  5. पानी बीच मीन पियासी जैसा ही भाव है कविता में ...
    सुन्दर भावाभिव्यक्ति!

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  6. बहुत सुन्दर भावभूमि पर रचना रची है संगीता जी ! कुछ वैसे ही दर्द का आभास होता है जब आँख मूँद आप शीतल जल वृष्टि की कामना कर रही हों और उसके स्थान पर धधकती लपटें आपके जिस्म को घेर लें ! मन पर दहकते अंगार की अनुभूति करा गयी आपकी यह रचना ! बहुत सुन्दर !

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  7. बेहतरीन और खुबसूरत अभिव्यक्ति ..

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  8. क्या कहूँ...ये रेतीली हवाएं..

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  9. jis tarah baadal ke srijan k liye sagar ko bhi apna jal dena padta hai....dhoop me tapna padta hai...usi tarah aapka tarasta man retili hawao dwara vaashpit jab ho hi chuka hai to bas vo samay b aa hi gaya hai ki koi baadal avashy barsega.

    gahre dard ko samaitTi samvedansheel rachna.

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  10. कविता अच्छे भाव को अभिव्क्त करती है। साधुवाद।

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  11. गहन भावों को लिए हमेशा कि तरह खूबसूरत प्रस्तुति... न जाने क्यूँ आपकी इस रचना को पढ़कर यह गीत याद आया कि "नाम गुम जाएगा चारा यह बादल जाएगा मेरी आवाज ही पहचान है अगर याद रहे" ... :)शायद उस स्नेह के बादल को बननाने के बाद समंदर भी यही गाता हो ...
    जिसमें भीगने का मन हरकिसी का होता है
    समय मिले तो कभी आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  12. कमाल का कॉन्ट्रास्ट दिखाया है आपने संगीता दी!! आपकी विशिष्ट शैली का आईना है यह कविता!!

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  13. समय के आगे सब कोई लाचार हो जाता है। कविता के भाव मन को भाए।

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  14. दूर तक नज़र
    ढूढ़ती है कि
    कोई नेह का बादल
    अपना छोटा सा टुकड़ा
    कहीं छोड़ गया हो
    और वो बरस कर
    मुझे भिगो दे .

    मैं तो यही कहूँगा कि -
    इस ग़म का क्या करें, तनहाई किससे बाँटें?,
    जो भी मिली है वह रुसवाई, दर्द किससे बाँटे?.
    तेरी मेरी ज़मीं तो अब बँट गई है- हिस्सों में
    इस दर्द की विरासत, मेरे भाई! किससे बाँटें?

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  15. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

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  16. और वह आस भी टूट जाती है .....मर्मस्पर्शी !

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