प्रेरक प्रसंग-27
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अपने मन को मना लिया
प्रस्तुतकर्ता : मनोज कुमार
बात फिनिक्स आश्रम की है। एक दिन सवेरे के भोजन के बाद क़रीब ग्यारह बजे रावजी भाई मणिभाई पटेल और गांधी जी खाने के टेबुल पर बैठे थे। जब सब खा लेते थे तब गांधी जी अपना खाना शुरू करते थे। गांधी जी भोजन कर रहे थे और उनके पास उनके परिवार के एक बुजुर्ग कालिदास गांधी बैठे थे। बा खड़ी-खड़ी रसोई घर में सफ़ाई का काम कर रही थीं। दक्षिण अफ़्रीका में एक मामूली व्यापारी के यहां भी रसोईघर का काम और सफ़ाई के लिए नौकर रहते थे। यहां उन्होंने बा को काम करते देखा तो उन्हें आश्चर्य हुआ। उन्होंने गांधी जी से कहा, “भाई, तुमने तो जीवन में बहुत हेरफेर कर डाला। बिल्कुल सादगी अपना ली। इन कस्तूरबाई ने भी कोई वैभव नहीं भोगा”
बापू ने खाते-खाते जवाब दिया, “मैंने इसे वैभव भोगने से रोका कब है?”
यह सुनकर बा ने हंसते हुए ताना मारा, “तो तुम्हारे घर में मैंने क्या वैभव भोगा है?”
गांधी जी ने उसी लहजे में हंसते-हंसते कहा, “मैंने तुझे गहने पहनने से या अच्छी रेशमी साड़ी पहनने से कब रोका है, और जब तूने चाहा तब तेरे लिए सोने की चूड़ियां भी बनवा लाया था न?”
बा कुछ गंभीर होकर बोलीं, “तुमने तो सभी कुछ लाकर दिया, लेकिन मैंने उसका उपयोग कब किया है? देख लिया कि तुम्हारा रास्ता जुदा है। तुम्हें तो साधु-संन्यासी बनना है। तो फिर मैं मौज-शौक मनाकर क्या करती? तुम्हारी तबीयत को जान लेने के बाद मैंने तो अपने मन को मना लिया।”
बा के इस कथन में – “मैंने तो अपने मन को मना लिया” उनके सम्पूर्ण जीवन की सफलता की कूंजी है। बा बापू की साधना और उनके महाव्रतों के पालन में कभी भी बाधक नहीं बनीं। उलटे धीरे-धीरे वे बापू के व्रतों, आदर्शों और सिद्धांतों को अपनाती गईं और उनपर आचरण किया। बा की महात्वाकांक्षा बापू की तरह अपने जीवन को पूर्ण बनाने की नहीं थी। उनका एक सहज स्वभाव था बापू के अनुकूल होकर रहने का। अपनी इच्छा-अनिच्छा का त्याग करके अनेक कठिनाइयों और परिवर्तन को सहकर पति के रास्ते चलना आसान नहीं है। इसके लिए बहुत बड़े आत्म-बल और अद्भुत समर्पण की भावना ज़रूरी है। बा में ये दोनों बातें थीं।
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वाकई मन को मना लेने में ही जीवन का सार निहित है. प्रेरक प्रसंग.
जवाब देंहटाएंअपने मन को ली मना, बा को सतत प्रणाम |
जवाब देंहटाएंबापू करते कब मना, सामन्जस परिणाम ||
सामन्जस परिणाम, आत्म-बल प्रेम समर्पण |
सत्य अहिंसा तुल्य, नियंत्रित कर ली तर्षण |
बापू बड़े महान, जोड़ते भारत जन को |
उनमें बा के प्राण, भेंटती अपने मन को ||
दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com
प्रेरक प्रसंग |मनुष्य तो सामाजिक प्राणी है ही |सामंजस्य होना जीवन में बहुत आवश्यक है |तभी जीवन सुचारू रूप से चलता है |
जवाब देंहटाएं“मैंने तो अपने मन को मना लिया”apne mn ko manana hi to badi bat hai baa ke jivn ki har ghatna hme sikh deti hai bahut achchi prastuti manoj jee thanks nd aabhar.
जवाब देंहटाएं“मैंने तो अपने मन को मना लिया”…………प्रेम ,त्याग और समर्पण वो भी एक स्त्री का ………उसके बिना कोई भी पुरुष ज़िन्दगी मे कुछ नही बन पाया…………फिर चाहे बुद्ध हों या गांधी मगर यदि इसकी जगह वो खुद होते और स्त्री इस पथ पर चली होती तो शायद ज़िन्दगी मे कभी भी ऐसा ना कर पाते ………बस यही फ़र्क होता है स्त्री और पुरुष होने मे।
जवाब देंहटाएंभारतीय स्त्रियाँ अक्सर अपने मन को मना ही लेती हैं .... बा ने शायद सम्पूर्ण रूप से मना लिया था अपना मन ...प्रेरक प्रसंग
जवाब देंहटाएंमन को मन लेना ..
जवाब देंहटाएंअक्सर परिस्थितियों में ऐसा कर पाना ही उचित होता है ..
प्रेरक प्रसंग..!
परिस्थितियों के अनुरूप मन को ढाल लेना और जिनसे आप प्रभावित हों उनके अनुरूप आचरण से बढाकर प्रेरक कुछ भी नहीं.. अनुकरणीय!!
जवाब देंहटाएंbahut hi badiya prerak prastuti..aabhar!
जवाब देंहटाएंप्रेरणास्पद !
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ
गाफिल जी हैं व्यस्त, चलो चलें चर्चा करें,
जवाब देंहटाएंशुरू रात की गश्त, हस्त लगें शम-दस्यु कुछ ।
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
सोमवारीय चर्चा-मंच पर है |
charchamanch.blogspot.com
अनुकरणीय प्रसंग ....जीवन में सामंजस्य बिठाना तो आना ही चाहिए ,बा तो महान थीं ही .
जवाब देंहटाएंBaa waqayee tyag kee moorat theen!
जवाब देंहटाएंयही हमारी भारतीय नारी की महानता है अपने मन को मनाकर सत्य के मार्ग का अनुसरण करना ओर त्याग ओर बलिदान की सर्वोच्च भावना युक्त जीवन दर्शन .........
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