शुक्रवार, 16 मार्च 2012

बजट 2012 स्पष्ट दृष्टि की कमी

बजट 2012

स्पष्ट दृष्टि की कमी

अरुण चंद्र रॉय

यह समय पूरी दुनिया के लिए एक कठिन समय है. विकसित देशो में जिस तरह अर्थव्यवस्था चरमरा गई है, वित्तीय नियंताओं के लिए नीतियों और दिशाओं पर फिर से सोचने का समय आ गया है. दुनिया दो तरह से बटी हुई है. एक बराबरी के देश जहाँ आम तौर पर बराबरी-सा माहौल है. रोज़ी और रोटी, मूलभूत नागरिक सुविधाओं के लिए मारामारी नहीं है यानि विकसित देश. दूसरा गैर बराबरी वाला देश. जैसे हम. इन देशों में जहाँ कुछ लोगों के पास अकूत सम्पदा है तो अधिकांश लोगों के पास जरुरी चीजों तक का आभाव है. ऐसे गैर बराबरी वाले देशो में जिस तरह पश्चिम की अर्थव्यवस्था और नीतियों को अपनाया गया, गैर बराबरी की खाई और भी बढती चली गई. विकास की किरण तो दिखी लेकिन यह छन कर नीचे तक नहीं पहुच सकी. साठ के दशक के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था करवटें बदलने लगी थी लेकिन यह नब्बे के दशक में पूरी तरह बाजारू हो गई जहाँ लाभ के अतिरिक्त व्यापार का अन्य कोई मकसद नहीं रह गया था. इक्कीसवी सदी का पहला दशक दुनिया भर के लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया कि पूंजीवादी व्यवस्था की भी अपनी खामिया हैं जिसे अंततः हाशिये पर रहने वालों को वहन करना होता है.

इधर आम आदमी बज़ट में रूचि दिखाने लगा है. जिससे लग रहा है कि लोकतंत्र और भी परिपक्व हो रहा है. बज़ट पूर्व और उपरांत पान की दुकान से लेकर टी वी चैनलों तक बहस होती है. बज़ट विमर्श में बढती भागीदारी हमारी लोकतंत्र की सारगर्भिता का संकेत भी है.लेकिन  प्रणव दा के बजट 2012 में एक स्पष्ट सोच और दृष्टि की कमी दिखाई दे रही है.  इस बज़ट में जिन मुद्दों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए उन्हें तरजीह नहीं दी गई है. ढांचागत विकास, कृषि, जन आवास, जन स्वास्थय आदि के क्षेत्र में जितना निवेश होना चाहिए था, जितनी प्राथमिकता मिलनी चाहिए थी वह नहीं मिली है.

उदारवादी अर्थव्यस्था के परिणामो से जिस तरह विश्व के विकसित देश प्रभावित हो रहे हैं, आर्थिक मंदी के जिस चपेट में अमेरिका और यूरोप है, उस से सीख लेने की बजाय, हमारे बजट में फिर से विदेशी निवेश को प्राथमिकता दी गई है. रिटेल में विदेशी निवेश के पुरजोर विरोध होने के बाद भी, लग रहा है सरकार के एजेंडे पर यह अब भी है और किसी जुगाड़ से इसे संसद में पारित करने की कोशिश की जाएगी.  वित्तमंत्रीजी ने बजट 2012-13 में कृषि का बजट 18 फीसदी बढ़ाकर 20208 करोड़ रुपये कर दिया है। कहा गया है किसानो को और कर्जे दिए जायेंगे लेकिन किसानो के पैदावार को विचौलियों से बचाने और उन्हें सिंचाई, बीज और खाद आसानी से कैसे उपलब्ध होंगे, इस बारे में नीतिगत उपायों के बारे में कुछ नहीं कहा गया है. सत्तर हज़ार गाँव में बैंक खोलने की बात तो कही गई है लेकिन खेती के लिए उपजाऊ भूमि में हो रही लगातार कमी से कैसे निपटा जायेगा, इस बारे में चुप्पी है. पहली हरित क्रांति से उपज में साढ़े पांच प्रतिशत की वृद्धि हुई थी लेकिन लगभग आठ फिसिदी कृषि योग्य खेतो में कमी भी हुई थी. कृषि के क्षेत्र में प्रतिकूलता और सरकारी उदासीनता के कारण छोटे और मझौले किसानो की खाद्यान के मामले में आत्मनिर्भरता में भारी कमी आई है.

जहाँ देश की आधी आबादी के पास रहने को छत नहीं है वहीं बज़ट में कहा गया है कि सस्ते घर बनाने के लिए बिल्डर विदेशों से क़र्ज़ ले सकते हैं. प्रणव दा ने यह नहीं बताया कि सस्ते घर का तात्पर्य क्या है. इसे काले धन को सुनियोजित तरीके से भारत में पुनर्निवेश करने के लिए एक उपाय के रूप में देखा जाना चाहिए. जहाँ आम जानता पहले से ही भारी महंगाई के चपेट में है, सेवा कर में २ फिसिदी बढ़ोतरी से आम सेवा पहले से अधिक महँगी हो जाएँगी. और इसका अंततः बोझ उपभोक्ता पर ही आयेगा.  अभी बज़ट का विश्लेषण होना बाकी है, लेकिन इतना तो तय है कि इस बज़ट में स्पष्ट सोच और दिशा की कमी है, आम आदमी फिर हाशिये पर है.

(चित्र : साभार गूगल सर्च)

10 टिप्‍पणियां:

  1. खुला पिटारा प्रणव का, मौनी देते दाद ।
    महँगाई से त्रस्त जन, डर डर देते पाद ।

    दर दर देते पाद, धरा नीचे से खिसके ।
    सस्ता हुआ नमक, छिड़क दें जैसे सिसके ।

    दो प्रतिशत दे और, जरा सा सह ले यारा ।
    छिना और दो कौर, पीटता खुला पिटारा ।।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अद्भुत रवि जी!
      आपकी इस प्रत्युत्पन्नमति का सही में मैं कायल हूं।

      हटाएं
  2. इतनी जल्दी चिट्ठे पर इस बारे में पढना हुआ। बहुत अच्छा।

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह... रवि जी की टिप्पणी गज़ब की.

    जवाब देंहटाएं
  4. अरुण जी बजट सुना भी नहीं और पढ़ा भी नहीं किन्तु आपका चिंतन सही लगता है सरकार से अपेक्षा ही नहीं थी

    जवाब देंहटाएं
  5. छीज रहा है पल-पल जीवन
    राहत की उम्मीद लिए
    ठगी गई जनता ही हरदम
    हेर-फेर जितने भी किए!

    जवाब देंहटाएं
  6. इतना तो तय है कि इस बज़ट में स्पष्ट सोच और दिशा की कमी है, आम आदमी फिर हाशिये पर है. bechara aam aadmi hmesha hi hashiye pr rhta hai.bahut acchi prsstuti manoj jee.

    जवाब देंहटाएं
  7. समसामयिक पोस्ट ... अच्छा विश्लेषण किया है ...

    जवाब देंहटाएं
  8. Very good post! We are linking to this great article on our website.
    Keep up the good writing.
    Feel free to visit my webpage ... official preview

    जवाब देंहटाएं

आप अपने सुझाव और मूल्यांकन से हमारा मार्गदर्शन करें