पुस्तक दिवस और राजेंद्र यादव से संक्षिप्त मुलाकात
अरुण चन्द्र रॉय
कल पुस्तक दिवस था. २३ अप्रैल . यह दिवस यूनेस्को द्वारा १९९५ में विश्व पुस्तक दिवस के रूप में घोषित किया गया. अंग्रेजी के बड़े कवि, नाटककार विलियम शेक्सपियर की मृत्यु इसी दिन हुई थी. पुस्तक के प्रति कम होते प्रेम को, पठनीयता में कमी को देखते हुए विश्व पुस्तक दिवस मनाने की जरुरत पडी. किताबो से मिलता क्या है ! जब यह सवाल व्यक्ति पूछने लगे तो याद आते हैं जोर्ज बर्नार्ड शा . वे कहते हैं, “People get nothing out of books but what they bring to them”. पुस्तकों से जो मिलता है उसे भौतिक रूप में देखा नहीं जा सकता. पुस्तकें अनुभव देती हैं जिन्हें हम प्रत्यक्ष नहीं कर सकते. विचारो के आदान प्रदान का माध्यम हैं किताबें. अमेरिकी उपन्यासकार विलियम एस्टारन कहते हैं “A great book should leave you with many experiences, and slightly exhausted. You should live several lives while reading it.”
दिन भर की भाग दौड़ के बाद पंहुचा था हंस. कई दिनों से जाना टल रहा था. हंस के संपादक और वरिष्ठ कथाकार श्री राजेंद्र यादव इधर काफी बीमार रहते हैं. लेकिन अब हंस के दफ्तर आना शुरू कर दिया है. हंस के प्रबंधन में भारी फेरबदल भी हुए हैं. इधर ज्योतिपर्व प्रकाशन को लेकर कई बार हंस के दफ्तर जाना पड़ा था लेकिन राजेंद्र जी से कभी मिला नहीं था. कल हंस की व्यवस्थापिका वीणा उनियाल जी ने कहा कि आप कई बार यहाँ आये हैं, हंस में नियमित विज्ञापन दे रहे हैं, तो राजेंद्र जी पूछ रहे थे. उन्होंने मिलने का अनुरोध किया है. यादव जी उस समय खाली भी थे. मैं उनके कक्ष में चला गया. अपने प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तकें उन्हें भेंट करनी चाही तो उन्होंने कविता की पुस्तकें एक ओर रख दी. कविता से उन्हें विरक्ति सी हो गई है. उन्हें वापिस ले जाने के लिए कहा. मैंने अनुरोध किया कि आप मेरी पुस्तकों के कंटेंट को ना देखे, केवल प्रोडक्शन देखें तो वे मान गए. ऐसा केवल उन्हें पुस्तक दिखने के लिए कहा. इस बीच, बी एल गौड़ जी का संग्रह "कब पानी में डूबा सूरज" और राजेश उत्साही जी के कविता संग्रह "वह, जो शेष है " पर उनकी नज़र ठहर गई. कवर अच्छे लगे. मूल्य ने तो और भी आकर्षित किया.
राजेंद्र यादव जी बहुत पढ़ते हैं. एक बार किताब हाथ में पहुँच जाये तो कुछ पन्ने तुरंत पढ़ डालते हैं. सुना है पढने से खुद को रोक नहीं पाते. जबकि डाक्टरों ने आँखों को आराम देने के लिए कहा है. कविता से विरक्ति होने जैसा के वाबजूद, मेरे सामने ही राजेश उत्साही जी की कुछ कवितायेँ पढ़ गए. एक कविता बी एल गौड़ जी के संग्रह से भी पढ़ी और मुस्कुरा दिए. उस मुस्कराहट का अर्थ ढूंढ ही रहा था कि उन्होंने राजेश उत्साही जी के बारे में पूछा. निर्मल गुप्त के निबंध संग्रह "एक शहर किस्सों भरा" के दो तीन लेख तुरंत पढ़ डाले और कहा कि इन्हें समीक्षा के लिए रखवा दें. ज्योतिपर्व प्रकाशन से डॉ. एस के भारद्वाज जी का एक उपन्यास अभी अभी प्रकाशित हुआ है "शाश्वत प्रेम". हिंदी अकादमी ने इसे प्रकाशन सहयोग योजना के लिए अनुमोदित किया है. इस पुस्तक के प्रोडक्शन को देख अभिभूत हुए. फॉण्ट के बारे कहा कि लगता है युवाओं के लिए प्रकाशित किया है, थोड़े छोटे हैं लेकिन कुछ पन्ने पढ़ डाले. इसकी समीक्षा के लिए उन्होंने वीणा उनियाल जी को कह दिया. नारी यौन मनोविज्ञान पर आधारित है यह उपन्यास. राजेंद्र जी ने पुस्तकों के मूल्य के बारे में कहा कि बहुत मुश्किल है ९९ रूपये में किताबें बेचना. यह उत्साह भरा कदम लग रहा है क्योंकि पाठक दिनों दिन कम हो रहे हैं.
ज्योतिपर्व प्रकाशन की नई कहानी सीरीज "मेरी प्रिय कथाएं" के बारे में पूर्व कार्यकारी संपादक और वरिष्ठ कथाकार श्री संजीव ने उन्हें कभी बताया होगा. उन्हें याद था. पूछ रहे थे कि कौन कौन कथाकार इस सीरिज में आ रहे हैं. अस्सी के पार पहुचने के बाद भी राजेंद्र जी की याददाश्त बहुत तेज़ है. तभी किसी संगीता जी का फ़ोन आया और उनकी कहानी का कोई अंश उन्होंने उधृत कर दिया. आज भी तीन चार घंटे पढ़ते हैं राजेंद्र जी. मुझसे पूछा कि केवल प्रकाशित करता हूं या लिखता पढता भी हूं. थोड़ी संक्षिप्त चर्चा संजीव जी के नए उपन्यास "रह गई दिशाएं इस ओर" पर हुई. यह उपन्यास मैंने अभी अभी ख़त्म किया है और राजेंद्र जी उस समय इसे ही पढ़ रहे थे. आज भी कितना पढ़ते हैं वे, यह सोच सोच मैं विस्मित हूं और निश्चय किया है की कि कम से कम पच्चीस पृष्ठ साहित्य के रोज़ पढूंगा.
राजेंद्र जी के अच्छे मूड और थोड़ी आत्मीयता देख "मेरी प्रिय कथाएं "सीरीज " के लिए उनकी कहानियों की मांग कर डाली. उन्होंने भी हाँ कह दिया. यह मेरे लिए किसी उपलब्धि से कम नहीं . मैंने कहा कि एक फोटो ले लूं अपनी प्रकाशित पुस्तक के साथ तो उन्होंने सिगरेट सुलगाते हुए मना कर दिया. पुस्तक दिवस पर अधिक पढने का स्वयं से वचन और अपने प्रकाशन के लिए राजेंद्र जी की हामी के साथ लौट रहा था मैं.
वरिष्ठ साहित्यकार से एक सुन्दर मुलाकात ..अच्छा लगा देख पढकर.
जवाब देंहटाएंachchaa laga badhaai ho .akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंअरुण जी आपकी यह निष्ठा और लगन आपको सफलता के शिखर तक एक न एक दिन अवश्य ले जाएगी।
जवाब देंहटाएंपुस्तक दिवस के अवसर पर राजभाषा ब्लॉग को दिया हुआ यह नायाब तोहफ़ा, एक धरोहर से कम नहीं है। राजेन्द्र जी से मुलाक़ात और कुछ अनदेखे-अनजाने पहलू से हमें रू-ब-रू कराने के लिए आभार।
आज के दिन लिया गया संकल्प बहुत अच्छा और प्रेरक है।
वाकई यह मुलाकात निश्चित ही एक उपलब्धि ही है
जवाब देंहटाएंआपका प्रयास सराहनीय है
सुंदर संकल्प और वरिष्ठ साहित्यकार से मुलाक़ात .... बढ़िया रही
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब!!
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा आपकी मुलाकात के बारे में पढ़कर.....
जवाब देंहटाएंvarishthon ke darshan hi faldayi hote hain
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