पुस्तक परिचय-27
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मेरे बाद
संगीता स्वरूप
सत्यम शिवम की कविताएँ पढ़ कर उनके काव्य संसार को जानने का अवसर मिला ..हांलांकि सत्यम पेशे से इंजीनियर हैं लेकिन मन के कोमल भावों को व्यक्त करने के लिए कल्पना संसार में भी गोते लगाते हैं
और कविता के रूप में मोती चुन लाते हैं ..साहित्य के प्रति उनका रुझान स्पष्ट दिखता है और इस क्षेत्र में बहुत कुछ करने के लिए कटिबद्ध हैं ..यह काव्यसंग्रह उनकी लगन का ही परिणाम है ..
सत्यम जी की कविताओं को पढ़ कर लगता है कि ईश्वर में उनकी गहन आस्था है .. इसकी एक झलक उनकी इस रचना में दिखाई देती है –
अश्रु से सींचित, ह्रदय फूल की,/माला गूँथ मै लाया हूँ। /श्रद्धा के धागों में पिरोकर,/भक्ति उपहार बनाया हूँ।/आज प्रभु तुमको तो आकर, /करनी होगी माला स्वीकार,/वरना निर्धन भक्त तुम्हारा, /सह ना पायेगा उर का ये विकार।
ऐसे ही एक रचना और है -- मस्जिद में लगे ध्वनि-विस्तारक यंत्रों से,/अजान का वो स्वर सूना है! ना कौम की चर्चा कही, /ना ही मजहब का वास्ता,
बस है खुदा उन बंदो का, /अपनाते है जो मोहब्बत का रास्ता! /मैने तो जाना मोहब्बत होती बड़ी , / आज भी धर्म और मजहब से कई गुना है!
भक्ति रस में डूबी ‘साईं कृपा’ , ‘ तुझे पा लिया ‘गणपति वन्दना ‘ईश्वर के प्रति आस्था के अनुपम उदाहरण हैं .
युवा मन प्रेम के भाव में आकंठ डूब कर कुछ यूँ वर्णित कर रहा है –
है पता तुमको समर्पण,
उन रातों की बेसुधी का आलम,
प्राण का उस प्रीत की धुन पर,
निःस्वार्थ,बेवजह हर बार अर्पण।
यादों के बादल में तुमने छुपाया प्रेम मेरा,
और उसके बिन जहाँ में आज मै कितना अकेला।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर लिखी एक कविता पूरा दृश्य दिखा रही है अर्जुन के मन में उठने वाली शंकाओं को -
बस भौतिक राज्य और यश वैभव,
इस महायुद्ध का है उदघोष,
ना चाहिए कुछ भी अब मुझको,
ना कर पाऊँगा अपनों से रोष।
कवि सामजिक सरोकार को भी नहीं भूल है ..एक सार्थक सन्देश देता हुआ कह उठा है –
टूट कर बिखरोगे जो तुम,
क्या मिलेगा टूटने पर,
तुम ही होगे कल के सपने,
टूटते को जोड़ दो गर।
इसलिए हे पथिक! मत थक,
दूर तक तू हँस के चल ले।
पारिवारिक रिश्तों पर भी कवि कि लेखनी खूब चली है ... माँ , अर्धांगनी कुछ ऐसी ही कविताएँ हैं जिनको पढने से कवि के हृदय में नारी के प्रति सम्मान कि भावना स्पष्ट दिखाई देती है . पिता के दुःख को भी कवि ने अपने शब्द दिए हैं .
कहीं कहीं स्वयं से जूझते हुए कवि का कोमल हृदय हताशा की ओर मुड गया है –कहीं वो अपने दुर्भाग्य की बात कहता है तो कभी आज के ज़माने का नहीं होने की .. कहीं कहीं उनके मन की कश्मकश भी साफ़ दृष्टिगोचर होती है –
सूरज की पहली किरण हूँ,
या सूर्यास्त की लालिमा हूँ।
दिन का ऊजाला हूँ,या रात की कालिमा हूँ।
इस प्रश्न पर आज क्यों मौन हूँ,
न जाने मै कौन हूँ?
सत्यम जी की कविताओं में प्रवाह है , लय है .. पढते हुए पाठक खुद को इनसे जुड़ा हुआ महसूस करता है ..इस काव्यसंग्रह के लिए उनको बधाई और साहित्याकाश में वो उभरते सितारे हैं .उनकी चमक दूर दूर तक पहुंचे इसके लिए शुभकामनायें .
पुस्तक का नाम ---- मेरे बाद
रचनाकार ---- सत्यम शिवम
प्रकाशक --- उत्कर्ष प्रकाशन ,142,शाक्य पुरी , कंकरखेड़ा मेरठ
मूल्य ---- 150 /
ISBN ---978-81-921666-9-8
पुस्तक इस मेल आई डी से 100/ रुपए में प्राप्त की जा सकती है
<satyamshivam95@gmail.com>,
इस पोस्ट के माध्यम से सत्यम जी की पुस्तक "मेरे बाद" के बारे मं तथा इसके अंतर्वस्तु को प्रकाश में लाने के कारण ऐसा प्रतीत होता है कि रचनाकार के गहन अनुभव के आधार पर लिखी गई यह पुस्तक अवश्य ही जीवन की हर विषय-वस्तु को अपनी अभिव्यक्ति के सांचे में ढालने में सक्षम सिद्ध होगी । इस पुस्तक से परिचय करवाने के लिए आपका आभार । मेरे नए पोस्ट हरिवंश राय बच्चन पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं ।
बढ़िया.
जवाब देंहटाएंमेरे बाद की समीक्षा आपके द्वारा इसकी एक वृहद् पहचान
जवाब देंहटाएंशानदार समीक्षा ……सत्यम को बधाई
जवाब देंहटाएंthnks a lot to all of u...splly thnks to Sangeeta Aunty :)
जवाब देंहटाएंशानदार समीक्षा ..पुस्तक भी जरुर पठनीय होगी.
जवाब देंहटाएंपुस्तक का आपने अच्छा परिचय दिया है। सरल शब्दों में अच्छी समीक्षा।
जवाब देंहटाएंपिता के दुःख को भी कवि ने अपने शब्द दिए हैं .
जवाब देंहटाएंकहीं कहीं स्वयं से जूझते हुए कवि का कोमल हृदय हताशा कि ओर मुड गया है –कहीं वो अपने दुर्भाग्य की बात कहता है तो कभी आज के ज़माने का नहीं होने की .. कहीं कहीं उनके मन की कश्मकश भी साफ़ दृष्टिगोचर होती है –कृपया 'कि' के स्थान पर की करें .बढ़िया कसावदार अमालोचना आत्मीयता लिए रचनाकार के साथ .
आपकी द्रुत टिपण्णी के लिए शुक्रिया .कृपया यहाँ भी पधारें -शनिवार, 28 अप्रैल 2012
ईश्वर खो गया है...!
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आरोग्य की खिड़की
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महिलाओं में यौनानद शिखर की और ले जाने वाला G-spot मिला
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वीरुभाई ,
हटाएंआभार .... सुधार कर दिया है
शिवम जी को बहुत बहुत बधाई ...और आभार संगीताजी ... विस्तृत जानकारी के लिए ! अब तो 'मेरे बाद ' पढनी ही है
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