हथौड़ा अभी रहने दो – अज्ञेय
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय |
हथौड़ा अभी रहने दो
अभी तो हन भी हम ने नहीं
बनाया।
धरा की अन्ध कन्दराओं में
से
अभी तो कच्चा धातु भी हम
ने नहीं पाया।
और फिर वह ज्वाला कहाँ
जली है
जिस में लोहा तपाया-गलाया
जाएगा –-
जिस में मैल जलाया जाएगा?
आग, आग, सब से पहले आग !
उसी में से बीनी जाएंगी
अस्थियाँ;
धातु जो जलाया और बुझाया
जाएगा
बल्कि जिस से ही हन बनाया
जाएगा –-
जिस का ही तो वह हथौड़ा
होगा
जिस की ही मार हथियार को
सही रूप देगी, तीखी धार
देगी।
हथौड़ा अभी रहने दो :
आओ, हमारे साथ वह आग जलाओ
जिस में से हम फिर अपनी
अस्थियाँ बीन कर लाएंगे,
तभी हम वह अस्त्र बना
पाएंगे
जिस के सहारे
हम अपना स्वत्व – बल्कि अपने
को पाएंगे।
आग – आग --- आग दहने दो :
हथौड़ा अभी रहने दो !
हथौड़ा अभी रहने दो !
जवाब देंहटाएंहथियारों की बात से बचना ही ठीक है
वर्ना अस्थि बचेगी न पंजर।
जब चलेंगे हर ओर बस ख़ंजर ही ख़ंजर।
सादर नमन ।।
जवाब देंहटाएंअभी आग की ही जरुरत है ..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर .
हथौड़ा अभी रहने दो :
जवाब देंहटाएंआओ, हमारे साथ वह आग जलाओ
जिस में से हम फिर अपनी अस्थियाँ बीन कर लाएंगे,
तभी हम वह अस्त्र बना पाएंगे
जिस के सहारे
हम अपना स्वत्व – बल्कि अपने को पाएंगे।
एक सैनिक होने के नाते अज्ञेय जी अपनी कविताओं में मानव मन के अस्तित्व-बोध को सर्वदा साक्षात्कार कराने में समर्थ रहे हैं । उनकी उपर्युक्त पक्तियां मानव- अस्तित्व के तलाश की परिचायक हैं । उनकी यह कविता एवं आपका चयन प्रसंशनीय है । धन्यवाद ।
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 19 -04-2012 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....आईने से सवाल क्या करना .
श्रधेय अज्ञेय जी का जीवन के प्रति वात्सल्य , मोह , किसी भी अतिवादिता को पार कर सार्थक सुखद स्वरुप देने का यत्न ही, उनको आदर्श बनाता है अग्रणी विचारों में .....कालजयी कवि की कालजयी कविता , नमन आप दोनों को ....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविता पढ़वाने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट कल 26/4/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
चर्चा - 861:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
इस उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए आभार
जवाब देंहटाएंमहाकवि अज्ञेय की इस श्रेष्ठ कृति को पढवाने के लिये आभार!
जवाब देंहटाएंआभार इस कविता के लिये !
जवाब देंहटाएंअज्ञेय जी की कविता पढ़वाने के लिए बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंहथौड़ा अभी रहने दो :
जवाब देंहटाएंआओ, हमारे साथ वह आग जलाओ
जिस में से हम फिर अपनी अस्थियाँ बीन कर लाएंगे,
तभी हम वह अस्त्र बना पाएंगे
जिस के सहारे
हम अपना स्वत्व – बल्कि अपने को पाएंगे।
निशब्द हूं... उम्दा ... आभार !!
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय जी की खूबसूरत रचना पढाने का बहुत २ शुक्रिया |
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