पुस्तक परिचय-24
विवेकानन्द
मनोज कुमार
इस सप्ताह आपका परिचय लिओ तालस्तोय , महात्मा गांधी, माइकल एंजेलो, आदि महत्वपूर्ण सख्सियतों की जीवनियाँ लिखने वाले व नोबेल पुरस्कार से सम्मानित फ्रांसीसी लेखक रोमां रोलां की कृति “विवेकानन्द” से कराने जा रहे हैं। रोमां रोलां ने यूरोप में भारतीय ज्ञान को काफ़ी प्रोत्साहित किया है। स्वामी विवेकानन्द पर रोमां रोलां द्वारा लिखी गयी जीवनी के हिन्दी में दो अनुवाद उपलब्ध हैं। एक अनुवाद रामकृष्ण मिशन से जुड़े एक स्वामीजी द्वारा किया गया है और दूसरा जिसकी चर्चा हम आज करने जा रहे हैं हिन्दी साहित्य के दो दिग्गज स. ही. वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ तथा रघुवीर सहाय द्वारा किया गया है । यह पुस्तक साहित्य अकादमी की ओर से लोकभारती पेपरबैक्स द्वारा प्रकाशित है ।
पुस्तक की भूमिका में रोमां रोलां लिखते है महान् भारतीय सन्त एवं चिन्तक रामकृष्ण का आध्यात्मिक दाय ग्रहण करके उनके चिन्तन के बीज-कणों को सारे संसार में वितरित करने और अपना कार्य सफलतापूर्वक सम्पादित करनेवाले विवेकानन्द का जीवन निश्चय ही अत्यन्त गौरवपूर्ण एवं प्रेरणादायक है। परमहंस का पूरा जीवन देवी मां के चरणों में बीता था। उनके श्रेष्ठ शिष्यों का भी ऐसा सौभाग्य न था क्कि उनकी समानता कर सकें। उनके शिष्यों में विवेकानन्द सबसे महान और समर्थ थे। रोलां कहते हैं विवेकानन्द का मुख्य गुण उनका राजस भाव था। वह मानो राजा ही जन्मे थे और भारत अथवा अमेरिका में जो भी उनके निकट आया वह मानो उनके सिंहासन के सामने सिर नवाने को बाध्य हो गया।
तीस वर्ष का यह अज्ञात नवयुवक जब सितम्बर 1893 में शिकागो में सर्व-धर्म सम्मेलन के कार्डिनल गिबंस द्वारा उद्घाटन के अवसर पर प्रकट हुआ तब उसकी भव्य आकृति के सामने और सब प्रतिनिधि भुला दिए गए। उनके बोलना आरम्भ करने पर उनकी गंभीर वाणी के भव्य संगीत से सब मुग्ध हो गए। उनके कहीं भी दूसरे स्थान पर होने की कल्पना ही कठिन थी।
जहाँ भी वह जाते उनका स्थान सर्वप्रथम ही होता। स्वयं उनके गुरु रामकृष्ण ने एक स्वप्न में अपने प्रिय शिष्य के सम्मुख अपने को किसी महर्षि के सम्मुख एक शिशु-सा देखा था। विवेकानन्द स्वयं इस सम्मान को अस्वीकार करने का प्रयत्न करते, अपनी कड़ी आलोचना करते और अपने को हीन सिद्ध करना चाहते किन्तु व्यर्थ; उन्हें देखते ही प्रत्येक व्यक्ति उन्हें नेता का, भगवान् के कृपापात्र का वरिष्ठ पद देता।
पुस्तक का आरंभ श्री रामकॄष्ण के जीवन वृत्त से होता है। फिर उअन्के प्रिय शिष्य नरेन, परिव्राजक, भारत का तीर्थयात्री, एक महान पश्चिम-यात्रा और सर्वधर्म सम्मेलन, अमेरिका में प्रवचन, भारत और यूरोप का संगम, प्रत्यावर्तन, रामकृष्ण मिशन की स्थापना, पश्चिम की दूसरी यात्रा और महाप्रयाण नामक अन्य दस शीर्षक भी हैं इस पुस्तक में।
रामकृष्ण विवेकानन्द जी को कहा करते थे, “मैं तुझसे इसलिए स्नेह करता हूं कि तुझमें मैं भगवान देखता हूं।” उन्हें नरेन पर भरोसा था। वे कहते थे कि यह युवक बिल्कुल खरा सोना है, जिसे इस संसार का कोई दूषण मैला नहीं कर सकेगा। विवेकानन्द जी एक युगांतरकारी आध्यात्मिक गुरु थे। उन्होंने हिन्दू धर्म को गतिशील तथा व्यवहारिक बनाया। उन्होंने सुदृढ़ सभ्यता के निर्माण के लिए आधुनिक मानव से पश्चिमी विज्ञान व भौतिकवाद को भारत की आध्यात्मिक संस्कृति से जोड़ने का आग्रह किया। स्वामी जी ने पैदल ही पूरे भारत की यात्रा की।
स्वामी विवेकानन्द कहा करते थे- 'मैं कोई तत्ववेत्ता नहीं हूँ। न तो संत या दार्शनिक ही हूँ। मैं तो ग़रीब हूँ और ग़रीबों का अनन्य भक्त हूँ। मैं तो सच्चा महात्मा उसे ही कहूँगा, जिसका हृदय ग़रीबों के लिये तड़पता हो।' स्वामी जी के बारे में जानने के लिए यह एक औथेंटिक पुस्तक है। इसे एक बार ज़रूर पढ़ना चाहिए।
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पुस्तक का नाम | विवेकानन्द |
लेखक | रोमां रोलां |
प्रकाशक | लोकभारती प्रकाशन, नई दिल्ली |
संस्करण | तीसरा पेपरबैक संस्करण : 2011 |
मूल्य | 85 |
पेज | 123 |
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जहाँ तक मुझे याद है कि 11 सितंबर, 1893 को स्वामी विवेकानंद ने शिकागो ‘पार्लियामेंट आफ रिलीजन’ में भाषण दिया था, उसे आज भी दुनिया भुला नहीं पाती। इस भाषण से दुनिया के तमाम पंथ आज भी सबक ले सकते हैं । इस अकेली घटना ने पश्चिम में भारत की एक ऐसी छवि बना दी, जो आजादी से पहले और इसके बाद सैकड़ों राजदूत मिलकर भी नहीं बना सके । स्वामी विवेकाननंद के इस भाषण के बाद भारत को एक अनोखी संस्कृति के देश के रूप में देखा जाने लगा । अमेरिकी प्रेस ने विवेकानंद को उस धर्म संसद की महानतम विभूति बताया था । और स्वामी विवेकानंद के बारे में लिखा था, उन्हें सुनने के बाद हमें महसूस हो रहा है कि भारत जैसे एक प्रबुद्ध राष्ट्र में मिशनरियों को भेजकर हम कितनी बड़ी मूर्खता कर रहे थे । यह ऐसे समय हुआ, जब ब्रिटिश शासकों और ईसाई मिशनरियों का एक वर्ग भारत की अवमानना और पाश्चात्य संस्कृति की श्रेष्ठता साबित करने में लगा हुआ था । स्वामी विवेकानंद के विषय में "रोमां रोलां" द्वारा लिखित पुस्तक "विवेकानंद" को पढना वास्तव में उनके बारे में कुछ अनोखी जानकारियां प्रदान कर सकता है। उनके बारे में आपकी यह प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट "अमत लाल नागर" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंbahut acchi prastuti nd jankari.....thanks.
जवाब देंहटाएंस्वामी विवेकानंदा के कई भाषण ऐसे हैं जो बहुत गहरा असर छोड़ते हैं |उनकी आस्था अडिग थी |इस किताब को ज़रूर पढेंगे ...!!
जवाब देंहटाएंआभार इस जानकारी के लिए |
@ विवेकानंद को उस धर्म संसद की महानतम विभूति बताया था । और स्वामी विवेकानंद के बारे में लिखा था, उन्हें सुनने के बाद हमें महसूस हो रहा है कि भारत जैसे एक प्रबुद्ध राष्ट्र में मिशनरियों को भेजकर हम कितनी बड़ी मूर्खता कर रहे थे ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया ।
बधाई ।।
मेरे पुत्र के आदर्श हैं स्वामी विवेकानंद.. उनके चरित्र और कृत्तित्व पर उसने बहुत सी पुस्तकें पढ़ी हैं.. यह बात इसलिए कहना आवश्यक है यहाँ पर कि अभी उसकी उम्र सिर्फ १५ साल है और इस उम्र में यदि उसने उन्हें आदर्श बनाया है (बजाय राहुल, अखिलेश या शाहरुख, आमिर और सलमान के) तो अवश्य उस महान विभूति में कोई स्वर्गिक क्षमता होगी.. इस पुस्तक के विषय में उसे अवश्य बताउंगा!! आभार आपका!!
जवाब देंहटाएंअच्छी पुस्तक का सार्थक परिचय .... आभार
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