शनिवार, 31 मार्च 2012

पुस्तक परिचय-23 : बच्चन के लोकप्रिय गीत

पुस्तक परिचय-23

बच्चन के लोकप्रिय गीत

मनोज कुमार

bacchan-ke-lokpriye-geet-hindi_thm27 नवम्बर 1907 को प्रयाग में जन्मे श्री हरिवंशराय बच्च किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। आज के पुस्तक परिचय में हम आपका परिचय कराने जा रहे हैं हिंदी के इस लोकप्रिय कवि के एक श्रेष्ठ गीतों के संकलन “बच्चन के लोकप्रिय गीत’ से। हिन्दी गीति-काव्य के इस महान कवि के गीत हिंदी साहित्य जगत में काफ़ी लोकप्रिय हुए हैं और उनके गीतों के कई संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। पर इस पुस्तक की खासियत यह है कि इस संकलन के गीतों का चयन खुद कवि बच्चन ने ही किया है।

कविवर बच्चन इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 1942 से 1952 तक अंग्रेज़ी के लेक्चरर रहे। बाद में इन्होंने कैम्ब्रिज यूनिवरिटी से पी.एच.डी. की उपाधि ग्रहण की। भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ के रूप में काफ़ी सालों तक काम किया। 1966 में राज्यसभा के सदस्य मनोनीत हुए।

कविवर की रचनाएं अपनी गेयता के लिए न सिर्फ़ प्रसिद्ध हैं बल्कि बहुत ही लोकप्रिय भी हैं। कवि-सम्मेलनों में उनके गीतों पर लोग झूम उठते थे। आज भी उनके गीत कई श्रोताओं को कंठस्थ हैं। ऐसे ही कई गीतों का चुनाव इस संकलन में कवि ने स्वयं किया है।

इस पुस्तक की प्रवेशिका में बच्चन जी ने कहा है गीत भावना-जगत की वाणी है। जब मनुष्य की भावनाएं तीव्र होती हैं, तब वे उसे सहज ही लयमय कर देती हैं। शब्दों के माध्यम से यदि उनकी अभिव्यक्ति हुई तो वह स्वाभाविक ही छन्दोबद्ध, संगीतात्मक तथा रागोद्बोधक होती हैं। गीत अपने आकार में लघु होते हुए भी भाव को जगाते हैं, और उसे विकास तथा गति देकर एक तीव्रतम स्थिति तक पहुंचा देते हैं। वे मानव-हृदय की किसी-न-किसी भावना के साथ अपना निकट संबन्ध बना लेते हैं।

गीत शब्द का अर्थ ही है – गाया हुआ। इस संकलन के गीत मात्रा, लय, तुक का सहारा लेकर तरन्नुम के साथ मुखरित किए जा सकते हैं। इस संकलन के गीतों में शब्द और अर्थ का भी, अपना एक आन्तरिक संगीत है। इसलिए इसे सस्वर पढ़ कर इसका आनन्द लिया जा सकता है। ध्वनि और अर्थ दोनों मिलकर ही गीत के लक्ष्य को पूरा करते हैं।

इस संकलन के अपनी पसंद के एक गीत से आज के पुस्तक परिचय को विराम देता हूं –

चांद-सितारो, मिलकर गाओ

 

चांद-सितारो, मिलकर गाओ !

 

आज अधर से अधर मिले हैं,

आज बांह से बांह मिली,

आज हृदय से हृदय मिले हैं,

मन से मन की चाह मिली;

 

चांद-सितारो, मिलकर गाओ !

 

चांद-सितारो, मिलकर बोले,

 

कितनी बार गगन के नीचे

प्रणय-मिलन व्यापार हुआ है,

कितनी बार धरा पर प्रेयसि-

प्रियतम का अभिसार हुआ है !

 

चांद-सितारो, मिलकर बोले।

 

चांद-सितारो, मिलकर रोओ !

 

आज अधर से अधर अलग हैं,

आज बांह से बांह अलग,

आज हृदय से हृदय अलग हैं,

मन से मन की चाह अलग;

 

चांद-सितारो, मिलकर रोओ !

 

चांद-सितारो, मिलकर बोले,

 

कितनी बार गगन के नीचे

अटल प्रणय के बन्धन टूटे,

कितनी बार धरा के ऊपर

प्रेयसि-प्रियतम के प्रण टूटे !

 

चांद-सितारो, मिलकर बोले।

         ***

पुस्तक का नाम

बच्चन के लोकप्रिय गीत

कवि

हरिवंशराय बच्चन

प्रकाशक

हिन्द पॉकेट बुक्स प्राइवेट लिमिटेड

संस्करण

तीसरा रिप्रिंट : 2008

मूल्य

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पेज

119

10 टिप्‍पणियां:

  1. पुस्तक परिचय के लिए आपका बहुत आभार मनोज जी...
    बच्चन जी को पढ़ना बहुत अच्छा लगता है...

    इस पार प्रिये मधु है, तुम हो...उस पार ना जाने क्या होगा...

    सादर
    शुक्रिया.

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  2. बच्चन जी के लोक प्रिय गीत से परिचय अच्छा लगा ... गीत भी बहुत सुंदर चुना है ... आभार

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  3. बच्चन जी की किस कविता को पसंद करूं या किस कविता को नापसमद,आज तक समझ न सका । उनकी हर कविता एक दूसरे से संघर्ष करती हुई प्रतीत होती है । आपका चयन अच्छा लगा । मैं भी अपने पोस्ट पर उनकी एक कविता "आज तुम मरे लिए हो" प्रस्तुत किया हूं । धन्यवाद ।

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  4. उत्कृष्ट प्रस्तुति |
    आभार |

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  5. कितनी बार गगन के नीचे

    अटल प्रणय के बन्धन टूटे,

    कितनी बार धरा के ऊपर

    प्रेयसि-प्रियतम के प्रण टूटे ! bahut accha lga oadhkar thanks nd aabhar ....

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  6. खूबसूरत गीत के साथ बच्चन जी का परिचय...
    इस सुंदर प्रस्तुति के लिए सादर आभार सर...

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  7. बच्चन जी को पढना सदैव ही अच्छा लगता है. पुस्तक की चर्चा अच्छी रही....

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  8. मनोज जी हमें नहीं मालूम यह गीत जो हम लिख रहें हैं इस संकलन में है या नहीं हमने यह समूह गान के रूप में यूनिवर्सिटी यूथ फेस्टिवल ,सागर विश्वविद्यालय में १९६५ में एक एहम प्रति भागी के रूप में गाया था आज भी याद है इसे प्रथम पुरूस्कार से भी नवाज़ा गया था -

    जिसे माटी की महक न भाये ,उसे नहीं जीने का हक़ है .

    जीवन हंसी भी जीवन ख़ुशी भी ,

    जीवन घुटन भी जीवन रुदन भी ,

    जो न जीवन की गत पर गाये ,उसे नहीं जीने का हक़ .

    किसने जाना सब दिन सावन ,डर घर बैठो मत ओ मनभावन

    जो न बरखा में भीग नहाए ,जिसे झंझा की झनक न भाये ,

    उसे नहीं जीने का हक़ है .

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  9. बच्चन साहब की कविताऐं हम लोगों के लिए एक खज़ाने की तरह है

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