सोमवार, 7 मई 2012

कुरुक्षेत्र ... षष्ठ सर्ग .... भाग --3 / रामधारी सिंह दिनकर



प्रस्तुत भाग में  कवि आज भी आम जीवन में  चलने वाले कुरुक्षेत्र से चिंतित  है ... मानव आज विज्ञान की राह पर चल रहा है उस पर कवि हृदय मंगलवासियों को चेतावनी देता क्या कह रहा है ,   इस भाग में  पढ़िये  



पर सको सुन तो सुनो , मंगल- जगत के लोग !
तुम्हें छूने को रहा जो जीव कर उद्योग ,
वह अभी पशु है ; निरा  पशु , हिंस्र , रक्त पिपासु , 
बुद्धि उसकी दानवी है स्थूल  की जिज्ञासु ।
कड़कता उसमें किसी का जब कभी अभिमान , 
फूंकने लगते सभी हो मत्त मृत्यु - विषाण  । 

यह मनुज ज्ञानी , शृंगालों , कूकरों से हीन
हो , किया करता अनेकों क्रूर कर्म मलिन।
देह ही लड़ती नहीं , हैं जूझते मन - प्राण , 
साथ होते ध्वंस  में इसके कला - विज्ञान । 
इस मनुज के हाथ से विज्ञान के भी फूल , 
वज्र हो कर छूटते शुभ धर्म अपना भूल । 

यह मनुज , जो ज्ञान का आगार ! 
यह मनुज , जो सृष्टि का शृंगार !
नाम सुन भूलो नहीं , सोचो विचारो कृत्य ;
यह मनुज , संहार सेवी वासना का भृत्य । 
छद्म  इसकी कल्पना , पाषंड इसका ज्ञान ,
यह मनुष्य मनुष्यता का घोरतम  अपमान । 

व्योम से पाताल तक सब कुछ इसे है ज्ञेय ,
पर , न यह परिचित मनुज का , यह न उसका श्रेय ।
श्रेय उसका बुद्धि पर चैतन्य उर की जीत ;
श्रेय मानव की  असीमित मानवों से प्रीत ;
एक नर से दूसरे के बीच का व्यवधान 
तोड़ दे जो , है वही ज्ञानी , वही विद्वान ।

और मानव भी वही, जो जीव बुद्धि -अधीर 
तोड़ना अणु ही , न इस व्यवधान का प्राचीर ;
वह नहीं मानव ; मनुज से उच्च , लघु या भिन्न 
चित्र-प्राणी  है किसी अज्ञात  ग्रह  का छिन्न ।
स्यात , मंगल या शनिश्चर  लोक का अवदान 
अजनबी करता सदा अपने ग्रहों  का ध्यान । 

रसवती भू के मनुज का श्रेय 
यह नहीं विज्ञान , विद्या - बुद्धि यह आग्नेय ;
विश्व - दाहक , मृत्यु - वाहक , सृष्टि का संताप ,
भ्रांत पाठ पर अंध बढ़ते ज्ञान का अभिशाप ।

भ्रमित प्रज्ञा  का कौतुक यह इन्द्र जाल  विचित्र ,
श्रेय मानव के न आविष्कार  ये अपवित्र ।

सावधान , मनुष्य ! यदि विज्ञान है तलवार ,
तो इसे दे फेंक , तज कर मोह , स्मृति के पार ।
हो चुका है सिद्ध , है तू शिशु अभी नादान ;
फूल - काँटों की तुझे कुछ भी नहीं पहचान । 
खेल सकता तू नहीं ले हाथ में तलवार ;
काट लेगा अंग , तीखी है बड़ी यह धार । 




क्रमश: 



प्रथम सर्ग --        भाग - १ / भाग –२

द्वितीय  सर्ग  --- भाग -- १ / भाग -- २ / भाग -- ३ 

तृतीय सर्ग  ---    भाग -- १ /भाग -२

चतुर्थ सर्ग ---- भाग -१    / भाग -२  / भाग - ३ /भाग -४ /भाग - ५ /भाग –6 



षष्ठ  सर्ग ---- भाग - 1भाग -2





11 टिप्‍पणियां:

  1. kurukshetra hindi kavya kee amulya nidhi hai. ise padhkar achha lag raha hai...

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  2. गरिमामय रचना ... बहुटी ही लाजवाब ...

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  3. तलवार की तीखी धार से न कभी किसी का भला हुआ है और न होगा।

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  4. इन पंक्तियों के माध्यम से कविवर दिनकर ने हिंद स्वराज में व्यक्त गांधी के विचारों से सहमति जताते हुए गांधीवाद की प्रासंगिकता को स्वीकारा है।

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